दिल्ली चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की करारी शिकस्त के बाद पार्टी में असंतोष के स्वर उभरने लगे हैं। मंगलवार को ही कुछ नेताओं ने शीर्ष नेतृत्व की रणनीति पर सवाल उठाया था। बुधवार को वरिष्ठ पार्टी नेता जगदीश मुखी ने चुनाव मे हार के लिए ‘हाथ से निकले मौकों’ के अलावा, किरण बेदी को आगे लाए जाने के फैसले को जिम्मेदार ठहराया। इससे पहले भाजपा नेता कीर्ति आजाद और सांसद मनोज तिवारी ने भी मुख्यमंत्री के तौर पर बेदी का चयन करने वालों पर अंगुली उठाई थी।
सूत्रों के अनुसार, दो भाजपा नेताओं ने आरोप लगाया कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह को सारे फैसले लेने का अधिकार देना पार्टी के हित में नहीं रहा। जगदीश मुखी ने बुधवार को कहा कि दिल्ली चुनाव के लिए किरण बेदी का चयन सही नहीं था। उनके गलत चयन के अलावा पार्टी का अंदरूनी झगड़ा भी हार का कारण बना और इससे भाजपा को सीख लेना चाहिए।
चुनाव में हार के बाद पार्टी के रुख से नाखुश दिख रहे जगदीश मुखी ने कहा कि राजनीति में हाथ से निकले अवसर कभी वापस नहीं आते…हमारे केंद्रीय नेतृत्व कोसही मौकों पर सही फैसले करने चाहिए थे…मेरा मानना है कि चुनाव में हमारे पास एक चेहरा होना चाहिए था, या फिर बिना किसी चेहरे के उतरते, जैसा कि हरियाणा में हमने किया। यह सब काफी पहले होना चाहिए था। हमने 20 जनवरी को उम्मीदवार घोषित किए। कहीं-कहीं 21 जनवरी को घोषित किए गए। इसका हमें काफी नुकसान उठाना पड़ा। अगला दिन नामांकन भरने का आखिरी दिन था। लोग अपने काम पर लग गए। असंतुष्ट लोगों से संपर्क करने के लिए हमारे पास वक्त तक नहीं था। इसका खमियाजा हमें भुगतना पड़ा।
उन्होंने संकेत दिया कि लोकसभा चुनाव, हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनावों में जीत के बाद पार्टी मौके का पूरा फायदा उठाने में नाकाम रही। अगर उसी समय दिल्ली में चुनाव करा लिए जाते तो ठीक रहता। यह सवाल शीर्ष नेतृत्व से पूछा जाना चाहिए।
हालांकि मुखी ने सीधे तौर पर केंद्रीय नेतृत्व पर आरोप नहीं जड़ा, और इस बात से भी इनकार किया कि दिल्ली के नतीजे मोदी सरकार के खिलाफ रायशुमारी है। हम सब बैठकर तय करेंगे कि कहां गलती हुई।
रिठाला से चार बार विधायक रहे और इस बार हारे कुलवंत राणा इस मामले में मुखर दिखे और उन्होंने किरण बेदी को सामने लाने के फैसले को गलत ठहराया। राणा कहते हैं कि जैसे ही मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित किया जाता है, दिल्ली में हर नेता पार्टी विरोधी गतिविधियां शुरू कर देता है। सब हरवाने की कोशिश करते हैं। भाजपा में, नेता में न क्षमता है न सहनशीलता , न पार्टी के लिए कोई प्यार…सब अपने निजी फायदे के लिए सोचते हैं। हालांकि राणा ने कहा कि मोदी और शाह ने पार्टी के लिए बहुत मेहनत की, लेकिन दिल्ली नेतृत्व ने हमारे अवसरों पर पानी फेर दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि पन्ना प्रमुखों की सूची आप को लीक कर दी गई। मेरी मांग है कि पता लगाया जाए कि किसने सूची लीक की। मैं यह मामला ऊपर उठाऊंगा।
