मध्यप्रदेश में प्रशासन की एक बड़ी लापरवाही का मामला सामने आया है। मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में पल्स पोलियो अभियान की जिम्मेदारी नाबालिग बच्चों के हाथ सौंपी गई है। बताया जा रहा है कि छतरपुर जिले में नाबालिग स्कूली बच्चें 75 रूपये दिहाड़ी पर पल्स पोलियो अभियान के कार्य में लगे हुए हैं। इस कार्य के अतंर्गत इन बच्चों को डोर टू डोर जाकर पोलियो की दवा भी पिलानी है।
इस मामले में सबसे बड़ी बात यह है छोटे बच्चों को पोलियो की दवा पिलाने वाले इन बच्चों को किसी तरह का प्रशिक्षण नहीं दिया गया है। इस मामले ने प्रशासन की लापरवाही को उजागर किया है कि इतनी बड़ी जिम्मेदारी इन नाबालिग बच्चों को कैसे दी जा सकती हैं। इन बच्चों को यह जिम्मेदारी महाराजपुर के पोलियो प्रभारी ने दी है। उन्होंने ही इन बच्चों को प्रतिदिन 75 रुपये प्रतिदिन की दिहाड़ी के हिसाब से पोलियो दवाइयों का बॉक्स थमा दिया है। जिसमें इन्हें एक दिन चिन्हित बूथ पर तो 2 दिन डोर टू डोर जाकर बच्चों को पोलियो ड्रॉप पिलानी है और इस काम के इन नाबालिग बच्चों को तीन दिनों में 225 रूपये दिये जाएंगे।
इसके अलावा यह भी देखा गया जिन पोलियो ड्रॉप शैसे को मानक टेम्परेचर बॉक्स में रखा जाना चाहिए था वह ड्रॉप खुले में ही रखी हुई थी। जबकि कहा जाता है कि पोलियो ड्रॉप को निश्चित टेम्परेचर में रखा जाना चाहिए जिससे वह खराब न हो। वहीं जब इस मामले में महाराजपुर अस्पताल में एएनएम से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि नाबालिगों को पोलियो ड्रॉप पिलाने की जिम्मेदारी देना गलत है।
यह ड्रॉप प्रशिक्षित और वयस्क लोगों द्वारा ही पिलाई जाती है। नाबालिगों को यह काम सौंपना गलत और अपराध है। यह मामला सामने पर पता चलता है कि इस विश्व व्यापी योजना को कितने लापरवाही से लिया जा रहा है और प्रशासन इसके खिलाफ क्या कदम उठाता है।
