कश्मीर के अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी ने एक ऑडियो संदेश के जरिए हुर्रियत कॉन्फ्रेंस से इस्तीफा दे दिया है। संदेश में गिलानी ने कहा कि उन्होंने अपने फैसले के बारे में सभी को बता दिया है। गिलानी ने कहा कि हुर्रियत के मौजूदा हालात को देखते हुए उन्होंने यह फैसला किया है। फैसले के बारे में हुर्रियत के सारे लोगों को चिट्ठी लिखकर भी जानकारी दे दी गई है।
पिछले साल जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान निरस्त होने के बाद कश्मीर में सियासी हालात लगातार बदल रहे हैं। जम्मू-कश्मीर के दो केंद्र शासित प्रदेश (लद्दाख और जम्मू-कश्मीर) में विभाजित होने के बाद से अलगाववादी खेमे की सियासत का ये सबसे बड़ा घटनाक्रम है।
सांस, हृदयोग, किडनी रोग समेत विभिन्न बिमारियों से जूझ रहे गिलानी ने सोमवार को आडियो संदेश जारी कर कहा कि उन्होंने दो हुटों में बंटी हुर्रियत कांफ्रेंस के कट्टरपंथी गुट के सभी घटक दलों के नाम एक पत्र भी जारी किया है। उन्होंने कहा है कि मौजूदा हालात में मैं आल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस से इस्तीफा देता हूं। मैंने हुर्रियत के सभी घटक दलों और मजलिस ए शूरा को भी अपने फैसले से अवगत करा दिया है।
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आल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस कश्मीर में सभी एक्टिव सभी छोटे बड़े अलगाववादी संगठनों का एक मंच है। जिसका गठन साल 1990 के दशक में कश्मीर में सूबे में जारी हिंसा और अलगाववादी सियासत को संयुक्त रूप से एक राजनीतिक मंच देने के इरादे से किया गया। 1990 की दशक की शुरुआत में एक्टिव सभी स्थानीय आतंकी संगठन प्रत्यक्ष या परोक्ष रुप से किसी न किसी अलगाववादी संगठन से जुड़े हुए थे।
जानना चाहिए कि 9 मार्च, 1993 को अलगाववादी संगठनों ने मिलकर ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस (APHC) का गठन किया। मीरवाइज उमर फारूक को इसका पहला चेयरमैन बनाया गया। APHC में छह सदस्यों वाली कार्यकारी समिति भी बनाई गई और किसी भी मामले में इसी समिति का फैसला अंतिम माना जाता।

