पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का अंतिम संस्कार राजघाट के समीप करने के फैसले के बाद अब सवाल है कि क्या अटल बिहारी वाजपेयी के खुद का निर्णय ‘अटल’ रह पाएगा। बता दें कि अटल बिहारी वाजपेयी पहले पूर्व प्रधानमंत्री हैं जिनका निधन केंद्रीय कैबिनेट के उस फैसले के बाद हुआ है जिसमें राजघाट पर किसी भी अति विशिष्ट जन की समाधि न बनाने का फैसला लिया गया था। बता दें कि अटल बिहारी वाजपेयी का अंतिम संस्कार राजघाट के समीप स्मृति स्थल पर किया जाना तय हुआ है।
राजघाट पर और समाधि न बनाने का सैद्धांतिक फैसला अटल बिहारी वाजपेयी का ही था जिसका प्रस्तार उनकी सरकार ने 2000 में किया था। एक आम स्मारक मैदान बनाने का सुझाव के साथ जो प्रस्ताव वाजपेयी के समय आया था उसमें कहा गया था- ‘अब से, सरकार निर्वाचित नेताओं के लिए कोई समाधि विकसित नहीं करेगी।’ इसपर कैबिनेट की मुहर तब लगी जब केंद्र में वाजपेयी की सरकार जा चुकी थी। 16 मई 2013 को मनमोहन सिंह की कैबिनेट ने इसे स्वीकृत कर लिया और परंपराओं पर विराम लगाना तय किया। इसके बाद से यह तय हुआ कि राजघाट पर किसी भी प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति (वर्तमान या पूर्व) की समाधि नहीं बनेगी।
मनमोहन कैबिनेट ने इस बाबत फैसला लेते समय इस बात का उल्लेख किया था कि यह फैसला उसी प्रस्ताव के आलोक में ही लिया गया है जो 2000 में आया था। साथ ही कैबिनेट ने अति विशिष्ट जनों के केवल अंतिम संस्कार के लिए एकता स्थल से सटे एक स्थल को बतौर श्मशान आरक्षित किया और इसे ‘राष्ट्रीय स्मृति’ नाम दिया। 16 मई 2013 के बाद किसी भी पूर्व प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति का अंतिम संस्कार राजघाट पर नहीं हुआ। लिहाजा फैसले का पेच नहीं फंसा था। हां, इसके बाद एक पूर्व राष्ट्रपति का निधन जरूर हुआ लेकिन उनका अंतिम संस्कार उनके गृह राज्य में हुआ। सवाल है कि क्या पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी की समाधि राजघाट पर बनेगी या नहीं?
समाधि स्थल की मांग को लेकर पहले भी विवाद हुए हैं। हाल ही में यह विवाद चेन्नई में सात-आठ अगस्त दरम्यान की रात उस समय खड़ा हुआ जब राज्य सरकार ने मामला अदालत में विचारधीन होने का हवाला देकर एम करुणानिधि को दफनाने के लिए मरीना बीच पर जगह देने से इनकार कर दिया। समर्थकों ने बीच का रास्ता निकाला और प्रसिद्ध मरीना बीच पर शवों के अंतिम संस्कार की इजाजत देने से रोकने का अनुरोध करने वाली एक जनहित याचिका को मद्रास हाई कोर्ट से वापस ले लिया गया। इसके लिए अदालत रात में बैठी। बहरहाल, राजघाट पर और समाधि बनाने के फैसले के पीछे कई तर्क थे। जिसमें सबसे प्रमुख जमीन की कमी और उनके रख-रखाव पर बढ़ता खर्च प्रमुख था। इसके अलावा विदेशों में इस बाबत चलन का हवाला भी दिया गया था। बता दें कि राजघाट पर तमाम समाधियों के नाम पर अब तक करीब 245 एकड़ जमीन दी जा चुकी है। प्रधानमंत्री, उपप्रधानमंत्री या राष्ट्रपति सरीखे लोगों की समाधि बनाने की कड़ी में यहां राष्ट्रपिता को छोड़ दें तो केवल संजय गांधी ही ऐसे व्यक्ति हैं जिनकी समाधि बिना किसी पद पर रहते हुए यहां बनाई गई।
