Wali Ahmad की रिपोर्ट: बिहार में विधानसभा चुनाव में अब एक महीने का समय ही रह गया है। सत्तासीन एनडीए की जेडीयू और भाजपा के साथ-साथ विपक्ष की राजद और कांग्रेस ने भी राज्य में चुनाव प्रचार शुरू कर दिए हैं। आगामी चुनाव में कौन सी पार्टी जीत हासिल करती है, यह तो राज्य में जीवंत मुद्दों के आधार पर तय होगा। हालांकि, उत्तरी बिहार के कुछ हिस्से ऐसे हैं, जहां कई सालों से नेता प्रचार के लिए तो आ रहे हैं, पर यहां बारिश के साथ ही हमेशा बाढ़ की जद में रहने वाले गरीब गांववासियों की समस्या खत्म करने के लिए कोई कदम नहीं उठा रहे हैं।
पूर्वी बिहार के अमोर विधानसभा क्षेत्र में ऐसे करीब 25 गांव हैं, जहां लोग हर साल बाढ़ से लेकर भयावह जमीन कटाव का भी सामना करते हैं। ऐसा ही एक गांव है मिर्चनटोला, जहां इन समस्याओं की वजह से इस साल ही 100 से ज्यादा परिवारों को अपना घर छोड़ना पड़ा है। ज्यादातर लोगों को अपने घरों को सरकार द्वारा बनाए गए राहत शिविरों में रहने को मजबूर होना पड़ा है। इन स्थितियों में सबसे ज्यादा परेशानी का सामना कम कमाई वाले दिहाड़ी मजदूरों को ही करना पड़ रहा है, क्योंकि जिनके पास ऊंचे स्थानों पर जमीन है, उन्होंने अपने लिए अस्थायी घरों का इंतजाम कर लिया है।

क्यों आती है गांववालों को हर साल दिक्कत: दरअसल, उत्तरी बिहार के इस क्षेत्र में पांच नदियों- महानंदा, कनकई, बकरा, परवन और मेची जैसी नदियों का जाल है। हर साल यहां भारी बारिश और बाढ़ की वजह से गांव में जलभराव की स्थिति पैदा हो जाती है, जिससे लोगों के रहन-सहन पर असर पड़ता है। यहां रहने वाले मोहम्मद इकरामुद्दीन का कहना है कि जो भी लोग बाढ़ की वजह से अपनी जमीन गंवा देते हैं, उनके पास जीने के लिए काफी कम साधन बचते हैं। जब बाढ़ का पानी हटता है, तो भी वे सिर्फ तरबूज ही उगा सकते हैं। पूरा क्षेत्र ही अब एक उपज पर निर्भर होता जा रहा है।

महानंदा नदी की सहायक कनकई नदी में बाढ़ की वजह से मिर्चनपुर से महज चार किलोमीटर दूर सूरजपुर गांव भी पूरी तरह डूब चुका है, जिससे ज्यादातर मजदूरों को कनकई के पास मिट्टी की सड़कों पर रहने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। चूंकि, यहां रहने वाले ज्यादातर मजदूरों के पास खुद की जमीन नहीं है, इसलिए सर्दी आने से पहले ही मांएं अपने बच्चों के साथ कैंप में रहने से डर रही हैं।
क्या कहते हैं इलाके के नेता: अमोर विधानसभा क्षेत्र से पिछली छह बार से कांग्रेस के अब्दुल जलील मस्तान विधायक हैं। उनका कहना है कि बाढ़ की वजह से जिन परिवारों से रहने की जगह छिन जाती है, उन्हें दोबारा बसाने में जमीन की कमी आड़े आती है। नियमों के मुताबिक, ऐसे हर एक परिवारों की जमीन के लिए 3 डेसिमल का खर्च सरकार उठाती है। लेकिन समस्या यह है कि क्षेत्र में जमीन ही नहीं बची। साथ ही अब सरकार द्वारा तय कीमतों और बाजार की कीमतों में जमीन-आसमान का अंतर है।
मस्तान से जब पूछा गया कि उन्होंने जमीन के कटाव को रोकने के लिए क्या कदम उठाए, तो वे इस सवाल से बचते नजर आए। हालांकि, उन्होंने कहा कि किनारों पर बांस से तटबंधी करना प्रभावकारी साबित नहीं हुआ। उन्होंने समस्या का ठीकरा प्रदेश सरकार पर फोड़ते हुए कहा कि राज्य के पास इस समस्या के निपटारे के लिए कोई नीति नहीं है। हालांकि, विधायक के इस बयान के उलट इस क्षेत्र के रहवासी कहते हैं कि सभी नेता सिर्फ वादे करते हैं, लेकिन देते कुछ नहीं।

