बिहार के भागलपुर पहुंचे राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सोमवार को विक्रमशिला महाविहार के खुदाई स्थल और म्यूजियम को बड़े शौक से 40 मिनट तक पैदल घूम-घूम कर देखा और एक-एक चीज की बारीकी से जानकारी ली। महाविहार घूमने के बाद राष्ट्रपति ने पुरातत्व विभाग के आगंतुक पुस्तिका में अपने हाथों से लिखा, “हैप्पी टू हैव विजिटेड दी विक्रमशिला यूनिवर्सिटी साईट, मेय इट सून रिगेन इट्स ग्लोरी।” जाहिर है यहां आकर उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था। उनके स्वागत में आई भीड़ को देखकर वो गदगद हो गए। उन्होंने कहा कि इतनी गर्मी में लोग मेरा स्वागत करने के लिए आएंगे, इसका मुझे कतई अंदाजा नहीं था। इस दौरान उन्होंने विक्रमशिला के गौरव को वापस हासिल कराने का भरोसा भी दिलाया।
पुरातत्व विभाग के अधिकारियों ने राष्ट्रपति की जिज्ञासा देखते हुए यहां के बारे में कई बातें संक्षेप में बताई। पुरातन विक्रमशिला विश्वविद्यालय भागलपुर के कहलगांव के अंतीचक में है। इसके इतिहास की जानकारी सन् 70 के दशक में खुदाई के दौरान मिली थी। यह कभी पूरे भारत में शिक्षा के प्रमख केंद्रों में से एक था। आठवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में पाल वंश के शासक धर्मपाल ने इसकी स्थापना की थी। यह महाविहार धर्म और अध्यात्म की ऊंचाई पर तकरीबन चार शताब्दी तक खास अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक केंद्र के रूप में जाना गया। बौद्ध ग्रंथों में भी इसका जिक्र प्रमुखता से है।
इस ऐतिहासिक स्थल को तिब्बती इतिहासकार भी मान्यता देते हैं। विक्रमशिला को विश्व में ख्याति दिलाने में आचार्य ज्ञान दीपंकर अतीश का नाम सबसे ऊपर माना जाता है। समकालीन व पूर्ववर्ती बौद्ध महाविहार की तुलना में विक्रमशिला तंत्र-मंत्र के पठन-पाठन की वजह से महत्वपूर्ण माना गया। बौद्ध भिक्षु आज भी अपनी साधना करने यहां आते है। फिर भी यह नालंदा की तरह विकसित नहीं हो पाया।
तेज धूप वह भी बगैर छाते के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने खुदाई में निकली एक-एक चीज के बारे में जानकारी ली। पुरातत्व विभाग के डा. डीएन सिन्हा ने उनके सवालों का जवाब दिया। उनके जानने की ललक ऐसी थी कि मुख्य स्तूप की 15 सीढ़ियां चढ़ गए। जब वे प्रदक्षिणा पथ के पहले तल पर चढ़े तो साथ चल रहे सुरक्षाकर्मियों ने थोड़ा इशारा किया तो वे रुक गए। उन्हें नालंदा और विक्रमशिला की भी तुलनात्मक जानकारी दी गई।
उन्होंने मनोती स्तूप, छात्रावास, फोटो प्रदर्शनी देखी। तंत्रयान और वज्रयान के उद्गगम के बारे में भी सवाल किया। म्यूजियम में रखे भग्नावशेषों को देखा। खुदाई में निकली भगवान् बुद्ध के जीवन चक्र को दर्शाने वाली पद्मासन मुद्रा की मूर्ति, महाकाल, सिंह के दो शारीर और एक मुख वाली मूर्ति, गणेश, उमा महेश्वर, सूर्य, नवग्रह बगैरह को काफी उत्सुकता से अवलोकन किया। वहां खुदाई में निकले शिलापट्ट जिसपर विक्रमशिला और इसके इतिहास को बड़े गौर से उन्होंने पढ़ा।
अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे वाकई विक्रमशिला महाविहार आने की अंदर से ललक रखे थे। अपने संबोधन में भी इसका खुलासा यह कहकर किया कि जब मैं पढ़ता था तभी से इसे देखने की तमन्ना थी, जो आज पूरी हुई।