गुजरात के सूरत में एक ब्राह्मण महिला ने गुजरात हाईकोर्ट से मांग की है कि वह सरकार को उसे “नो कास्ट, नो रिलिजन” का प्रमाणपत्र जारी करने का आदेश दें। काजल गोविंदभाई मंजुला (36) ने अपने वकील धर्मेश गुर्जर के द्वारा एक कोर्ट में याचिका दाखिल की है। जिसमें कहा है कि मद्रास हाई कोर्ट के स्नेहा प्रथिबराजा केस की तर्ज पर उन्हें “नो कास्ट, नो रिलिजन” का प्रमाणपत्र जारी किया जाए।
काजल के मुताबिक उसे अपनी जाति की वजह से समाज में काफी भेदभाव झेलना पड़ा है। अब वह अपने साथ यह पहचान साथ नहीं रखनी चहाती है। वहीं, उनकी तरफ से दायर की गयी याचिका में कहा गया है कि “याचिकाकर्ता को जाति व्यवस्था की वजह से समाज में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा है। कई बार उनके साथ जाति के कारण भेदभाव पूर्ण व्यवहार किया गया है। याचिका में आगे कहा कि याचिकाकर्ता राजगोर ब्राह्मण समाज से आती है उसके बाद भी उन्हें समाज में भेदभाव का सामना करना पड़ा है।
पहले ही छोड़ चुकी है गोत्र: याचिका में उन्होंने बताया है कि इससे पहले वह गुजरात सरकार के राजपत्र में अगस्त 2021 में गोत्र ‘शीलू’ हटाने के लिए अपना नाम निकलवा चुकी है।
आईटी सेक्टर में काम करती है: काजल ने विज्ञान में परास्नातक (Master’s in Science) की डिग्री हासिल की है और अहमदाबाद में आईटी में कार्यरत है। फिलहाल अपने परिवार के साथ विवाद के चलते जूनागढ़ में रहती है। हाईकोर्ट में उनके केस की सुनवाई अगले हफ्ते होगी।
2018 में भी आ चुका ऐसा मामला: जुलाई 2018 में अहमदाबाद के राजवीर उपाध्याय ने तब हाई कोर्ट का रूख किया। जब जिलाधिकारी ने यह कहते हुए उनका धर्म बदलकर हिन्दू से नास्तिकत करने से मना कर दिया कि यह धर्मांतरण विरोधी कानून के अंतर्गत आता है। एक्ट के मुताबिक कोई भी व्यक्ति किसी और धर्म जा सकता है लेकिन कानून में धर्म बदलकर नास्तिकत या सेक्युलर नहीं बन सकता है।
उपाध्याय ने कहा कि वह एक हिन्दू गरोड़ा ब्राहमण परिवार में पैदा हुए है जो अनुसूचित जाति श्रेणी में आती है। उन्हें अपनी जाति की वजह से समाज में कई बार प्रताड़ना का सामना पड़ा है। उनकी याचिका अभी न्यायालय में लंबित है।
