तकनीक बढ़े और उसका विकास भी हो, लेकिन वह दैत्याकार रूप न ले जिसकी संभावना अब ज्यादा दिख रही है। तकनीक जनतंत्र पर हावी हो रही है। अगर तकनीक के इच्छानुसार लोग चलने लगें तो वह दिन दूर नहीं जब मानवीय सरोकार, व्यवहार, बौद्धिक स्वतंत्रता, सार्वभौमिकता हमारे पास रहेगी या नहीं यह कहना बड़ा मुश्किल हो जाएगा। जनतांत्रिक व्यवस्था में संपर्क के साधन जब तकनीक पर निर्भर हो जाएंगे तो फिर बुद्धिहीन लोगों का संचय होगा और यह समाज के लिए खतरे का संकेत है। ये बातें पूर्व केंद्रीय मंत्री व सांसद डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी ने ‘जनसत्ता’ के संस्थापक संपादक प्रभाष जोशी की जयंती पर हुए कार्यक्रम ‘जनतंत्र और तकनीक’ विषय पर आयोजित कार्यक्रम में रविवार को कहीं।
डॉक्टर जोशी ने कहा कि तकनीक जनतंत्र के आगे का रास्ता न बंद कर दे इस दिशा में सोचने की जरूरत है। हम अंतरिक्ष और सातवें आसमान में सृष्टि के निर्माता को खोज रहे हैं कि शायद जीवन के कुछ और तत्त्व मिल जाएं ताकि वहां भी प्राकृतिक चीजों की लूट खसोट और उपभोग कर सकें। लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि अगर तकनीक पर हम इतने निर्भर हो गए, गूगल से सर्च कर अपनी राय बनाने लगे तो वह दिन दूर नहीं जब ‘मानव गैराज’ भी सामने आ जाए। उन्होंने कहा कि आज ‘आधार’ संख्या मनुष्य की पहचान हो गई है। आधार नहीं तो आप निराधार हैं। यों कह सकते हैं कि अनजाने तरीके से धीरे-धीरे परिवर्तन होते चले गए और हम उसके अभ्यस्त हो गए। जोशी ने कहा कि तकनीक जब जनतंत्र को प्रभावित करने लगे तो फिर प्रबुद्ध लोगों को इस बारे में सोचने का समय निकाल लेना चाहिए। आखिर जनतंत्र कहां जाएगा। भाग्य निर्धारण की शक्ति अगर गूगल के हाथ में चली जाएगी तो आपके पसंद करने की सारी शक्ति मतलबी हो जाएगी। जो चीज पहले किताब से, संपर्क से होते थे वह अब गूगल तय करने लगा है। वह दिन दूर नहीं जब लोकतंत्र के बारे में कहे जाने वाले ‘फॉर द पीपल’, ‘फॉर द टेक्नोलॉजी’ न हो जाए। स्वतंत्र चेतना धीरे-धीरे हाथ से खिसक रही है। आपके चयन की क्षमता सिमट गई है।
पैसे पर आधारित तकनीक ने बाजार जाकर कुछ नया खरीदना है कि संस्कृति विकसित कर दी है। यह प्रजातंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा है। यह हमारी समूची जनतांत्रिक सोच की व्यवस्था को ध्वस्त कर रहा है। यह जटिल प्रश्न है। बौद्धिक लोगों को इसके बारे में सोचना चाहिए। नहीं तो यह दैत्याकार रूप हमारी सोच और इच्छा को भी निगल जाएगा। हमें इसके लिए सावधान रहना चाहिए। मानवीय सरोकार वाले लोगों को इसे गंभीरता से लेते हुए प्रबुद्ध लोगों से मार्गदर्शन लेना चाहिए। कार्यक्रम की अध्यक्षता पूर्व सीएजी टीएन चतुर्वेदी ने की। समापन मधुप मुद्गल के कबीर गायन से हुआ। प्रभाष परंपरा न्यास के प्रबंध न्यासी और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष राम बहादुर राय ने न्यास के क्रियाकलापों की जानकारी देते हुए भविष्य की योजनाओं पर प्रकाश डाला।