राजस्थान में सड़क हादसों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है और हजारों लोग मौत के मुंह में समा रहे हैं पर परिवहन विभाग आंख मूंदकर बैठा है। विभाग को सिर्फ वाहनों के चालान की ही चिंता रहती है। सड़क सुरक्षा को लेकर सुप्रीम कोर्ट से लेकर केंद्र और राज्य सरकार भले ही गंभीरता दिखाती हों पर राजस्थान का परिवहन महकमा इसकी पूरी अनदेखी कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सरकार ने परिवहन विभाग के अधीन प्रदेश स्तर पर सड़क सुरक्षा का प्रकोष्ठ तो बना दिया पर इसकी तीन साल बाद भी कोई जमीन तैयार नहीं हो पाई। इस प्रकोष्ठ में सड़क सुरक्षा को लेकर दस से ज्यादा विशेषज्ञ अफसरों और कर्मचारियों की तैनाती तक हो गई पर इसका कोई भी काम धरातल पर दिखाई नहीं दे रहा जिससे सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाई जा सके। इस प्रकोष्ठ को वाहनों के चालान की 25 फीसद राशि की रकम मुहैया कराई जाती है। सरकार के वित्त विभाग ने 2017 में इसे 90 करोड़ रुपए सिर्फ सड़क सुरक्षा की जागरूकता के लिए मुहैया कराए थे।
राज्य सरकार ने 2016 में सड़क सुरक्षा के लिए परिवहन विभाग को नोडल एजंसी बनाया था। इसके बाद ही इस विभाग में प्रदेश स्तर पर एक बड़ी विंग तैयार की गई जिसमें अनुभवी अफसरों को रखा गया और इसकी पूरी निगरानी रखने का खाका तक तैयार किया गया। इसे पूरे प्रदेश में सड़क सुरक्षा को लेकर जागरूकता जैसे काम करने और ज्यादा हादसों वाली सड़कों की पहचान करने का जिम्मा दिया गया था। इन दोनों कामों में यह प्रकोष्ठ पूरी तरह से नाकाम रहा और हादसों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। प्रदेश स्तर पर तो प्रकोष्ठ बना दिया पर सरकार ने जिला और उससे निचले स्तर पर इस दिशा में कोई पहल नहीं की। इसका नतीजा यह है कि जिला और संभाग स्तर पर तो सड़क सुरक्षा को लेकर कोई काम ही नहीं हो रहा। परिवहन विभाग के इन प्रकोष्ठों की बैठकें हर महीने होनी चाहिए पर दो साल से बैठक होने का नाम ही नहीं ले रही है।
परिवहन मंत्री यूनुस खान ने बढ़ते सड़क हादसों पर चिंता जताते हुए कहा कि सरकार अपने स्तर पर जरूरी कार्रवाई कर रही है। खान का कहना है कि सड़क हादसों की रोकथाम के लिए परिवहन विभाग अकेला कुछ नहीं कर सकता। इसके लिए लोगों में जागरूकता की सख्त आवश्यकता है। विभाग समय-समय पर इस दिशा में सड़क सुरक्षा पखवाड़ा भी मनाता है। वाहन चालकों को नियमित प्रशिक्षण दिया जाता है।