कालाबाजारी, तस्करी और टैक्स चोरी करने वालों पर छापा पड़ने की खबरें तो आपने सूब सुनी और पढ़ी होंगी। लेकिन जिस छापे के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं वो थोड़ा अलग है। यह घटना है मध्यप्रदेश की जहां अब तक के इतिहास में तीन बार राष्ट्रपति शासन लग चुका है। पहली बार सन 1977 में चार महीने के लिए लगा था फिर 1980 में दूसरी बार भी इतने की समय के लिए लगाया गया था। सबसे लंबा राष्ट्रपति शासन दिसंबर 1992 से दिसंबर 1993 यानी एक साल के लिए लगाया गया था।
जब पहली बार राष्ट्रपति शासन लगा तो सत्यनारायण सिन्हा मध्यप्रदेश के राज्यपाल थे। साहित्यिक रुचि वाले सिन्हा महंगे इत्र और शानदार कपड़ों के शौकीन थे। वे रामचरितमानस के भी प्रकांड विद्वान थे। सिन्हा राष्ट्रपति शासन के पहले भी प्रदेश की राजनीति में काफी रुचि लिया करते थे। इसके लिए वो राज्य का खूब दौरा भी करते थे। उनके अधिकांश दौरे राज्य सरकार के हवाई जहाज से होते थे। इस वजह से प्रदेश के मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ल से उनका विवाद भी होता था। एक बार हवाई जहाज न मिलने पर उन्होंने राज्य सरकार की सार्वजनिक खिंचाई भी की थी।
साबुन न मिलना: एक बार राज्यपाल को बाजार में लाइफबॉय साबुन नहीं मला। इससे उनका पारा चढ़ गया और उन्होंने कंपनी के स्थानीय वितरक के छापा पड़वा दिया। मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार मायाराम सुरजन ने अपनी किताब ‘मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश के’ में इसका अच्छा वर्णन किया है। उन्होंने लिखा है कि छापे के समय वितरक के परिसर में एक ट्रक खड़ा था, जिसमें से सामान उतारा जा रहा था। छापा मारने वाले दल ने उन पेटियों को खोला, जिन्हें ट्रक से उतारा गया था तो पता चला कि कंपनी से साबुन आए हैं। गिनती करने पर पता चला कि कुल 42000 साबुन आने की जानकारी कागज में है पर छह कम हैं। फिर क्या था, उस वितरक को पकड़ लिया गया। पांच दिन बाद उन्हें हाईकोर्ट से रिहाई मिली।
चावल मिलों पर छापा: ऐसा ही एक और किस्सा है, जब राज्यपाल सिन्हा ने राज्य की सभी चावल मिलों पर छापा पड़वा दिया था। कहा जाता है कि एक कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ता के कहने पर उन्होंने ऐसा करवाया था। उस समय सेठ नेमीचंद श्रीमाल को मध्यप्रदेश का राइस किंग कहा जाता था और उनकी गिरफ्तारी के आदेश भी दिए गए थे।
रजनीश ओशो से भिड़ंत: राज्यपाल सत्यनारायण सिन्हा रामचरितमानस के रचयिता तुलसीदास के त्रि-शताब्दी समारोह में हिस्सा लेने के लिए जबलपुर गए थे। इस कार्यक्रम में रामचरितमानस के विद्वानों के साथ साथ प्रसिद्ध चिंतक रजनीश ओशो भी बतौर वक्ता आमंत्रित थे। यहां पर राज्यपाल सिन्हा का रजनीश ओशो से विवाद हो गया था।
नोट बदलने का मामला: एक समय राज्य में अचानक 100 रुपए के नोट बदलने की अफवाह फैल गई। हर कोई अपने संपर्कों का इस्तेमाल कर अपने पास के नोट बदलवाने में जुटा हुआ था। ऐसे में सिन्हा ने भी एक लाख रुपए से ज्यादा के नोट स्टेट बैंक से बदलवाए थे। इस पर काफी विवाद भी हुआ था।