दिल्ली हाई कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि जीवनसाथी के प्रति सम्मान, विश्वास और समझ का अभाव, उसे पीड़ा पहुंचाना और उसका अपमान करना क्रूरता होता है। इसके साथ ही दिल्ली हाई कोर्ट ने विवाह के 41 साल बाद सीआरपीएफ के एक अधिकारी को दिए गए तलाक की अनुमति बरकरार रखी। न्यायमूर्ति एस रविंद्र भट और न्यायमूर्ति दीपा शर्मा के एक पीठ ने कहा कि अगर दंपति में से कोई एक अपने जीवनसाथी के प्रति सम्मान, विश्वास और समझबूझ का लगातार अभाव जाहिर करता है और जिसके कारण दूसरे जीवनसाथी को पीड़ा, तकलीफ होती है और उसका अपमान होता है तो इस तरह का आचरण क्रूरता कहलाएगा। पीठ ने यह भी कहा कि इस तरह के आचरण से पीड़ित को क्रूरता के आधार पर तलाक मिल जाएगा। पीठ ने कहा कि विश्वास और परस्पर सम्मान, समझबूझ और प्रतिबद्धता विवाह को बनाए रखने के लिए जरूरी हैं। पीठ ने कहा कि दंपति से एक दूसरे के प्रति सहयोगात्मक रहने और प्रतिकूल
परिस्थितियों में भी शक्ति का स्तंभ बने रहने की अपेक्षा की जाती है। दंपति से एक दूसरे के गुणों, प्राथमिकताओं और आदतों को लेकर सहिष्णु बने होने और उन्हें स्वीकार करने की अपेक्षा रखी जाती है।
इस व्यवस्था के साथ ही पीठ ने एक महिला की निचली अदालत के फैसले के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया। निचली अदालत ने मानसिक क्रूरता के आधार पर इस महिला के विवाह विच्छेद की अनुमति दी थी। महिला का 1975 में सीआरपीएफ के एक कमांडर के साथ विवाह हुआ था।