राजधानी में हिंसा या किसी अन्य अनहोनी की सूरत में घायलों के लिए अस्पतालों में अभी भी पर्याप्त इंतजाम नहीं हैं। जिसकी वजह से घायलों को इलाज की बावत एक-एक चीज के लिए भटकना पड़ रहा है। वहीं, घायलों का यह भी कहना है कि हम तो शांति प्रदर्शन करने व धरना देने गए थे जाने क्या हुआ कि लोग उग्र हो गए और हम अस्पताल पहुंचा दिए गए।
राजधानी में किसी आपदा की सूरत से निपटने के लिए यों तो आपदा प्रबंधन वार्ड का प्रावधान है जो हर समय किसी अनहोनी की सूरत से निपटने के लिए कागजों पर तैयार है, जबकि वास्तविकता यह है कि जगह व बिस्तरों की कमी के कारण किसी भी अस्पताल में आमतौर से बिस्तर खाली नहीं मिलते।

फेडरेशन ऑफ रेजीडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (फोर्डा) के अध्यक्ष रहे डॉ पंकज सोलंकी का कहना है कि सरकारी अस्पतालों में भीड़ में एक बिस्तर पर दो दो तीन-तीन मरीजों का इलाज करना पड़ता है ऐसे में आपदा के लिए वार्ड खाली रखना संभव नहीं होता। इसलिए अचानक जब बड़ी संख्या में घायल पहुंचते हैं तो अफ रा तफरी मच ही जाती है। कुछ घायलों को लोक नायक जय प्रकाश नारायण अस्पताल में भर्ती किया गया है, जबकि काफी घायल जीटीबी अस्पताल में ही भर्ती हैं।

एलएनजेपी अस्पताल में भर्ती भजनपुरा निवासी अख्तर (42) को सिर, कमर और कंधे में गंभीर चोटें आई हैं। उनकी पत्नी संजीदा ने बताया कि किसी तरह अख्तर की जान बची है। अल्लाह का शुक्र है कि दोबारा यह नियामत हुई है। उन्होंने बताया कि पहले सड़क हादसे में वे बाल बाल बचे थे लेकिन उसके बाद से वह ठीक तरीके से चल नहीं पाते। संजीदा ने बताया कि अख्तर लोगों के साथ प्रदर्शन करने गए थे। उनका मकसद शांति पूर्ण प्रदर्शन था लेकिन अचानक जाने क्यों पथराव होने लगा। उन्होंने कहा कि हिंसा होते देख उनके बच्चे तो घर आ गए पर अख्तर धरने पर बैठी महिलाओं को बचाने के लिए वहीं रुके रहे।

उन्होंने यह भी कहा कि जब बच्चों से मुझे जैसे ही पत्थरबाजी के बारे में मालूम हुआ तो मैंने उन्हें फोन किया और तुरंत घर लौट आने के लिए कहा। यह भी कहा कि अगर हिंसा तेज हुई तो वे भाग नहीं पाएंगे। इस पर उनके शौहर नजदीक की एक मस्जिद में चले गए और वहां थोड़ी ही देर में भीड़ घुस गई और लाठियों से उनकी और अन्य लोगों की पिटाई की।