अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में इलाज व जांच की कीमतें बढ़ाने के प्रस्ताव के जरिए एम्स के व्यवसायीकरण की कोशिशें की जा रही हैं। इस मसले पर एम्स निदेशक की ओर से उनकी अगुआई में बनी शुल्क समीक्षा समिति की बैठक में तमाम विभागाध्यक्षों की ओर से इस प्रस्ताव का विरोध किया गया। साथ ही अन्य मुफ्त जांच सेवाएं बढ़ाने की वकालत की गई है। महंगाई व नोटबंदी की मार से अभी लोग उबर भी नहीं पाए थे कि सरकार एम्स की आमदनी बढ़ाने के लिए मरीजों की जेबों पर भी बोझ डालने की तैयारी करने लगी है। इस बारे में बनी समिति की बैठक में भी कई विभागाध्यक्षों ने इसका विरोध किया है। इसके लिए जनवरी में हुई पहली बैठक में ही विरोध हुआ। इस प्रस्ताव पर बैठक में तामाम विभागाध्यक्षों ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए इसका विरोध किया। बैठक के मिनट्स छह फरवरी को तैयार किए गए। इस मिनट्स के रपट के मुताबिक, एम्स के गैस्ट्रो विभाग के अध्यक्ष डॉक्टर अनूप सराया ने एम्स में मरीजों की जांच व इलाज के शुल्क में किसी तरह की बढ़ोतरी का कड़ा विरोध किया है।

उन्होंने है कि पहले के शुल्क बढ़ोतरी पर विश्व स्वास्थ्य संगठन के विशेषज्ञों ने भी चिंता जाहिर की है। एम्स कार्यप्रणाली पर स्थाई संसदीय समिति ने 2015 की रिपोर्ट में एम्स के इलाज के खर्चे पर चिंता जताई है। इस रिपोर्ट में संसदीय समिति ने कहा कि है इलाज का खर्च उठा कर हर साल देश में दो करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे चले जाते हैं। इस लिए एम्स में यूजर चार्जेज नहीं होना चाहिए। संसदीय समिति ने यह भी कहा है कि एम्स में जांच की सुविधाएं बढ़ाई जानी चाहिए क्योंकि एम्स के जो मरीज बाहर से जांच कराते हंै वे निजी जांच प्रयोगशालाओं को रोजाना 101.5 करोड़ का कारोबार देते हैं।

समिति के अध्यक्ष ने कहा कि इस पर और अधिक चर्चा करने की जरूरत है। 16 सदस्यीय समिति के मिनट्स में दर्ज डॉक्टर जीएस टिटियाल (आरपी सेंटर) ने इसके पक्ष में दलील दी है। वित्तीय सलाहकार राजकुमार न गरीबी रेखा के नीचे के मरीजों को किसी भी तरह के शुल्क से मुक्त रखने और निजी वार्ड वाले मरीजों पर भारी शुल्क लगाने की वकालत की है। इसका डीडीए व अध्यक्ष ने समर्थन किया। न्यूक्लियर मेडिसिन के विभागाध्यक्ष डॉक्टर सीएस बाल ने उन मरीजों के जांच शुल्क में रियायत खत्म करने की मांग की है जो कैंसर जैसी बीमारी का निजी अस्पताल में इलाज कराते हंै और एम्स में ‘पेट स्कैन’ जांच कराने आते हंै। मेडिसिन विभाग की डॉक्टर रीता सूद ने साधारण रूप से गरीब मरीजो को भी छूट दिए जाने की वकालत की और कहा कि यह छूट देने का काम अकेले विभागाध्यक्ष नहीं कर सकता। इसलिए और संकाय सदस्यों को भी इसके लिए अधीकृत किया जाए। इस बाबत नया सर्कुलर जारी करने की मांग भी की गई है।