देश में हिंदुओं के सबसे प्रमुख शहरों में से एक, अयोध्या में मांस के लिए जानवरों को मारने पर प्रतिबंध है। यहां किसी तरह का मीट न तो बिकता है, न ही शादियों-पार्टियों में परोसा जाता है। हालांकि साल में एक बार यहां की नगरपालिका मुस्लिमों के त्योहार बकरीद के मौके पर प्रतिबंध हटा लेती है। इस साल भी, प्रतिबंध हटा लिया गया है, हालांकि इसका कोई आधिकारिक आदेश नहीं दिया गया है। इकॉनमिक टाइम्स से बातचीत में नगरपालिका के एक अधिकारी कहते हैं, ”हर चीज दोनों समुदायों के बीच कमाल की समझ के चलते हो पाती है। मांस और बीफ पर तमात तरह के विवादों के बीच, मंदिरों का यह शहर धार्मिक सहनशीलता और दूसरे समुदाय की धार्मिक भावनाओं के सम्मान का बेहतरीन उदाहरण देता है।” अयोध्या के निवासी जमाल अख्तर बताते हैं, ”असल में, यह सिस्टम इतना रचा-बचा था कि पहले किसी ने इसे नोटिस ही नहीं किया। लेकिन, धार्मिक असहिष्णुता के माहौल में, जब खाने की आदत को लेकर लोगों पर हमले हो रहे हैं, अयोध्या एक उदाहरण तय करता है। अयोध्या में सैकड़ों मुस्लिमों द्वारा ‘कुर्बानी’ की प्रथा पर कभी किसी हिंदू धार्मिक नेता और महंत ने उंगली नहीं उठाई है।”
अयोध्या नगरपालिका के सभासद हाजी असद अहमद टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में कहते हैं, ”हम हमेशा अयोध्या में ‘कुर्बानी’ देते आए हैं। यहां भले ही जानवरों को मारने पर प्रतिबंध हो, मुस्लिम परिवार बिना किसी डर के बकरीद पर कुर्बानी देते हैं।” नगरपालिका के चेयरमैन राधे श्याम गुप्तम का कहना है, ”अयोध्या में ‘पंच कोसी’ के दायरे में जानवरों को मारने पर प्रतिबंध है, मगर बकरीद पर मुस्लिम अपने घरों में कुर्बानी देते हैं। लोगों को सिर्फ यह ध्यान रखना होता है कि सार्वजनिक जगहों पर किसी जानवर का वध न हो। इसके अलावा, घरों में ‘कुर्बानी’ पर कोई आपत्ति नहीं है।”
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बाबरी मस्जिद के सामने अपने पैतृक आवास में रहने वाले स्थानीय मुस्लिम नेता सादिक अली कहते हैं, ”हम अपने घरों के भीतर ‘कुर्बानी’ देते हैं। हम यहां सदियों से रह रहे हैं, कभी भी किसी हिंदू नेता की तरफ से कोई आपत्ति नहीं आई। उलटे, वे हमें दुआएं देते हैं।” बाबरी मस्जिद परिसर के सामने बने सरयू कुंज मंदिर के महंत युगल किशोर शरण शास्त्री ने कहा, ”कुर्बानी, बकरीद की सबसे महत्वपूर्ण प्रथा है। अगर हमारी मुस्लिम भाई अपने घरों के भीतर कुर्बानी देते हैं तो भला किसी को क्यों आपत्ति होगी? यह मुस्लिम समुदाय की धार्मिक भावनाओं के प्रति हमारी ईमानदार सहिष्णुता दिखाता है।”
