मध्य प्रदेश में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे छात्रों को परीक्षा में हिन्दी में उत्तर लिखने की छूट मिलेगी। राज्य की बीजेपी सरकार के फैसले के अनुसार पढ़ाई का माध्यम हिन्दी हो या अंग्रेजी छात्र परीक्षा में उत्तर देने के लिए हिन्दी माध्यम का चुनाव कर सकते हैं। अपने फैसले के बचाव में राज्य सरकार ने कहा है कि हिन्दी माध्यम से शुरुआती पढ़ाई करने वाले छात्रों खासकर ग्रमीण इलाकों से आने वाले विद्यार्थियों को अंग्रेजी में अपनी बात रखने में दिक्कत होती है। सरकार के अनुसार इस वजह से कुछ छात्र इंजीनियरिंग की पढ़ाई बीच में ही छोड़ देते हैं। राज्य केस्कूली शिक्षा मंत्री दीपक जोशी ने कहा, “इससे क्या फर्क पड़ता है कि छात्र ‘आई हैव अ पेन’ की जगह ‘मेरे पास एक पेन है’ लिखता है।” जोशी के पास तकनीकी शिक्षा का भी स्वतंत्र प्रभार है। नई व्यवस्था के तहत छात्र को पाठ्यक्रम की शुरुआत में हिन्दी या अंग्रेजी में से किसी एक भाषा को माध्यम के रूप में चुनना होगा और अंत तक उसी में उत्तर देना होगा। ये फैसला राज्य के 200 इंजीनियरिंग कॉलेजों में इसी सत्र से लागू हो जाएगा।
शिक्षा मंत्री ने कहा, “छात्रों को तकनीकी शब्दों को अंग्रेजी में लिखने की छूट होगी। माता-पिता अपने बच्चों की शिक्षा पर शायद लाखों रुपये खर्च करते हैं लेकिन वो कोर्स पूरा नहीं कर पाते या बीच में छोड़ देते हैं क्योंकि वो अंग्रेजी के साथ सहज नहीं होते।” शिक्षा मंत्री ने बताया कि राज्य के राजीव गांधी प्रोद्यौगिकी विश्वविद्यालय (आरजीपीवी) से जुड़े 200 तकनीकी विश्वविद्यालयों में ये फैसला चालू सत्र से ही लागू हो जाएगा। आरजीपीवी के वाइस-चांसलर पीयूष त्रिवेदी ने कहा कि ये फैसला सर्वसम्मति से लिया गया है। वीसी त्रिवेदी ने बताया कि सभी संबंधित कॉलेजों को हिन्दी दिवस (14 सितंबर) की शाम को ही इस बाबत अधिसूचना भेज दी गई है। राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस पहल की तारीफ की है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने भी राज्य सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है। एबीवीपी के स्थानीय नेता सीएम धाकड़ ने कहा, “हमारी हमेशा से मांग रही है कि छात्रों को अपनी सुविधा के अनुरूप भाषा के चुनाव का अधिकार होना चाहिए।” लेकिन राज्य में कुछ लोगों इस फैसले से सहमत नहीं है। एक निजी इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ाने वाले प्रोफेसर आदर्श सचदेव ने कहा, “हो सकता है कि मंत्रीजी ने अपने युवावस्था के दिनों के आधार पर फैसला किया हो जब अंग्रेजी माध्यम के स्कूल बहुत कम थे। अब स्थिति बदल गई है। हमारे यहां पढ़ने वाले 90 प्रतिशत छात्रों की स्कूली पढ़ाई अंग्रेजी माध्यम से हुई है। हिन्दी माध्यम के छात्रों को इस फैसले से फौरी राहत भले मिल जाए लेकिन दूरगामी तौर पर इससे उन्हें नुकसान ही होगा।”
कुछ आलोचकों का आरोप है कि ये फैसला राज्य के विभिन्न निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों में हर साल खाली रह जाने वाली सीटों के चलते लिया गया है। इस आरोप पर शिक्षा मंत्री ने कहा, “ये एक हिन्दी प्रदेश है। हो सकता है कि छात्र अंग्रेजी में उत्तर देना चाहते हों लेकिन वो नहीं दे सकते और वो उत्तर देने की कोशिश भी नहीं करते। वो निराश होकर बीच में हथियार डाल देते हैं।”