पटसन के बल पर पिछले 20 साल से शिल्प साधना में लगीं उत्तर प्रदेश के इटावा की मीरा पुरवार को हुनर का ऐसा महारथ हासिल है कि वे सामान्य कूड़े को भी इस समय घर की शोभा बढ़ाने वाला बना रही हैं। उनकी इसी शिल्प साधना को जिले के आइटीआइ से अल्पावधि, हस्तशिल्प प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के बल पर प्रदेश भर में पहचान दिलाने की मुहिम शुरू हुई है। उत्तर प्रदेश सरकार की मंजूरी के बाद पटसन को एक उद्योग के रूप में विकसित करने की भी योजना है। यह पहला मौका होगा जब हस्तशिल्प के क्षेत्र में पटसन की शिल्प कला को भी नया मुकाम मिलेगा।

20 साल पहले सामान्य भाषा में सन (डेंचा) के नाम से मशहूर पटसन को हाथ में लेकर इसे रेशम की तरह बुनने की ख्वाहिश रखने वालीं मीरा पुरवार ने शिल्प साधना को अपने जीवन का आधार बना लिया। शुरुआत निराशाजनक रही लेकिन 2004 में ताज महोत्सव में मीरा पुरवार की पटसन से बनाई गई जैकेट लोगों को भा गई। तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की पहल पर 2005-06 के लिए उन्हें राज्य दक्षता पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
साहित्य साधना के क्षेत्र में इटावा जिले की इस बेटी ने 1994 में हिंदी सेवा निधि के साहित्य पुरस्कार के जरिए प्रदेश भर में पहचान बनाई। अब तक मीरा हजारों बेटियों को पटसन का यह हुनर सिखा चुकी हैं। उनकी इसी कला को आइटीआइ के एमआइएस मैनेजर सरल कुमार यादव की पहल पर प्रदेश के आइटीआइ में बतौर कोर्स शामिल करने की मुहिम शुरू की गई है।

मीरा का सपना है कि वे एक ट्रेनिंग स्कूल की स्थापना करें जिसके लिए पटसन को एक उद्योग का दर्जा दिया जा सके। वे इस कला को तब तक जीवित रखना चाहती हैं जब तक लोग इस कला के महत्त्व को समझ नहीं जाते। हाल में कौशल विकास मिशन निर्देशालय को आइटीआइ में पटसन से जुड़े दो अल्पावधि पाठ्यक्रम शुरू करने के लिए स्वीकृति पत्र भी भेजा गया है। मंजूरी मिलते ही मीरा का यह हुनर प्रदेश भर की आइटीआइ में ट्रेड के रूप में भी शामिल होने की उम्मीद है। मीरा की अलख में उनके साथ जुटती प्रशिक्षण प्राप्त बेटियां भी उनकी इसी कला को आगे बढ़ाने में लगी हैं।

छोटी-छोटी चीजों पर छाया पटसन का जादू
मीरा पुरवार का हुनर कहें या उन्हें मिला कुदरत का तोहफा घरेलू सामान से लेकर कपड़ों तक सभी पर पटसन को मीरा ने अपने अनाखे अंदाज से सजाया है। घर की सजावट के छोटे-छोटे सामान गुड़िया, बॉल हैंगिंग, लैम्प, कार में लगाने वाले सजावटी सामान सहित अलंकरण के लिए नारियल, पटसन के बैच, आम की गुठली से बनी हुई कलाकृतियां, कूड़े के आइटम, पॉलीथिन से बने तकिये व देश का मानचित्र, पटसन बटुआ, पुराने निमंत्रण पत्रों से व्यवहार लिफाफा जैसी चीजें मीरा की काबिलियत के दम पर ही आज देखने को मिलती हैं।

कठिन है पटसन से सामान बनाने की कला
ग्रामीण क्षेत्र में होने वाले डेंचा को सरपता व सन के नाम से जाना जाता है। सामान्य तौर पर धान की फसल के बाद इसे खेतों पर उगाया जाता है। तेजी से बढ़ने के कारण ही इसे ग्रामीण भाषा में डेंचा कहा जाता है। सन के पेड़ की जड़ में नाइट्रोजन की मात्रा अधिक होती है। ऐसे में धान की फसल के बाद बड़ी मैथेन को बराबर करने के लिए किसान सन के पेड़ों को खेत में ही खाद की तरह प्रयोग करते हैं। कुछ किसान इससे रस्सी बनाने के लिए पेड़ की छाल को पानी में भिगौते हैं। कई दिन तक पानी में भीगने के बाद इसे पटक-पटक कर रेशम की तरह निकाला जाता है। मीरा पुरवार ने बताया कि सन के इन धागों को घंटों मेहनत के बाद कला के लिए प्रयोग करने योग्य बनाया जाता है।