बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सुशासन या उनकी सरकार का मुख्य स्तंभ यह है कि उन्होंने लालू प्रसाद सरकार के गुंडा राज को समाप्त कर दिया। 2004 के बाद से विभिन्न सरकारी स्रोतों से अपराध के आंकड़ों की तुलना से पता चलता है कि नीतीश सरकार के तीन कार्यकाल में हत्या के मामलों की संख्या गिरी है। वहीं फिरौती के लिए अपहरण, राजद के शासनकाल के बराबर हैं। लेकिन हत्या की कोशिश की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं।

लेकिन पिछले 10 साल के आंकड़े पूरी तरह अलग हैं। 2009 से 2019 के बीच बिहार में हत्या के मामलों में 5% की वृद्धि हुई है। इसके विपरीत, हत्या के मामलों की कोशिश 2004 की तुलना में 2019 में 148% अधिक थी। 2009 की तुलना में इसमें 143% वृद्धि हुई है। अपहरण के मामलों में आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि हुई है, 2004 से 2019 के बीच अपहरण के मामलों में 214% वृद्धि हुई है। 2019 के आंकड़ों से पता चलता है कि अपहरण के केवल 20% मामले गंभीर प्रकृति के थे। वहीं 80% महिलाओं को भागने के थे। बिहार में पिछले वर्ष फिरौती के लिए अपहरण के केवल 43 स्पष्ट मामले रिकॉर्ड किए गए हैं।

राजद और एनडीए दोनों सरकारों के तहत काम करने वाले बिहार पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि लालू प्रसाद के कार्यकाल में, पुलिस स्टेशनों में शायद ही कोई पुलिसकर्मी हुआ करता था। पिछले 15 वर्षों में पुलिस थानों में बल लगभग चार गुना बढ़ गया है। बीपीआरएंडडी से पुलिस बल के डेटा से पता चलता है कि बिहार पुलिस बल 2005 में लगभग 85,000 से 1.4 लाख तक बढ़ गया है।

इसके बाद भी बिहार में रिक्त पदों की संख्या सबसे ज्यादा है। नीतीश सरकार के कार्यकाल के दौरान, रिक्त पदों की संख्या बढ़ गई हैं। 2009 में पुलिस में 30% पद खाली थे यह संख्या 2019 में बढ़कर 38% हो गई है। अन्य आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि 2004 और 2019 के बीच बलात्कार में मामलों में 47% और डकैती में मामलों में 70% की कमी आई है। वहीं 2009 और 2019 के बीच डकैती के मामलों में 48% की वृद्धि हुई है।