मदुरै उच्च न्यायालय ने यहां व्यवस्था दी कि नाबालिग लड़की और लड़के की शादी किसी भी पक्ष द्वारा विवाह की कानूनी उम्र हासिल करने के दो साल के भीतर परिवार अदालत से तलाक लिए बगैर स्वत: निरस्त नहीं होगी।
न्यायमूर्ति एस मणिकुमार और न्यायमूर्ति सी टी सेल्वम की खंडपीठ ने यहां यह फैसला सुनाते हुए पिछले साल अप्रैल में तिरूनेलवेली की एक निचली अदालत के आदेश को खारिज किया। निचली अदालत ने इस आदेश में एक महिला की तलाक याचिका पर विचार करने से इस आधार पर इंकार कर दिया था कि वर्ष 1995 में शादी के समय वह नाबालिग थी और इसलिए शादी उसी समय खुद ब खुद निरस्त हो गई।
पीठ ने कहा कि हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 शादी के लिए न्यूनतम उम्र तय करता है, अधिनियम का उल्लंघन धारा 11 या धारा 12 के तहत विवाह निरस्त कर देगा। हालांकि तलाक के आधार बताने वाली कानून की धारा 13 कहती है कि हर बाल विवाह दोनों पक्षों के विकल्प पर निरस्त-योग्य होगा, बशर्ते इस विकल्प का उपयोग शादी की उम्र (लड़के के लिए 21, लड़की के लिए 18 वर्ष) हासिल करने के दो वर्ष के अंदर किया गया हो।