भारत में मरीजों को हर साल औसतन चार करोड़ यूनिट रक्त की आवश्यकता पड़ती है। जबकि उपलब्धता अभी 80 लाख यूनिट रक्त की ही है। नतीजतन समय पर रक्त की व्यवस्था नहीं हो पाने के कारण लाखों लोग मौत के शिकार हो जाते हैं। जाहिर है कि इनमें ज्यादातर सड़क दुर्घटनाओं में गंभीर रूप से घायल होते हैं। जो एक तो चिकित्सा के लिए अस्पताल तक ही देर से पहुंच पाते हैं और जो पहुंच भी जाते हैं, उनके लिए उनके रक्त समूह के रक्त की समय रहते व्यवस्था नहीं हो पाती।
रक्तदान को लेकर देश में विचित्र किस्म की भ्रांतियां हैं। ज्यादातर लोग आज भी यही मानते हैं कि रक्तदान से शरीर में कमजोरी आती है। इसी धारणा का नतीजा है कि अपने सगे यानी मां, बाप, भाई और बहन तक के लिए रक्त देने से लोग कन्नी काटते हैं। वे ब्लड बैंकों के चक्कर काटते हैं और पैसे से रक्त की व्यवस्था करना चाहते हैं। वे भूल जाते हैं कि ब्लड बैंकों में भी रक्त तभी उपलब्ध हो पाता है जब लोग स्वेच्छा से रक्तदान करें। आमतौर पर ब्लड बैंक जरूरतमंदों को उनकी जरूरत वाले रक्त समूह का रक्त बदले में ही दे पाते हैं।
पिछले एक दशक से लोगों को रक्तदान के लिए पे्ररित करने वाले डा योगेश गुप्ता ने यह जानकारी विश्व रक्तदान दिवस की पूर्व संध्या पर दी। सारी दुनिया में संयुक्त राष्ट्र संघ और रेडक्रास सोसायटी लोगों को रक्तदान के लिए पे्ररित करती है। चौदह जून को विश्व रक्तदान दिवस भी संयुक्त राष्ट्र संघ ने ही घोषित कर रखा है। डा गुप्ता के मुताबिक करीब एक चौथाई आबादी को अपने जीवनकाल में कभी न कभी रक्त की जरूरत पड़ती है। थैलेसीमिया, एनीमिया, कैंसर और गुर्दे के रोगियों को तो बार-बार रक्त चढ़ाना पड़ता है।
बकौल योगेश गुप्ता रक्तदान को लेकर देश में तमाम तरह की भ्रांतियां हैं। इसीलिए लोग रक्तदान करने से बचते हैं। वे सोचते हैं कि इससे शरीर में कमजोरी आ जाती है। पर यह धारणा सही नहीं है। शरीर के कुल वजन में सात फीसद रक्त ही होता है। पर मुश्किल यह है कि न तो रक्त का कारखाने में उत्पादन किया जा सकता है और न इसका अभी तक कोई विकल्प ही उपलब्ध है। रक्तदान करने से मनुष्य के शरीर पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता। अलबत्ता शोध से यह स्थापित हो चुका है कि रक्तदान करने वालों को हार्ट अटैक की बीमारी कम होती है। इतना ही नहीं इससे कैंसर और अन्य कई बीमारियों का खतरा भी कम हो जाता है।
जहां तक रक्तदान से शरीर में कमजोरी आ जाने की भ्रांति का सवाल है, वास्तविकता तो यह है कि रक्तदान के फौरन बाद बोर्न मैरो शरीर में नई रक्त कोशिकाएं बना देता है। जितना रक्त व्यक्ति दान करता है, उसकी पूर्ति शरीर स्वयं ही 72 घंटे के भीतर कर लेता है। डाक्टर गुप्ता मानते हैं कि रक्तदान कम होने का असली कारण लोगों में जागरूकता का अभाव है। जबकि कोई भी स्वस्थ व्यक्ति एक साल में आसानी से तीन-चार बार रक्तदान कर सकता है। अगर देश में तीन फीसद लोग भी रक्तदान करने लगें तो रक्त की कमी को दूर किया जा सकता है। इससे असमय होने वाली मौतों पर भी काबू पाया जा सकता है।