राजधानी दिल्ली में लापता होने वाले 12 से 18 साल की उम्र के बच्चों में ज्यादातर लड़कियां होती हैं। इनमें से अधिकतर को जबरदस्ती देह व्यापार के दलदल में धकेल दिया जाता है या घरेलू नौकर का पर काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। यह खुलासा एक सर्वेक्षण में हुआ है। बच्चों के लिए काम करने वाले संगठन ‘क्राई’ और मानवाधिकार संगठन ‘एपीआर’ की ओर से संयुक्त रूप से कराए गए सर्वेक्षण में कहा गया कि पिछले साल उक्त आयुवर्ग में 3715 लड़कियां लापता हो गई थीं जबकि लड़कों की संख्या 2493 रही।
सर्वेक्षण के मुताबिक, पुलिस लड़कियों के लापता होने पर अक्सर शादी के लिए भाग जाने की वजह का हवाला देती है लेकिन बचाई गई बच्चियों से मिली प्रतिक्रिया किसी और नतीजे पर पहुंचाती है। सर्वेक्षण कहता है, ‘किशोरियों का अपहरण किया जाता है और उन्हें देह व्यापार में धकेला जाता है, शादी करा दी जाती है या घरेलू सेविकाओं के तौर पर काम करने के लिए मजबूर किया जाता है।’
क्राई की जया सिंह ने कहा, ‘खुद भाग जाने वाली लड़कियों की संख्या कम है। हालांकि पुलिस अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए यह वजह बताती है।’ लड़कों को तरजीह दिए जाने की प्रवृत्ति की वजह से 0-8 साल के आयुवर्ग में लड़कियों की तुलना में लड़के अधिक लापता होते हैं। पिछले साल इस आयुवर्ग के 453 लड़के लापता थे जबकि गुमशुदा लड़कियों की संख्या 352 रही। सिंह ने कहा, ‘इस आयुवर्ग में बच्चों का अपहरण अधिकतर अवैध तरीके से गोद लेने के लिए किया जाता है।’