आज राजीव गांधी की पुण्य तिथि है। पूरा देश उनको नम आँखों से याद कर रहा है। लेकिन बिहार का भागलपुर भी उनकी यादों को आज भी संजोए है। राजीव गांधी को भी यहां न आने की कसक ही रह गई। वे 19 मई 1991 को 23 मई को होने वाले चुनाव प्रचार के लिए आने वाले थे। मगर गोहाटी से लौटते वक्त देरी हो जाने और उनके हवाई जहाज में ईंधन की कमी होने की वजह से भागलपुर का कार्यक्रम रद्द करना पड़ा था। उनका विमान गोहाटी से सीधे पटना उतरा और ईंधन भरवा सीधे दिल्ली के लिए रवाना हुआ था। दुर्भाग्य बस 21 मई 1991 में श्रीपेरुबदुर में उनकी हत्या हो गई। तभी से भागलपुर वालों को और उनको भी भागलपुर न आने की कसक रह ही गई। उनकी पुण्य तिथि पर कहलगांव के विधायक सदानंद सिंह, ज़िला परिषद के पूर्व अध्यक्ष शंभु दयाल खेतान, भागलपुर शहरी सीट से विधायक अजित शर्मा, गिरीश प्रसाद सिंह , नगर अध्यक्ष संजय सिंहा सरीखे सैकड़ों कार्यकर्त्ता नम आँखों से उन्हें श्रद्धांजलि देते जरूर है। लेकिन उनका दिल पिघल जाता है और वे फफक पड़ते है।

राजीव गांधी का भागलपुर से एक अजीब जुड़ाव था। 1989 के कौमी दंगे के वक्त यहां वे प्रधानमंत्री की हैसियत से आए थे। लेकिन उस वक्त लोगों ने उनका ज्यादा उत्साह नहीं बढ़ाया। कारण शहर में कर्फ्यू भी लगा था। लेकिन 1990 के अक्तूबर में वे भागलपुर की सड़कों पर बेफिक्र होकर घूमे । उनके घूमने का असर भी हुआ था। ” सदभावना यात्रा ” के बहाने उन्होंने यहां के लोगों से हाथ मिलाया और रु-ब-रु बातें की थी। आज भी उस लहमें को यहां के लोग भूल नही पाए है। पुराने लोग बुजुर्ग रामवतार शर्मा, शिवकुमार शिव बताते है कि आजादी के बाद कोई भी राष्ट्रीय स्तर का नेता राजीव की तरह भागलपुर की सड़कों पर इतने खुले रूप में नहीं घूमा। तभी से राजीव गांधी से यहां के वाशिंदों का दिल से लगाव हुआ था।

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कोतवाली चौक का रिक्शा वाला लक्खी आज भी वह पल याद कर आँखों में पानी ले आता है। जिस दिन उनकी हत्या की खबर रेडियों में सुनी थी। उसने सदभावना यात्रा के दौरान राजीव गांधी को भीड़ में दो रसगुल्ले खरीद कर प्याली में पकड़ाए थे। राजीव ने गप से एक रसगुल्ला मुंह में रख दूसरा वापस उसे खाने को दे दिया था।

पूर्व एमएलसी जयकुमार जैन ने पगड़ी और शांति के संदेश कबूतर उड़ाने के लिए राजीव को भेंट किया था। वे भी 75 की उम्र पाकर उन लहमों को यादकर व्याकुल हो जाते है। सुनील जैन, मुरारीलाल जोशी, पार्वती शर्मा, अमित यादव, अजित यादव सरीखे जो उस वक्त बच्चे थे आज युवा है की आँखों के सामने वह रेलमपेल का नजारा आज भी घूमता है। जब उन्हें माला पहनाने और उन्हें छू लेने और नजदीक तक पहुंचने की कोशिश की थी।

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भागलपुर हवाई अड्डे पर 1990 में सदभावना यात्रा के दौरान भागलपुर आए राजीव गांधी (दाएं)

वाकई उनकी मौत की खबर से भागलपुर में एकदम सन्नाटा छा गया था। सदभावना यात्रा में भागलपुर पहुंचे राजीव गांधी से हवाई जहाज से उतरते ही इस संवाददाता की मुलाकात हुई। उनसे बातचीत करने की इच्छा जाहिर करते ही वे तैयार हो गए। और बोले जाने से पहले मैं जरूर बात करूंगा। आप कारकेट में रहे। करीब छह घँटे जीप पर लगातार खड़े होकर भागलपुर की सड़कों पर भ्रमण करने के बाद सर्किट हाउस पहुंच वे मुझे ढूंढे। न मिलने पर वे हवाई अड्डा गए। वहां जाने पर उस वक्त के डीएम एसके केशव और सिटी एसपी राकेश मिश्रा ने बताया कि वे ढूंढ रहे है। तब हवाई अड्डे पर बने कमरे में उनसे मुलाकात और बातचीत हुई। उस वक्त डा. जगन्नाथ मिश्रा, लहटन चौधरी और सदानंद सिंह मौजूद थे।

मुस्लिम समाज के लोग आज भी उन्हें मसीहा ही मानते है। 1989 के दंगे में एसपी का तबादला रोक कर उनसे नाराजगी भले हुई थी। मगर यह रुसवाई दिल से नहीं थी। शकील अहमद, सज्जाद भाई बोलते है। उनकी पूरी सदभावना यात्रा में कांग्रेसी झंडा लिए चलने वाले विजय धावक कहते है वे सच्चे दिल इंसान थे। और आज भी वे दिल में बसते है। दिलचस्प बात कि धावक का लिबास आज भी वही है जो उस वक्त था। खादी का कुर्ता, पायजामा और गांधी टोपी, हाथों में उस वक्त से थामा तिरंगा झंडा। यह अलग बात है उम्र की ढलान किसी को नहीं छोड़ती। तब वे युवा थे। पर जोश वही है।