कहा जाता है कि लोकतंत्र के तीसरे स्तंभ कहे जाने वाली न्यायपालिका किसी की नहीं सुनती है। न्यायपालिका केवल सबूतों के आधार पर किसी दोषी को सजा सुनाती है लेकिन देश में एक राज्य ऐसा भी है जहां पर न्यायालय किसी के दवाब में आकर अपना फैसला सुना रही है। हम बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश की जहां पर बीजेपी की सरकार है और यहां के एक मंत्री द्वारा कोर्ट पर दवाब देकर अपने समर्थक के पक्ष में फैसला सुनवाया गया है। इस मामले की जानकारी कोर्ट के जस्टिस द्वारा दी गई।
मध्य प्रदेश सरकार में कृषि मंत्री और छिंदवाड़ा जिले के प्रभारी मंत्री गौरीशंकर बिसेन द्वारा कोर्ट पर दवाब बनाया गया कि कोर्ट उनके समर्थक के पक्ष में फैसला सुनाए जो कि किसी मामले में सजा काट रहा था। गौरीशंकर ने कोर्ट के जज को फोन करके ऐसा करने के निर्देश दिए थे। इस मामले की जानकारी खुद कोर्ट के जज ने लिखित में दी कि दोषी अपने संबंधो के चलते सरकार में बैठे लोगों से अपने काम कराने का आदि है। सरकारी लोगों के साथ संबंध अच्छे होने के कारण वह उनपर दवाब बनाकर खुद को बचा पाने में कामयाब हो रहा है। इसके बाद उन्होंने कहा कि यह न्यायालय की निष्ठा और पारदर्शिता पर भी सवाल उठाता है जिसके कारण इस केस को आगे चलाना न्यायहित में नहीं है और इस केस को यहीं खारिज किया जाता है।
वहीं इस मामले के बारे में जब मंत्री जी से पूछा गया तो उनका कहना था कि एक जनप्रतिनिधि होने के कारण हमें दैनिक कामों को लेकर शासकीय अधिकारियों को फोन करना होता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि न्यायालय पर हम दवाब बनाकर अपने समर्थक के पक्ष में कार्रवाई करवाएंगे। इस मामले को बेवजह बढ़ाया जा रहा है। डिस्ट्रिक्ट रजिस्ट्रार सोसाइटी का कर्मचारी राज्य सरकार का कर्मचारी होता है तो अगर किसी मंत्री द्वारा उससे बात की जाती है तो इससे यह अंदाजा नहीं लगा सकते कि वह अपने निजी काम के लिए उसे फोन कर रहा है। खैर इस मामले के सामने आने के बाद अब बीजेपी के विपक्षियों को एक मुद्दा और मिल गया है जिससे कि वे बीजेपी पर निशाना साध सकें।
