500 और 1000 रुपए के नोट बंद होने का सीधा असर अर्थव्यवस्था और दिहाड़ी मजूदरों की रोजी- रोटी पर पड़ना शुरू हो गया है। औद्योगिक महानगर नोएडा की 6500 से ज्यादा औद्योगिक इकाइयों के उत्पादन में 60-70 फीसद की गिरावट आ गई है। पीछे से कच्चा माल नहीं आने और तैयार माल के आगे नहीं भेजे जाने की वजह से ऐसे हालात पैदा हुए हैं। फैक्ट्रियों में नौकरी करने वाले तो जैसे-तैसे अपना काम चला रहे हैं। वहीं, कच्चा माल उतारने, तैयार माल चढ़ाने या फैक्टरियों से जॉब वर्क पर काम करने वाले दिहाड़ी मजदूरों के परिवार दो जून की रोटी के लिए मोहताज हो गए हैं। किसी के घर में एक समय खाना बन रहा है, तो कहीं रिश्तेदार या आस-पड़ोसी खाने का इंतजाम कर रहे हैं। शहर के उद्यमियों के संगठन नोएडा एंटर प्रिन्योर्स असोसिएशन के अध्यक्ष विपिन मल्हन ने बताया कि ज्यादातर आॅटो पुर्जे और गारमेंट बनाने वाली इकाइयों की पुराने नोट बंद होने से सबसे ज्यादा खराब है। नोटबंदी के कारण दिल्ली के गफ्फार व गांधी नगर आदि इलाकों से कच्चा माल नहीं आ रहा है। उत्पादन घटकर 5-10 फीसद रह गया है। ऐसे में पहले से लगे लोगों को नौकरी से निकालना पड़ रहा है। जबकि दिहाड़ी मजदूरों की जरूरत पूरी तरह से खत्म हो गई है।
बिहार के आरा जिले के रहने वाला नागेश सेक्टर-11 की एक फैक्टरी में माल चढ़ाने और उतारने का काम करता है। जहां काम करके रोजाना 250- 350 रुपए मिल जाते थे। पिछले एक सप्ताह से फैक्ट्री का काम पूरी तरह से बंद होने और अन्य कहीं भी काम नहीं मिलने से सब्जी और राशन खरीदने तक के रुपए नहीं बचे हैं। नागेश ने बताया कि राशन दुकानदार से पुरानी पहचान है लेकिन पहले से उधारी के कारण अब उसने पुरानी देनदारी चुकाए बगैर राशन देने से मना कर दिया है।
इसी तरह सेक्टर-8 में लोहे की पत्ती और रॉड की वेल्डिंग करने वाले सलीम ने बताया कि एक हफ्ते तक ऐसे ही हालात रहे, तो वह अपने गांव लौट जाएगा। फैक्ट्रियों और निर्माण स्थलों पर काम बंद है। पहले जहां रोजाना 500 से 1 हजार रुपए तक का काम हो जाता था। वह पिछले एक हफ्ते से पूरी तरह से बंद पड़ा है।
सेक्टर-5 की झुग्गी में रहने वाली सुमन झा ने बताया कि 5 दिनों पहले परिवार को गांव भेज दिया है। उनको भेजने में घर की जमा रकम खत्म हो चुकी है। तब से दो जून की रोटी के भी लाले पड़े हैं। फैक्टरी में बटन लगाने का जो काम पहले करती थी, वह बंद हो चुका है। फैक्टरी वाले पुराने 300 रुपए तक नहीं देने को तैयार नहीं है। आस-पड़ोस में रहने वालों से मांगकर गुजारा चल रहा है। सेक्टर-5 में ही रहने वाले मुकेश ने बताया कि दो दिनों से आस-पड़ोसियों के सहारे घर का चूल्हा जल रहा है। परिवार को गांव ले जाने लायक रुपए नहीं बचे हैं। आगे क्या करूंगा इसका अंदाजा भी नहीं लगा पा रहा हूं।
5 में से केवल 1 ट्रक को मिल रहा काम
दिहाड़ी मजूदर ही नहीं नोटबंदी से समूचा ट्रांसपोर्ट कारोबार पूरी तरह से लड़खड़ा गया है। सेक्टर-2, 11, 83, 63 आदि के ट्रक आॅपरेटर आॅफिस में आ तो रहे हैं लेकिन ज्यादातर की एक बिल्टी भी पूरे दिन में नहीं कट रही है। भंगेल में एसएमजी ट्रांसपोर्ट के मालिक लक्ष्मीशंकर तिवारी ने बताया कि पिछले एक सप्ताह से उनके 4 ट्रक सड़क के किनारे बगैर चले खड़े हैं। केवल 2 ट्रक ही कभी कभार दिन में छोटा-मोटा चक्कर लगा रहे हैं। ट्रक फाइनेंस की बैंक की किश्तें, ट्रक चालकों की तन्ख्वाह को लेकर ट्रांसपोर्टर परेशान चल रहे हैं। नोएडा ट्रांसपोर्ट असोसिएशन के अध्यक्ष चौधरी वेदपाल ने बताया कि ज्यादातर ट्रांसपोर्टरों के ट्रक पुराने नोट बंद होने के फैसले के बाद से खड़े हैं।