दलितों के अधिकारों के लिए आवाज उठाने वाले तेलुगू के मशहूर लेखक कांचा इलैया का कहना है कि भारत में अब दलितों के ऊपर प्लानिंग के साथ हमला किया जाता है। उन्होंने कहा है कि भारत में दलित होना अब पहले की तरह नहीं है बल्कि उनके ऊपर पूरी योजना के साथ अटैक होता है। द न्यूज मिनट के मुताबिक इलैया ने कहा, ‘भारत में दलित होना एक भैंस होने जैसा है। भैंस सबको बहुत ज्यादा दूध देती है, लेकिन उसे गाय की तरह पूजा नहीं जाता। ऐसी ही स्थिति दलितों की भी है। दलित भी देश में सबसे ज्यादा काम करते हैं। दलित का मतलब ही रचनात्मकता और उत्पादकता है, लेकिन उन्हें मंदिर के अंदर घुसने तक की अनुमति नहीं है। उन्हें अन्य पिछड़े समुदायों के साथ मिलकर इन सबके खिलाफ लड़ना चाहिए। सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि इस देश में ओबीसी लोगों की संख्या काफी ज्यादा है, लेकिन उनके पास डॉक्टर भीम राव अंबेडकर जैसा कोई दार्शनिक नहीं है।’

कोझिकोड में आयोजित हुए केरल लिटरेचर फेस्टिवल में इलैया ने कहा कि देश में निम्न जाति के लोगों को बड़े से बड़ा लक्ष्य रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि निम्न वर्ग के लोगों को जमीन से जुड़ी छोटी-मोटी लड़ाई देश में ना लड़ते हुए अमेरिका का राष्ट्रपति बनना चाहिए, ऐसा ही कुछ बड़ा लक्ष्य रखना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘बड़ा उद्देश्य रखो, बाकि सबका कोई भी उपयोग नहीं है।’

इसके अलावा उन्होंने दलितों से सड़क निर्माण और साफ-सफाई जैसा काम ना करने की भी बात कही। अंग्रेजी और तेलुगू के इस मशहूर लेखक और दलित कार्यकर्ता ने कहा, ‘ये सारे काम ब्राहम्ण और बनिया लोगों को करने दो। अगर वे नहीं करते हैं तो इसका नतीजा देश को भुगतने दो। गंदगी होने दो पूरे देश में। अगर दलित कचरा साफ नहीं करेंगे तो स्वच्छ भारत कैसे होगा? केरल में दलितों के अलावा और कोई भी जाति का व्यक्ति कचरा नहीं उठाता। काम दलित कर रहे हैं और सोसायटी ब्राह्मणवाद की तरफ बढ़ रही है।’ उन्होंने कहा कि अच्छी बात है कि देश में बीजेपी का शासन है, नहीं तो जाति के मुद्दे पर कभी चर्चा भी नहीं होती। इलैया ने कहा, ‘अगर जाति पर चर्चा ही नहीं होगी तो खुलासा कैसे होगा और जाति पर चर्चा नहीं होना दलितों के लिए सही नहीं है। कम्युनिस्ट लोग और कांग्रेस के लोग जाति की बात को सामने आने ही नहीं देते हैं। धर्मनिरपेक्षता के नाम पर, वे धार्म के मामले में चर्चा करने से बचते हैं।’