संसदीय सचिवों की नियुक्ति को लेकर केजरीवाल सरकार विवादों में हैं। हालांकि, हरियाणा की बीजेपी सरकार ने भी 23 जुलाई 2015 को चार मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति की थी। विधानसभा में 90 सदस्य हैं। राज्य में 14 (15%) से ज्यादा मंत्री नहीं बनाए जा सकते। इसमें हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर को मिलाकर 13 मंत्री हैं।
नियमों में किया गया बदलाव: द हरियाणा स्टेट लेजिसलेर (प्रिवेंशन ऑफ डिस्क्वालिफिकेशन एमेंडमेंट एक्ट 2006) संसदीय सचिव के पद को ‘ऑफिस ऑफ प्रॉफिट’ या लाभ के पद से अलग रखता है।
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कैसे दी गई चुनौती: हरियाणा में मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति के बाद एडवोकेट जगमोहन सिंह भट्टी पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट चले गए। भट्टी ने कोर्ट में कहा कि ये नियुक्तियां 2004 के 91वें संविधान संशोधन एक्ट के मकसद को चुनौती देती हैं। यह संशोधन मंत्रियों की संख्या को कुल एमएलए की संख्या के 15 पर्सेंट होने की सीमा तय करता है। सरकार ने जवाब दिया कि मुख्य संसदीय सचिव न तो मंत्री हैं और न ही उप मंत्री। उनके पास कोई ऑफिस नहीं है। हरियाणा सरकार ने यह भी दलील दी कि वे जनहित में मंत्रियों की मदद के लिए नियुक्त किए गए हैं। यह भी कहा कि हरियाणा और पंजाब के बनने के बाद से वहां संसदीय सचिवों की नियुक्तियां होती रही हैं। यह केस हाईकोर्ट में लंबित है।
सैलरी और सुविधाएं: मुख्य संसदीय सचिवों को विधायकों जितनी तन्ख्वाह मिलती है। विधायकों की तरह वे सरकारी गाड़ी और सस्ती दरों पर रहने के लिए घर पाने और भारत या विदेश में 2 लाख रुपए तक की मुफ्त यात्रा करने के लिए हकदार हैं।
क्या कहना है राज्य सरकार का: हरियाणा के एडवोकेट जनरल बलदेव राज महाजन के मुताबिक, ‘हमने एक्ट में बदलाव करके चीफ पार्लियामेंट सेक्रेटरी को ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के दायरे से बाहर रखा है। सीपीएस को मंत्री या उप मंत्री का दर्जा नहीं हासिल है। वे खुद से फैसले नहीं लेसकते। वे मंत्रियों की मदद करने के लिए हैं। चूंकि वे अन्य विधायकों के मुकाबले अतिरिक्त काम करते हैं, इसलिए उन्हें जरा सा अतिरिक्त फायदा मिलता है।’