सितंबर महीने की 21, 22 व 23 तारीख को मूसलाधार व लगातार बारिश से हिमाचल प्रदेश में हुई तबाही से हर कोई सिहर उठा है और इसका असर पूरे देश में देखने को मिला है क्योंकि इसके कारण यहां घूमने या ट्रैकिंग के लिए देश भर से आए सैलानियों ने भी मौत का सामना किया। इतिहास गवाह है कि पहले भी प्रदेश में इस तरह की बारिश होती रही है, बल्कि इससे भी ज्यादा बरसात यहां पर कई बार हो चुकी है मगर तबाही क्यों ज्यादा हुई यह सवाल हर जेहन में उठ रहा है। तबाही के प्रारंभिक आकलन से साफ है कि ज्यादा तबाही निर्माण कार्यों के लिए अवैज्ञानिक व अंधाधुंध खुदाई, खनन, जहां-तहां डपिंग के कारण हुई है। ऐसे में यह सवाल यह है कि क्या हिमाचल प्रदेश जैसा पहाड़ी राज्य फोरलेन सड़क के लिए तैयार है? पहाड़ों में फोरलेन जैसी चौड़ी सड़कें बनाना कितना जायज है? क्या यहां सड़क निर्माण के लिए नीति अलग से नहीं होनी चाहिए। हिमाचल ही नहीं पूरे हिमालय क्षेत्र व पहाड़ी सूबों में ही सड़क बनाने की नीति अलग होनी चाहिए। जहां तक पर्यटन की बात है तो पर्यटक यहां पर प्राकृतिक सौंदर्य को निहारने आते हैं न कि मैदानी क्षेत्रों की तरह चौड़ी सड़कों पर सरपट गाड़ियां दौड़ाते हुए किसी विशेष स्थान पर जल्दी पहुंचने के लिए।
सवाल यह है कि हिमाचल जैसे राज्य में 35 से 45 मीटर चौड़ाई की सड़कें बनाना कहीं प्राकृतिक नियमों के खिलाफ तो नहीं। पर्यावरणविद तो यही कहते हैं कि पहाड़ों को पहाड़ ही रहने दो, इनका सीना छलनी करना बंद करो, हद दर्जे की छेड़छाड़ के नतीजे की एक बानगी तो प्रदेश के लोगों ने इस बार देख भी ली है और भुगत भी ली है और मुसीबतें अभी सामने खड़ी भी हैं क्योंकि पहाड़ जर्जर हो रहे हैं। फोरलेन निर्माण के डंगे ढह रहे हैं, चौड़ाई के लिए की गई कटिंग में बेतहाशा भूस्खलन हो रहा है। अवैज्ञानिक खुदाई करके मलबे को जहां-तहां डंप किया जा रहा है जो दरिया से होकर बांधों में समा रहा है और बांधों से निकल कर आगे जाकर तबाही कर रहा है।
इस मुद्दे पर गंभीर चर्चा करने का समय आ गया कि क्या हमारे पहाड़ इस बात की इजाजत देने के लिए तैयार हैं कि यहां भी मैदानी क्षेत्रों की तरह चौड़ी सड़कें बनाई जाएं, क्या विकास के नाम पर कुदरत के साथ जो सरकारी खिलवाड़ हो रहा है उसके नतीजे और भयावह आने वाले दिनों में हो सकते हैं। कट एंड फिल की तकनीक को दरकिनार करके फोरलेन के नाम पर जो पहाड़ों को रौंदा जा रहा है, चट्टानों को हिलाया जा रहा है, नदी नालों को मलबे से भरा जा रहा है, क्या यह सब यहां की प्रकृति के स्वभाव से जायज है। इन दिनों यदि कोई कीरतपुर से लेकर मनाली तक का सफर तय करे तो शायद कोई बिरला ही होगा जो इस फोरलेन सड़क व्यवस्था को सही ठहराएगा।
