तमिलनाडु की राजनीति के पितामह के तौर पर ख्याति पाने वाले मुथुवेल करुणानिधि ने करीब 8 दशक लंबे राजनीतिक करियर में अपने स्टाइल स्टेटमेंट से भी लोगों को प्रभावित किया। 60 के दशक में एक हादसे ने जब उनकी बाईं आंख छीन ली तो चिकित्सकीय सलाह पर उन्हें धूप से आंख को बचाने वाला काला चश्मा पहनने के लिए मजबूर होना पड़ा। करुणानिधि ने मित्र से प्रतिद्वंदी बने एमजीआर के काले चश्मे से मिले-जुले फ्रेम वाला काला चश्मा लगाना शुरू किया था। आंखों पर काला चश्मा और गले में पीला सॉल ‘कलाइगनार स्वैग’ के तौर पर मशहूर हो गया। कलाइग्नार और एमजीआर ने लोगों को बीच काले चश्मे को काफी लोकप्रिय बनाया और बाजार में इसकी भारी मांग भी देखी गई। मोटे फ्रेम वाला भारी भरकम काला चश्मा लगाते हुए 4 दशक से ज्यादा वक्त बीत गया तो डॉक्टरों ने करुणानिधि को हल्के फ्रेम वाला कम डार्क लेंस वाला चश्मा लगाने का सुझाव दिया।
करुणानिधि के लिए उस काले चश्मे को बदला शरीर के किसी अंग को बदलने जैसा था क्योंकि एक अर्से से वह उनकी आंख का रक्षक और स्टाइल की भूमिका निभा रहा था, लेकिन डॉक्टरों की सलाह के आगे आखिरकार 46 साल बाद पुराने चश्मे से मिलते-जुलते फ्रेम वाले एक चश्मे से उसे बदला गया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 2017 में 94 वर्ष की उम्र में करुणानिधि ने जो चश्मा बदला था, उसे खोजने में महीने भर से ज्यादा का समय लगा था। चेन्नई के विजया ऑप्टीकल्स ने 40 दिनों की खोज के बाद जर्मनी से नया चश्मा इंपोर्ट किया था।
करुणानिधि के द्वारा चश्मा बदलने का यह वाकया खबर बन गया था राज्य भर के छोटे-बड़े मीडिया हाउसों ने इसे इसे चलाया था। यहां तक कि करुणानिधि के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से भी इसकी जानकारी दी गई थी। कहा जाता है कि बढ़ती उम्र के कारण करुणानिधि का बाहर निकलना कम हो गया था इसलिए चश्मे की जरूरत कम पड़ने के कारण डॉक्टरों की चश्मा बदलने की सलाह पर वह सहमत हो गए थे। उनके बारे में यह भी कहा जाता है कि वह रोजाना दाढ़ी बनाते थे। आपको जानकर हैरानी होगी कि करुणानिधि के मित्र और बाद में उनके सबसे बड़े प्रतिद्वंदी बने एमजीआर को उनके चश्मे और सफेद टोपी के साथ दफनाया गया था।
