शायद ही देश के बहुत ही कम लोग जानते होंगे कि हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के जोगिंदरनगर में एक ट्रामवे है जिसका निर्माण 1930 में हुआ था। इसका निर्माण जोगिंदर नगर के उहल हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट बनाते समय किया गया था। यह ट्राम वे पांच चरणों में है जिनमें दो चढ़ाई में, दो उतर में और एक समतल है। कुल लंबाई सात किलोमीटर है। यह ट्रामवे सारी दुनिया में अपनी तरह का एक ही है। ट्राम, जिनको अधिकतर स्थानीय लोग ट्रॉली या ट्रक कह कर पुकारते हैं, यहां चल रही हैं। ये पंजाब सरकार के अधीन चल रहे शानन पावर हाउस के निर्माण के समय 1930 में लाई गई थीं। ये अभी भी चालू हालत में हैं।
जोगिंदरनगर के ट्रामवे में लोहे की एक रस्सी के दोनों सिरों पर दो ट्रालियां जुड़ी होती हैं। जब ऊपर बिजली की मोटर चलाई जाती है तो एक ट्रॉली रेल की पटरी जैसी पटरी पर ऊपर जाती है और वैसी ही एक दूसरी ट्रॉली ऊपर से नीचे आती है। ठीक बीच में पटरी द्विशाखित हो जाती हैं और दो पटरियों में परिवर्तित हो जाती है और दोनों ट्रालियां अलग-अलग पटरी पर चलने लगती हैं। बाद मे दोनों पटरियां फिर मिल कर एक हो जाती हैं। जब ये ट्रालियां दो पटरियों पर एक दूसरे को क्रॉस करती हैं, तो यह दृश्य बहुत सुंदर लगता है।
ट्रॉली के ड्राइवर के हाथ में तांबे की एक लंबी छड़ होती है। पटरी के साथ साथ खंभों पर बिजली तार लगे हैं। अगर ड्राइवर को बीच में कहीं ट्राली रोकनी पड़े तो वह उस तांबे की लंबी छड़ को खंबों से जाती बिजली की तारों से छू देता है जिसके परिणामस्वरूप ऊपर मोटर के नियंत्रण कक्ष में एक घंटी बजती है और मोटर को चलाने वाला स्विच बंद कर देता है और ट्रॉली रुक जाती है। इसी तरह ट्राली को फिर से चलाने के लिए वह फिर घंटी बजा देता है। बीच में एक स्टेशन आता है जहां आपको पहली ट्रॉली से उतरना होता है और फिर दूसरी ट्रॉली में बैठ जाना होता है। यह सफर समुद्रतल से लगभग 3 हजार फीट से शुरू होकर सीधी खड़ी पहाड़ी पर बिछी लाइन से आसमान को छूते हुए आठ हजार फीट की ऊंचाई तक होता है जिसे करना दुनिया के रोमांच से भरे सफरों में एक है।
इस अत्यंत रोमांचक सफर के बाद मंडी के विख्यात उद्यानी विशेषज्ञ 70 वर्षीय डॉ चिरंजीत परमार जो दुनिया के 36 देशों का भ्रमण उद्यान से जुड़े कार्यों के लिए कर चुके हैं, का इस सफर के बाद यह मानना है कि यहां की सरकार इस ट्रामवे में थोड़ा सा सुधार कर इसको पर्यटकों के लिए क्यों नहीं खोल देती। अगर ऐसा कर दिया जाए तो जोगिंदर नगर इलाके के पर्यटन व्यवसाय में बहुत ही वृद्धि हो सकती है। इस किस्म की सुविधा सारे भारत में कहीं नहीं है। लोग सुबह बरोट जाकर शाम को वापस आ सकते हैं या चाहें तो वहां भी रुक सकते हैं।
डॉ परमार के मुताबिक उन्होेंने विदेशों में इस किस्म की ट्रॉली केवल तीन स्थानों पर देखीं हैं और सभी जगह यह पर्यटकों में बहुत लोकप्रिय हैं। पहली हांगकांग, दूसरी अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को तथा तीसरी ब्राजील के शहर रियो डि जनेरो में। डॉ परमार के कहना है कि सरकार को जोगिंदर नगर के ट्रामवे को हांगकांग या रियो डे जनेरो की तर्ज पर विकसित करना चाहिए। यहां सब कुछ बना बनाया है। केवल थोड़े से सुधार की आवश्यकता है। फिलहाल पुरानी ट्रॉलियों ही उपयोग में लाई जा सकती हैं।
