झारखंड और छत्तीसगढ़ के बाद अब महाराष्ट्र में भी कुछ ऐसे गांव सामने आए हैं जहां के लोगों ने सरकारी कानून को खारिज कर दिया है। ये गांव महाराष्ट्र के पालघर जिले में स्थित दहानु तहसील में हैं। गुजरात सीमा से लगे इस जनजातीय बाहुल्य इलाके में रहने वाले लोगों ने बाकायदा साइनबोर्ड लगाकर लिखा है कि संसद और राज्य विधानसभा द्वारा बनाए गए कानून इस इलाके में लागू नहीं हैं।
जनजातीय बाहुल्य क्षेत्रों में प्रशासन और नियंत्रण से जुड़े भारतीय संविधान के अनुच्छेद-244 का जिक्र करते हुए यहां के सार्वजनिक स्थानों पर लगे लाल साइनबोर्ड में साफ-साफ लिखा है, ‘आगंतुकों को चेतावनी दी जाती है कि वे अनुसूचित क्षेत्र में हैं।’ इसके साथ ही यह भी लिखा है कि संविधान के अनुच्छेद 19 (5) के तहत, ‘अनसूचित क्षेत्र के बाहर के किसी भी गैर-जनजातीय व्यक्ति के यहां घूमने, स्थाई निवासी बनने या कोई कारोबार या नौकरी करने की इजाजत नहीं है।’
अनुच्छेद 19 (1) (d) और (e) के तहत भारत के नागरिकों को पूरे भारत में कहीं भी घूमने, रहने और बसने की स्वतंत्रता है। अनुच्छेद 19 (5) के तहत इसमें एक अपवाद है। यह अनुच्छेद कहता है, ‘ ‘उपबंध (d) और (e) में ऐसा कुछ नहीं है जो कानून या सख्ती लागू करने से रोकता है। बशर्ते वह आम जनता या किसी अनुसूचित जनजाति के हित में हो।’
झारखंड पिछले साल झारखंड और छत्तीसगढ़ के कुछ गांवों में भी पत्थलगढ़ी नाम के आंदोलन के दौरान सार्वजनिक स्थानों पर ऐसे ही बोर्ड देखने को मिले थे। वहां पत्थरों पर आदिवासियों ने अपना अलग संविधान लिख दिया था। उन पर सरकार को इन इलाकों से दूर रहने और ग्राम सभाओं के सबसे ऊपर होने की बात कही गई थी।
कब से लगे हैं यहां ऐसे बोर्डः महाराष्ट्र के दहानु तालुका (तहसील) के अंतर्गत आने वाले गांव चिखाले में मई 2017 में ग्राम पंचायत ने इस तरह का प्रस्ताव पास किया था। इसी का अनुसरण करते हुए वाकी ग्राम पंचायत में भी 15 मई 2018 को ऐसा ही प्रस्ताव पास हुआ, जिसके बाद दिसंबर में यहां भी ऐसे ही बोर्ड लगा दिए गए।
बहरहाल लंबे समय तक पुलिस की तरफ से इस तरह की घटनाओं पर ध्यान नहीं दिया गया लेकिन हाल ही में घोलवाड़ पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर संभाजी यादव ने इन दोनों गांवों के सरपंजों से बातचीत की और उन्हें पत्र लिखा था। 24 जनवरी को चिखाले की सरपंच अनिता कावटे, उपसरपंच अनिल गावड़ और ग्राम सेवक मनोज इंगले ने पुलिस थाने में जाकर पिछले साल पास हुए प्रस्ताव की जानकारी दी थी। इस प्रस्ताव को रखने वाले चेतन उरद्या ने फिर से संविधान की पांचवी अनुसूची और अनुच्छेद 244 (1) का जिक्र किया।
और क्या-क्या है यहां के प्रस्ताव मेंः संविधान का हवाला देकर ग्रामीणों ने अपने जो नियम-कानून बनाए हैं उनमें यह भी कहा गया है, ‘सरकार अनुसूचित क्षेत्रों में जमीन नहीं ले सकती। यहां की अपनी स्वायत्त सरकार होगी।’ इन्हीं नियमों और प्रस्तावों का हवाला देकर मुंबई-दिल्ली कॉरिडोर, बुलेट ट्रेन, प्रस्तावित बांधों, पुलों, शराब की दुकानों और अन्य सरकारी कामों के लिए जमीन देने से इनकार कर दिया था।

