‘ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले, ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है’ ये पंक्तियां चंड़ीगढ़ की रहनुमा पर एक दम सटीक बैठती हैं। दरअसल रहनुमा दिव्यांग हैं और उनके दोनों हाथ नहीं है। लेकिन बावजूद इसके वो पैरों से लिखती हैं। यही नहीं इसके साथ ही अब रहनुमा ब्लाइंड स्टूडेंट्स की राइटर बनने को कोशिश कर रही है। वहीं खुद वो कलेक्टर बनना चाहती हैं।

कैसे हुई लिखने की शुरुआत: बचपन से ही रहनुमा के हाथ नहीं हैं। जब वो तीन साल की हुईं तो पिता शफीक अहमद और मां गुलनाज बानो की मदद से रहनुमा ने पैरों से लिखना शुरू किया। शुरूआत चॉक और कोयले से हुई। जिसकी मदद से रहनुमा ने जमीन पर लिखना शुरू किया। क्लास में भी रहनुमा ने पैरों से ही लिखकर हमेशा एग्जाम दिया और साथ ही कभी एक्सट्रा टाइम भी नहीं मांगा।

लिखने से पेंटिग तक का सफर: रहनुमा ने लिखने के साथ बचपन में ड्राइंग करना भी शुरू कर दिया था। जिसके चलते उनके टीचर्स ने भी उन्हें काफी सपोर्ट किया और उनके टीचर अमित उन्हें कई कॉम्पीटिशन्स में लेकर गए। पिछले पांच सालों में रहनुमा करीब 13 प्राइज और दो अवॉर्ड जीत चुकी हैं। ड्राइंग के बाद टीचर पूनम के कहने पर रहनुमा ने पेंटिंग शुरू की।

ब्लाइंड बच्चों से मिलीं रहनुमा: एक प्रतियोगिता के दौरान रहनुमा कुछ ब्लाइंड स्टूडेंट्स से मिलीं जो अपने राइटर को बोल बोलकर चीजें समझा रहे थे। उस वक्त रहनुमा ने फैसला किया कि वो भी ब्लाइंड बच्चों की मदद करेंगी।