इस शांत सुंदर व पर्यावरण मित्र हिमाचल प्रदेश के खिड़की दरवाजे उतने ही खुले रखने चाहिए जितनी हवा की जरूरत है। यदि ये खुल कर खोल दिए तो हो सकता है कि धूल मिट्टी के साथ आने वाली तबाही रूपी आंधी सब कुछ साथ ले उड़े। पहाड़ों में विकास के लिए मैदानों जैसी उदारता दिखाना सही नहीं होगा। पहाड़ों का अपना स्वभाव है, पहाड़ पूरे देश का आॅक्सीजन सिलेंडर है और यदि यहां पर अंधाधुंध खनन होता है विकास के नाम पर पहाड़ों का सीना बेदर्दी से छलनी किया जाता है तो शायद ही ये पहाड़ जो जीवनदायनी का काम करते हैं जिनके बीच बहने वाली नदियां पूरे देश को जल और हरियाली देती हैं वे ज्यादा देर दे सकें।
फोरलेन के बनने से पर्यटन व्यवसाय कितना बढ़ेगा इसका आकलन तो सरकार ने लगाया ही होगा मगर आम धारणा यह है कि यदि आप पहाड़ों में भी 35 से 45 मीटर चौड़ी सड़कें बना देंगे, बीच में डिवाइडर होंगे, हर कहीं खड़े होने की छूट नहीं होगी तो हर कोई चाहेगा कि वह चंडीगढ़ से चलते हुए सीधे मनाली ही जाकर सांस ले। ऐसे में मनाली का क्या होगा यह तो समय ही बताएगा मगर सरकार का वह सपना भी टूट जाएगा जो पूरे प्रदेश के प्राकृतिक सौंदर्य को दुनिया भर के लोगों को दिखाने का है। ऐसा तभी संभव हो सकता है जब सड़कें चौड़ी नहीं बल्कि ज्यादा बनें, कुदरती स्वभाव के अनुरूप बनें। इससे ज्यादा गांव व कस्बे उससे जुड़ें, कनेक्टीविटी ज्यादा बढ़े, मुख्य मार्गों से हटकर जो प्राकृतिक सौंदर्य बिखरा हुआ है उसके दीदार भी बाहर से आने वाले पर्यटकों को हो सकें। पर्यटन के लिए यह फॉर्मूला बेहतर हो सकता है।
वर्तमान में यह एक बड़ा सवाल यह है कि पहाड़ों में विकास का मॉडल क्या होना चाहिए, क्या इसका पैमाना अलग हो या फिर पूरे पहाड़ों को भी देश के अन्य प्रदेशों के ही फार्मूले में फिट करके तहस नहस कर दिया जाए। जानकार कहते हैं कि समय आ गया है कि पहाड़ी विकास का मॉडल अलग हो, यहां की सड़कें व अन्य निर्माण यहां की प्राकृतिक संरचना के अनुसार हों, चौड़ी सड़कें न बना कर पर्यावरण मित्र कम चौड़ाई की ज्यादा सड़कें बने और हर गांव कस्बे से होकर पर्यटकों को गुजरने की सुविधा मिले।
हिमाचल प्रदेश में फोरलेन जैसी सड़कों की जरूरत नहीं है बल्कि यहां पर छोटी सड़क बननी चाहिए ताकि वातावरण खराब न हो। ये सड़कें कट एंड फिल तकनीक से बनें तभी हिमाचल को बचाया जा सकता है। -डीएन हांडा, अवकाश प्राप्त अभियंताक लोक निर्माण विभाग हिमाचल प्रदेश
अवैध खनन, खुदाई व अवैध डंपिंग से इस प्रदेश के वातावरण को जो नुकसान आने वाले दिनों में होगा उसकी कल्पना ही भयावह है। यहां पर पर्यावरण मित्र कम चौड़ाई की सड़कें बनाई जानी चाहिए। – बिग्रेडियर खुशहाल ठाकुर, अध्यक्ष, फोरलेन संघर्ष समिति
