वित्तमंत्री अरुण जेटली ने आम बजट असाधारण पृष्ठभूमि और विशेष परिस्थितियों के बीच पेश किया है। नीतिकारों के अलावा आम जनता की रुचि भी इस बार सामान्य से ज्यादा थी। अगले साल सरकार पर 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों का दबाव रहेगा, इसलिए कारोबारी तबके और आर्थिक सुधारों के पक्षधर लोग भी इस बजट को गौर से देख रहे थे। उम्मीदों के बोझ और आर्थिक सुधारों की धार के बीच कदमताल करते हुए वित्तमंत्री ने बजट में मध्यमार्ग अपनाया है।
नोटबंदी ने अर्थव्यवस्था की जड़ों को हिलाया है। इसका वास्तविक असर चालू वित्तवर्ष की अंतिम तिमाही में देखने को मिलेगा, लेकिन विकास दर मंद पड़ने के विश्वसनीय संकेत मिल चुके हैं। विदेशी निवेश की आमद नरम हुई है, वहीं भारत का विदेश व्यापार भी बीते पंद्रह माह से नकारात्मक दिशा से वापस मुड़ नहीं पाया है। ऐसी घरेलू परिस्थितियों को विकास के माकूल नहीं माना जा सकता। वैश्विक स्तर पर तेल और विभिन्न जिंसों की कीमतों में बीते तीन सालों से रही नरमी अब खत्म होने की दिशा में बढ़ चली है। अमेरिका और पश्चिमी यूरोप जैसे बाजारों में सुस्ती है और राजनीतिक अवरोधों ने कारोबार की राह मुश्किल बना रखी है। इस तरह के चुनौतीपूर्ण घरेलू और वैश्विक माहौल में वित्तमंत्री के सामने सबसे बड़ी चुनौती निवेश और कारोबार की राहें आसान करना था, ताकि तेज विकास दर सुनिश्चित की जा सके। बजट में इस मोर्चे पर कुछ लीक से हट कर घोषणाएं की गई हैं। वित्तमंत्री ने विदेशी निवेश प्रोत्साहन बोर्ड (एफआईपीबी) को समाप्त करने का ऐलान किया है। यह निकाय देश में आने वाले विदेशी निवेश के प्रस्तावों की वैधता की जांच-परख करता था। उम्मीद के मुताबिक उद्योग जगत और विदेशी निवेशकों ने इस फैसले का स्वागत किया है।
वित्तमंत्री ने अलग-अलग क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर लगी सीमाएं भी हटा ली हैं या कुछ मामलों में कम की हैं। निवेश को बढ़ावा देने के लिहाज से यह स्वागतयोग्य कदम है, लेकिन यह देखना होगा कि निवेश प्रस्तावों के चयन और मंजूरी देने की प्रक्रिया में कितना सुधार किया जाता है।
निवेश के अलावा फिलवक्त भारतीय अर्थव्यवस्था की दूसरी बड़ी समस्या बैंकिंग क्षेत्र का संकट है। बड़े स्तर पर जहां बैंकिंग क्षेत्र के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तय किए बैसल-3 मानकों को पूरा करने के लिए भारतीय बैंकों को पूंजी की जरूरत है वहीं सूक्ष्म स्तर पर फंसे कर्जों की वजह से बैंकों की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (एनपीए) बढ़ती जा रही हैं। भारत में कुल बैंकिंग कारोबार के तीन-चौथाई हिस्से पर सरकारी बैंकों का कब्जा है और उनकी सबसे बड़ी शेयरधारक भारत सरकार है। बजट में वित्तमंत्री ने सरकारी बैंकों के पुनर्पूंजीकरण के लिए दस हजार करोड़ रुपए का आवंटन किया है। दिक्कत यह है कि बेसल-3 मानकों के परिपालन में पुनर्पूंजीकरण के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को तीन लाख करोड़ रुपए की जरूरत है। ऐसे में महज दस हजार करोड़ रुपए का बजटीय आवंटन ऊंट के मुंह में जीरे के माफिक है।
बैंकों के फंसे कर्जों के संबंध में वित्तमंत्री का एक और एलान अहम है। जान-बूझ कर कर्ज अदा न करने वालों और चिटफंड जैसे तरीकों से आर्थिक धोखाधड़ी करने वालों पर नकेल कसने के लिए ऐसे लोगों की संपत्तियां जब्त करने की भी बजटीय घोषणा की गई है। जानकारों के मुताबिक बैंकों के फंसे कर्जों में बड़ी कंपनियों और मोटी आमदनी वाले लोगों की हिस्सेदारी तीन-चौथाई के करीब है। वित्तमंत्री ने साठगांठ वाले पूंजीवाद (क्रोनी कैपिटलिज्म) पर निगाहें कड़ी करने का संदेश बजट में दिया है। इसी क्रम में बड़ी कंपनियों (50 करोड़ से ज्यादा टर्नओवर) के लिए निगम कर में छूट नहीं दी गई है। कर के मोर्चे पर वित्तमंत्री ने बजट में सावधानी के साथ जहां ज्यादा कर राहतों की घोषणाएं न करके वित्तीय अनुशासन का दामन नहीं छोड़ा है वहीं समझदारी से कर राजस्व में हुए इजाफे का उपयोग प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में किया है। व्यक्तिगत करदाताओं और कंपनियों के लिए प्रत्यक्ष कर राहतों की घोषणाएं नहीं की गई हैं, जिसके चलते इन तबकों में मायूसी हो सकती है। हालांकि कर की नई प्रणाली ज्यादा तार्किक और प्रगतिशील है।
