बिहार के सहरसा से एम्स में दिखाने आए मरीज रोशन महतो (बदला नाम) को यह बात कहीं से गले नहीं उतर रही है कि उन्हें बीमारी के कारण दिक्कत तो अभी है लेकिन डॉक्टर उन्हे आज नहीं अगले दो महीने बाद देखेंगे। नामी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में देश भर से रेफ र होकर आने वाले गंभीर मरीजों को यहां देखा जाएगा या नहीं या कब देखा जाएगा यह डॉक्टर नहीं कंप्यूटर तय करने लगे हैं। डॉक्टर को दिखाने की प्रतीक्षा सूची कई महीने लंबी है।
इस लिहाज से परेशान मरीजों की सुनने वाला कोई नहीं है। कंप्यूटर से एक ओर समय लेकर भी पढ़े-लिखे जागरूक मरीज आते नही हैं दूसरी ओर सुबह से लाइन में लगे गरीब व ग्रामीण मरीजों का कार्ड तक नहीं बन पा रहा है। एम्स में कंप्यूटर आधारित व्यवस्था के बाद से यहां इलाज कराना आसान व पारदर्शी होने के बजाए और जटिल हो गया है। मरीजों को आॅनलाइन अपाइंटमेंट के बाद भी करीब तीन से चार जगह लाइन में लगना पड़ता है तब कहीं डॉक्टर के पास पहुंच पाते हैं। दूसरे मरीजों को अगली बार दिखाने के लिए भी समय लेने की अनिवार्यता के कारण सुबह से आए मरीज को डॉक्टर को दिखाने के बाद भी शाम तक लाइन में लगना पड़ता है। इससे अस्पताल परिसर में पूरे समय मरीजों की भारी भीड़ नजर आ रही है। ओपीडी मे पैर रखने की जगह नहीं होती।
मुसीबत यह भी है कि जिन मरीजों को यहां आकर पता चल रहा है कि उन्हें अभी डॉक्टर नहीं देखेंगे, वे कहां जाए क्या करें, समझ नहीं पाते। दर्द से जल्द निजात पाने के चक्कर में वे दलालों के चंगुल में फंस रहे हैं। दलाल कार्ड बनाने से लेकर डॉक्टर को दिखाने व जांच कराने जैसे हर काम के एवज में सुविधा शुल्क वसूल रहे हैं। दोबारा कैंसर के सिर उठाने से परेशान मरीज एपोन वर्गीज (बदला नाम) ने बताया कि उनक ा एक बार कंैसर का आॅपरेशन हो चुका है और फिर जांच व इलाज होना है। दुबारा यह बीमारी सिर उठा रही है। इतने गंभीर हालत में भी यहां समय मिलने में देरी हो रही है। जबकि शुगर के कारण उन्हें दो नए विभाग में दिखाने के लिए भी कहा गया है जिसका समय काफी आगे का मिल रहा है। उन्हें 20 दिन बाद का समय दिया गया जबकि कैंसर के मरीज के लिए एक एक दिन का इंतजार भी भारी है। दस जून को दिखाने आए मरीज ने बताया कि उन्हें तीन महीने पहले आज का समय दिया गया था।
सीआरपीएफ कैंप से अपने सहकर्मी क ो दिखाने आए जवान सुखदेव ने बताया कि वे सुबह से आए हैं। एक-एक करके चार जगह लाइन लग चुके, जबकि आॅनलाइन पहले से समय ले रखा था। यहां पहले लाइन में लगने के बाद एक परची मिली उसे लेकर फार्म भरे फि र काउंटर पर लाइन लगे तब जाकर कार्ड मिला। उसमें तारीख डलवाने के लिए अलग लाइन में दोपहर होने को आई। लेकिन अभी तक डॉक्टर के पास नहीं पहुंच पाए हैं।
अपनी बहन को दिखाने आए रोशन ने कहा कि ससुराल से आई थी तो सोचा कि पेट में दिक्कत है ला कर दिखा दूं। लेकिन यहां दो महीने बाद बुला रहे हैं फिर वह कहां आ पाएगी। इस्माइलपुर से पैर दिखाने आई अनिता ने कहा कि हड्डी वाले डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने हृदय रोग विशेषज्ञ के पास भेजा। दो महीने से भटक रहे हैं, अभी तक नहीं दिखा पाए हैं। डॉक्टर अभी पूरी तरह से उनका मर्ज पकड़ नहीं पाए हैं। यहां मरीजो को पहले स्मार्टकार्ड दिया जाता है जिस पर यूएचआइडी नंबर दिया रहता है। इसे दिखा कर फि र अंत में हाथ से लिखी एक पर्ची भी दी जाती है। कार्ड में स्टिकर के लिए भी लाइन में लगना पड़ता है। फिर ओपीडी में दाखिल होने के लिए हाथ में एक पट्टी लगाई जाता जाती है। इसके बिना जो भी मरीज या तीमारदार ओपीडी में दिख जाए उन्हें बाहर खदेड़ दिया जाता है।