संसद में कामकाज न होने पर भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने शुक्रवार को फिर यह कह कर अपनी नाराजगी सार्वजनिक कर दी कि हमारे लोगों (सत्ता पक्ष) ने ही हंगामा करके संसद नहीं चलने दिया। उन्होंने सांसदों और लोकसभा चलाने की जिम्मेदार लोकसभा अध्यक्ष और संसदीय कार्यमंत्री आदि के कामकाज पर परसों टिप्पणी करके नोटबंदी का संकट झेल रही भाजपा की परेशानी को ज्यादा बढ़ा दिया था। उसके बाद दूसरे वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी और शांता कुमार ने भी उसी तरह की नाराजगी जताई और लिखित में लोकसभा अध्यक्ष को दिया। पूरा ही शीतकालीन सत्र नोटबंदी की भेंट चढ़ता देख आडवाणी की टिप्पणी के साथ शुक्रवार को उनकी सीट पर कांग्रेस के मुख्य सचेतक ज्योतिरादित्य सिंधिया से बातचीत करने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के उनके पास आने को नए राजनीतिक घटनाक्रम से जोड़ा जाने लगा है। वैसे बाद में आडवाणी कुछ पत्रकारों को बताया कि उन्होंने सोनिया गांधी को जन्मदिन पर बधाई देने के लिए फोन किया था, तब वे नहीं मिली थी, इसलिए उनका आभार जताने उनके पास आईं थी। सिंधिया तो चर्चा पर गतिरोध खत्म करने की पहल करने का आग्रह करने उनके पास आए थे। आडवाणी ने कहा कि जो दृश्य सदन में लगातार दिख रहा है, वैसा कभी नहीं दिखा था और इसके लिए दोनों ही पक्ष समान रूप से दोषी हैं।
आडवाणी अमूनन सधी हुई भाषा बोलने के लिए जाते हैं। पार्टी और सरकार में दरकिनार कर दिए जाने के बावजूद वे पार्टी के हर आयोजन में पहले की तरह शामिल होते हैं और सार्वजनिक रूप से उन्होंने कभी भी अपनी नाराजगी का प्रदर्शन नहीं किया था। आठ नवंबर की नोटबंदी के बाद 16 नवंबर को संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होने के साथ ही नोटबंदी पर चर्चा को लेकर संसद के दोनों सदनों में गतिरोध जारी है। राज्यसभा में तो शून्यकाल में चर्चा शुरू भी हो गई थी। लेकिन बाद में उसका जवाब प्रधानमंत्री से दिलवाने और संसद के बाहर अपनी टिप्पणी के लिए उनसे माफी मांगने की विपक्ष की मांग के चलते नोटबंदी पर चर्चा पूरी नहीं हो पाई और रोज इसी मुद्दे पर हंगामा हो रहा है। लोकसभा में तो चर्चा के बाद मतविभाजन के मुद्दे पर सत्ता पक्ष और विपक्ष में विवाद के चलते सदन चल नहीं पा रहा है। सत्ता पक्ष ने विपक्ष में फूट डालकर नियम 193 में चर्चा शुरू करवा दी, जिसे विपक्ष नहीं मान रहा है। लगातार हंगामें से परेशान होकर ही आडवाणी ने विपक्ष के साथ-साथ अपने दल के नेताओं और लोकसभा अध्यक्ष तक की आलोचना कर दी। बदले में लोकसभा सचिवालय से सफाई दी गई।
आडवाणी के बाद राष्ट्रपति ने भी संसद नहीं चलने देने पर नाराजगी जताई और सभी को जिम्मेदार बताया था। उन्होंने यह कह कर विपक्ष को आड़े हाथों लिया कि अल्पमत द्वारा बहुमत की आवाज दबाना ठीक नहीं है। शुक्रवार को सत्ता पक्ष के सदस्य इसी बात को लेकर हंगामा करने लगे। विपक्षी सदस्य हर रोज की तरह शुक्रवार को भी चर्चा के बाद मतविभाजन की मांग के लिए आसन के पास खड़े होकर नारेबाजी करते रहे और अध्यक्ष ने प्रश्नकाल में आधे घंटे बाद सदन स्थगित करने के बाद करीब साढ़े बारह बजे बुधवार 14 दिसंबर के लिए सदन को स्थगित कर दिया। आडवाणी अमूनन हर रोज पूरे समय सदन में बैठते हैं।
बाहर आकर उन्होंने कहा कि विपक्ष ने नहीं आज तो हमारे लोगों ने सदन नहीं चलने दिया।
जिस तरह से सदन में हंगामा हो रहा है, वह अभूतपूर्व है। वे इससे काफी आहत हैं। नोटबंदी की परेशानी पर तो वे सीधे कुछ नहीं बोले लेकिन उनका कहना था कि किसी भी नियम में चर्चा तो होनी चाहिए। मतविभाजन के मामले में उनका कहना था कि ऐसा अभूतपूर्व मौके पर होता है। सदन की सहमति से ऐसा कराया जाता है। अब तो शीतकालीन सत्र में गिनती के तीन दिन बचे हैं। लगता नहीं कि नोटबंदी पर ठीक से चर्चा हो पाएगी और सदन चल पाएगा। आडवाणी पुराने अनुभव बता रहे थे और विरोध को जायज बता रहे थे लेकिन इस तरह के आचरण से वे आहत दिखे।