बजट में बड़े पैमाने पर कर छूट दिए जाने का अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ता रहा है और वित्तमंत्री ने इस दिशा में संयम बरत कर अर्थव्यवस्था के दूरगामी हितों का खयाल रखा है। बजट में कंपनियों पर लगने वाले निगम कर को दो भागों में विभाजित करने की घोषणा की गई है। पचास करोड़ से कम टर्नओवर वाली मध्यम दर्जे की कंपनियों के लिए निगम कर की दर घटा कर पचीस फीसद कर दी गई है। इसका खतरा यह है कि लोग जटिल मालिकाना संरचना के जरिए बड़ी कंपनी को छोटी-छोटी कंपनियों में विभाजित कर लेंगे, ताकि निगम कर के रूप में मिलने वाली राहत का फायदा उठाया जा सके। परोक्ष करों के मोर्चे पर वित्तमंत्री ने ज्यादा छेड़खानी नहीं की है, क्योंकि अगले साल से वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू होना है।
नोटबंदी से प्रभावित हुए आम आदमी, किसान, युवा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के घावों पर भी मलहम लगाने का बंदोबस्त बजट में किया गया है। मई 2018 में सौ फीसद ग्रामीण विद्युतीकरण का लक्ष्य हासिल करने की बजटीय घोषणा गावों के जनजीवन और अर्थव्यवस्था के लिहाज से अहम है। छोटे कारोबारियों और नए युवा उद्यमियों की वित्त संबंधी जरूरतों को पूरा करने पर बल देते हुए मुद्रा योजना का कर्ज संबंधी लक्ष्य दोगुना करके दो लाख चौवालीस हजार करोड़ कर दिया गया है। सरकार डिजिटलीकरण को बढ़ावा देने के अपने वादे पर कायम है। आइआरसीटीसी वेबसाइट के जरिए भारतीय रेल की टिकटें आरक्षित करते समय लगने वाले सेवा कर को समाप्त कर दिया गया है। नए वित्तवर्ष में दस लाख करोड़ रुपए के कृषि ऋण प्रदाय करने का लक्ष्य रखा गया है जो पूंजी के अभाव का सामना कर रहे किसानों के लिए अच्छी खबर है। मिट्टी की तासीर के मुताबिक खेती को बढ़ावा देने के लिए देश के हर जिले के कृषि विज्ञान केंद्र में मृदा परीक्षण प्रयोगशाला खोलने की बात भी कही गई है।
अक्सर बजट में घोषणाएं तो कई हो जाती हैं, लेकिन उनका धरातल पर क्रियान्वयन नहीं हो पाता है। घोषणा और क्रियान्वयन के बीच के इसी फासले को कम करने के लिए इस बार बजट में अलग से तीन हजार करोड़ रुपए का इंतजाम किया गया है, ताकि बजट में की गई घोषणाओं को समयसीमा के भीतर लागू किया जा सके। पहली दफा रेल बजट भी आम बजट में समायोजित करके पेश किया था। हालांकि रेल यात्रियों की सुविधा के हिसाब से कई छोटी घोषणाएं की गई हैं। बड़ी घोषणा में, बीते दिनों हुई रेल दुर्घटनाओं के बीच रेल यात्रियों की सुरक्षा के लिहाज से एक लाख करोड़ रुपए की निधि से राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष का गठन किया गया है। बजट में वित्तीय जवाबदेही पर जोर दिया गया है। यह जवाबदेही राजस्व घाटे, कर्ज के स्तर और राजस्व घाटे के आंकड़ों में दिखाई देती है। वित्तवर्ष 2017-18 में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 3.2 फीसद रहने का भरोसा जताया गया है, जो 2003 में पारित राजकोषीय जवाबदेही और बजट प्रबंधन एक्ट के मानकों के अनुरूप ही है। बहरहाल, वित्तमंत्री ने एक ऐसा बजट पेश किया है, जो औसत से बेहतर है और अर्थवयवस्था को मौजूदा चुनौतियों के भंवर से निकालने में सक्षम हैं। अगर ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए किसी ठोस योजना की घोषणा की जाती तो यह बजट आसानी से क्रांतिकारी बजट हो सकता था।