तीन बार विधायक रहे मोहन स्ािंह बिष्ट ने आरोप लगाया कि भाजपा नेतृत्व ने उम्मीदवारों को कोई सहयोग नहीं दिया। जनता ने हमारे किए काम पर कोई ध्यान नहीं दिया। किरण बेदी की चुनावी रैली हमारे यहां फ्लाप रही। यहां तक कि स्थानीय सांसद ने भी हमारा साथ नहीं दिया। एक अन्य भाजपा प्रत्याशी राजीव बब्बर ने आरोप लगाया कि आप के खिलाफ नकारात्मक प्रचार से हमारा नुकसान हुआ। चार बार विधायक रहे साहब सिंह चौहान ने पार्टी नेतृत्व के फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि दिल्ली चुनाव देर से करवाना उलटा पड़ा। हमें ये चुनाव लोकसभा के साथ ही करवाने चाहिए।
इससे पहले संयुक्त अकाली दल के उम्मीदवार मनजिंदर सिंह सिरसा ने आरोप लगया था कि भाजपा की कट्टरपंथी सियासत और मुख्यमंत्री के तौर पर किरण बेदी के चयन ने पार्टी को नुकसान पहुंचाया। चुनाव नतीजे आने के बाद उन्होंने मंगलवार को कहा था कि डेरा सच्चा सौदा से समर्थन लेना भी हमारी हार कारण बना।
बहरहाल दिल्ली विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद भारतीय जनता पार्टी में असहमति और तजवीज के स्वर तेजी से उभरने लगे हैं। सहयोगी दलों ने भी इन नतीजों को लेकर भाजपा नेतृत्व से मंथन करने को कहा है ताकि बिहार व अन्य आगामी चुनावों में नैय्या पार हो सके।
दिल्ली में आप की प्रचंड जीत के बाद मंगलवार को पहली बार पार्टी के अंदर आवाज उठी कि आखिरकार पार्टी के दो धुरंधर रणनीतिकार नरेंद्र मोदीऔर अमित शाह दिल्ली का सियासी मिजाज भांपने में क्यों नाकाम रहे। भाजपा नेता कीर्ति आजाद तो खुलेआम उन लोगों पर कार्रवाई करने की मांग कर रहे हैं जिन्होंने दिल्ली चुनाव का सूत्रधार बनकर पार्टी की छीछालेदर कराई और अब भी संगठन-सूरमा बने हुए हैं।
सूत्रों के अनुसार, मंगलवार को दिल्ली के नतीजे आने के बाद दो भाजपा नेताओं ने कहा कि पार्टी के सारे फैसले सिर्फ मोदी और शाह पर न छोड़े जाएं। एक आला नेता ने तो यहां तक कहा कि यह अंहकार और अड़ियलपन की राजनीति की हार है और शीर्ष नेताओं को इससे सीख लेना चाहिए। इस नेता का कहना है कि यह शिकस्त बहुत बुरी और अपमानजनक है।
एक अन्य भाजपा नेता का कहना था कि अगर आगामी चुनाव में बिहार के नतीजे निराशाजनक आए तो पार्टी में बगावत का झंडा उठ सकता है। यह हर तरीके से पतन है। अगर सब कुछ पटरी पर नहीं लाया गया तो इसके नतीजे काफी खराब हो सकते हैं।
पार्टी में यह विचार भी सामने आया है कि संघ से जुड़े संगठनों के आक्रामक प्रचार और घर वापसी और लव जेहाद जैसे मामले उठाने से भी पार्टी को नुकसान पहुंचा। एक भाजपा नेता ने कहा कि चुनाव में एकतरफा और मनमाने फैसले हुए तो इस पर सवाल उठेंगे और दिल्ली नतीजों ने यह दिखा दिया है।
उधर भाजपा के सहयोगी दल भी इन नतीजों को लेकर सन्न है और अब भाजपा को सबक लेने की सलाह देने में लग गए हैं। मुंबई में शिवसेना ने जहां भाजपा के जख्मों पर नमक छिड़का, वहीं मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस हार को ज्यादा तवज्जो न देने की कोशिश करते हुए कहा है कि जीत-हार तो चुनावी लड़ाई का हिस्सा हैं। दिल्ली के जनादेश को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर फैसले के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।
शिवसेना ने बुधवार को कहा कि आप की झाड़ू ने भाजपा का कचरा कर दिया। पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस हार की जिम्मेदारी उठाने को कहा।
शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ के संपादकीय में कहा गया कि झाड़ू वाली आम आदमी पार्टी ने लोकसभा चुनाव में जबरदस्त बहुमत प्राप्त करने वाली भाजपा का कचरा कर दिया। भाजपा नेताओं को अपनी जीती सीटों को गिनने के लिए उंगलियों की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। हार की जिम्मेदारी किरण बेदी पर डालना ठीक नहीं है। शिवसेना ने कहा कि मोदी ने लोकसभा में विरोधी दलों का खात्मा कर दिया, लेकिन मोदी के रहते दिल्ली में भाजपा मजबूत विरोधी दल के रूप में आगे नहीं आ सकी। लहर की तुलना में सुनामी का प्रभाव कितना प्रबल होता है, यह दिल्ली में दिखाई दिया।
संपादकीय के अनुसार भाजपा के लोगों को लगता है कि यह पराभव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नहीं है। अगर यह पराभव मोदी का नहीं है तो किसका है। केजरीवाल जीते तो फिर हारा कौन? पूरा चुनाव अभियान मोदी के नाम पर हुआ। अण्णा हजारे का कहना है कि यह मोदी की हार है। हमारा भी ऐसा ही मानना है। पार्टी ने अन्य राज्यों की जीत का श्रेय जिस तरह से मोदी को दिया, उसी तरह से दिल्ली में भी होना चाहिए।
शिवसेना ने कहा कि मोदी समेत भाजपा के तमाम बड़े नेताओं ने केजरीवाल और राहुुल गांधी का अपने भाषणों में मजाक उड़ाया। नकारात्मक प्रचार का झटका अंतत: उन्हें लगा। वहीं पुरानी चूकों के लिए केजरीवाल ने सार्वजनिक सभा में माफी मांगी और अपने को त्यागी के रूप में पेश किया। इस भूमिका को जनता ने स्वीकार किया। शिवसेना ने कहा कि चुनाव परिणाम भाजपा के लिए एक सबक हैं कि चुनाव केवल वादों और भाषणों के आधार पर नहीं जीते जा सकते। उसने कहा कि इस चुनाव ने पार्टी के भीतर असंतोष को सतह पर लाने का काम किया। अमित शाह लोगों पर अपना जादू चलाने में विफल रहे और मोदी को अंतिम हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने का नतीजा नहीं निकल पाया। मोदी की लोकप्रियता और अमित शाह का चुनाव प्रबंधन कौशल यहां दांव पर लगा हुआ था। लेकिन केजरीवाल जैसे फटीचर ने इस समग्र प्रबंधन को उखाड़ फेंका।
उधर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने बुधवार को दिल्ली विधानसभा में भाजपा को मिली करारी हार को ज्यादा तवज्जो न देने की कोशिश करते हुए कहा कि जीत-हार तो चुनावी लड़ाई का हिस्सा हैं। दिल्ली के जनादेश को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर फैसले के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।
फडणवीस ने यहां महाराष्ट्र पुलिस अकादमी में कहा कि चुनावों में कुछ दल जीतते हैं तो कुछ हारते हैं। इसका कहीं से भी यह अर्थ नहीं है कि पार्टी प्रमुख या प्रधानमंत्री की हार हुई है। हमारी पार्टी इस हार पर आत्ममंथन करेगी। दिल्ली चुनावों के फैसले पर शिवसेना की प्रतिक्रिया से जुड़े एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी दिल्ली विधानसभा चुनावों में जीती है तो इसका यह अर्थ नहीं कि हमारे प्रधानमंत्री हार गए हैं। उन्होंने कहा कि शिवसेना लंबे समय से हमारी सहयोगी रही है और एक योग्य गठबंधन सहयोगी होने के नाते उसे अच्छे-बुरे समय में हमारे साथ रहना चाहिए।