भारत के पहले और विश्व के आठवें थिएटर ओलंपिक्स के पांचवें, छठे और सातवें दिन का मुख्य आकर्षण रहा थिएटर ओलंपिक्स कमिटी के अध्यक्ष थ्योदोरोस तेरजोपॉलस का नाटक ‘एनकोर’। दरअसल यह नाटक यूनान के ऐटिस थिएटर की निरंतरता को अभिव्यक्त करता है और इस अभिव्यक्ति के दौरान दो अभिनेता उस्तरे से तराशी गई-सी मुस्कान के साथ मंच पर ‘एनकोर, एनकोर, एनकोर’ फुसफुसाते हैं। इस नाटक के साथ एटिस थिएटर अपनी स्थापना का उत्सव मना रहा है। नाटक एनकोर ‘अलार्मे’ के साथ प्रारंभ होनेवाली और ‘एमॉर’ के साथ जारी रहनेवाली त्रयी का समापन है। यह इस कड़ी का तीसरा नाटक है। त्रयी के मूल में भी यही कथानक है, सृष्टि और काल के पौराणिक उद्भव के रूप में द्वंद्व। मंच पर दो देहों के मेल से मुक्त होती सघन शक्ति और एक-दूसरे के द्वारा परपीड़क उपभोग, अंत में दोनों को नष्ट कर देता है।
नाटक एनकोर की मंच अभियांत्रिकी और प्रकाश व्यवस्था कमाल की है। यह नाटक दिखाता है कि रिश्ता चाहे कितना ही प्रेमपूर्ण क्यों न हो एक दिन उसमें खटास आ ही जाती है और एक वक्त आते-आते वह प्रेम घुटन का कारण बनने लगता है। एक परजीवी की तरह आपके ही शरीर में रहकर आपका खून चूसने लगता है। निर्देशक के अनुसार, एनकोर के साथ, हम उन मंच-यंत्रों का अध्ययन जारी रखते हैं, जो कि अपने सौंदर्यबोधक कौशल और वृत्तियों से परे, मंच पर देहों के मिलन की सामर्थ्य में वृद्धि करते हैं। भावातिरेक (आवेश), वंश, कामनाएं और शब्द एक रंगमंचीय देह में एकाकार हो जाते हैं, जो एटिस थिएटर की डायनिसियाई परंपरा से उत्पन्न होती है।
एनकोर में देहों को निडरता के साथ ‘ईरोस’ और थानाटोस को मिलाने के अपने प्रयास में, शाश्वत रूप में, देहें एक-दूसरे को आपस में फंसाती हैं, भ्रमित करती हैं और निगल जाती हैं। प्रारंभ में यह असीम प्रेम एक-दूसरे के पड़पीड़न का कारण बनता है और फिर एक-दूसरे को पारस्परिक विनाश की ओर ले जाता है, हालांकि इसका परिणाम एक नई, ‘दूसरी देह’ के उनके तत्वांतरण में होता है। अपने संयुक्त होने के प्रयासों में घुटते हुए, शब्दों को ऊर्जात्मक रूप से आवेशित एक देह के माध्यम से, आंतराग में संकेतित किया गया है, जो तरंगित होती है, और सांस के माध्यम से उन ध्वनियों को उत्पन्न करती है, जो संयोग से, अर्थपूर्ण भाषा-उच्चारणों से पूर्ण होती है। चरम आनंद में देह तार्किक ढंग से कार्य करना बंद कर देती है क्योंकि संस्कृति पूर्व परिस्थितियों और देह के जैविक मूल तक पकड़ बनाते हुए, रूढ़िगत, गतिवान और भाषाई मनोवृत्तियों द्वारा यह स्वायत्त हो जाती है। यह देहों एवं वाणी की खपत है। देहें अंतर्गुन्थित हैं और द्वंद्व के जरिए ‘दूसरे’ की भूख के सौंदर्य की रचना करते हुए, निरंतर एक अतिशय भूखे, मानवभक्षीय संबंध का प्रतिनिधित्व करती है। मंच पर अभिनेत्री सोफिया हिल और अभिनेता अन्तोनिस मिरियाग्कोस पर ही पूरी स्तब्धता के साथ लोगों की आंखें टिकी हुई थी। मंच पर प्रकाश का करिश्माई प्रभाव पैदा कर रहे थे थ्योदोरोस तेरजोपॉलस और कांस्तैन्तिनोस बेथानिस। मानवीय संबंधों के छिद्रान्वेषण पर आधारित यह कविता थॉमस सैलापैटिस की थी जिसे मंच पर जीवंत कर दिया था निर्देशक थ्योदोरोस तेरजोपॉलस के कुशल निर्देशन ने।