हिमाचल प्रदेश विधानसभा में शुक्रवार (12 अगस्त 2022) को मौजूदा धर्मांतरण रोधी कानून में संशोधन के लिए एक विधेयक पेश किया गया। इस विधेयक में मौजूदा कानून में सजा बढ़ाने का और सामूहिक धर्मांतरण के उल्लेख का प्रावधान है।

हिमाचल प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक, 2022 में और भी कड़े प्रावधान शामिल किये गये है। हिमाचल प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 2019 को 21 दिसंबर 2020 को ही नोटिफाई किया गया था। इस संबंध में विधेयक 15 महीने पहले ही विधानसभा में पारित हो चुका था। 2019 के विधेयक को भी 2006 के एक कानून की जगह लेने के लिए लाया गया था जिसमें कम सजा का प्रावधान था। कानून में इस अपराध को संज्ञेय (कॉगजिनेबल) श्रेणी में रखा गया है।

सात की जगह 10 साल की सजा: जयराम ठाकुर सरकार द्वारा पेश नये संशोधन विधेयक में बलपूर्वक धर्मांतरण के लिए जेल की सजा को 7 साल से बढ़ाकर अधिकतम 10 साल तक करने का प्रस्ताव है। विधेयक में प्रस्तावित प्रावधान के मुताबिक इस कानून के तहत की गयी शिकायतों की जांच उप निरीक्षक से निचले दर्जे का कोई पुलिस अधिकारी नहीं करेगा। इस मामले में मुकदमा सेशन कोर्ट में चलेगा। हिमाचल प्रदेश धर्मांतरण कानून में प्रावधान है कि अगर कोई धर्म बदलना चाहता है तो उसे जिलाधिकारी को एक महीने का नोटिस देना होगा कि वह स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन कर रहे हैं।

देश में सबसे पहले हिमाचल में बना था कानून: धर्मांतरण विधेयक-2019 में संशोधन के लिए बुधवार को हिमाचल प्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र के पहले दिन के बाद बैठक हुई थी। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में इसी सत्र में संशोधन विधेयक लाने का निर्णय लिया गया। देश में सबसे पहले हिमाचल प्रदेश में साल 2006 में धर्मांतरण पर वीरभद्र सिंह सरकार ने कानून बनाया था। बाद में साल 2019 में जयराम ठाकुर के नेतृत्व वाली सरकार ने धर्मपरिवर्तन पर सख्त कानून बनाया।

बीजेपी शासित तीन राज्यों उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश की सरकारों ने धर्मांतरण विरोधी कानून बनाए हैं। इन राज्यों के बनाए कानूनों का उद्देश्य केवल विवाह के लिए धर्म परिवर्तन को रोकना है। इसके अलावा हरियाणा विधानसभा मार्च 2022 में बल, अनुचित प्रभाव अथवा लालच के जरिए धर्मांतरण कराने के खिलाफ एक विधेयक पारित किया था।