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पीवी सिंधू ने रियो ओलंपिक्स में इतिहास रच दिया। भारतीय ओलंपिक इतिहास में वह सबसे बड़ा पदक जीतने वाली खिलाड़ी बनने जा रही है। वे पहली भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी हैं जो ओलंपिक के फाइनल में पहुंचीं। उन्होंने लगातार दो मुकाबलों में अपने से ऊंची रैंक की खिलाडि़यों को मात दी। पहले उन्होंने चीन की स्टार प्लेयर वान यिहांग को लगातार सेटों में हराकर बाहर किया। इसके बाद जापान की नोजोमी ओकुहारा को इकतरफा मुकाबले में हराया। इन दोनों खिलाडि़यों के खिलाफ सिंधू का रिकॉर्ड खराब रहा था लेकिन खेलों के सबसे बड़े मंच पर सिंधू भारी पड़ीं। दिग्गज बैडमिंटन खिलाड़ी पुलेला गोपीचंद ने उन्हें इस खेल के गुर सिखाए। सिंधू ने उन्हें देखकर ही वॉलीबॉल की जगह सात साल की उम्र में ही रैकेट थाम लिया। सिंधू के इस मुकाम तक पहुंचने की कहानी इतनी सरल नहीं है। सफलता पाने के लिए सिंधू को कई कुर्बानियां देनी पड़ी। (Photo:Instagram)
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सिंधू का जन्म हैदराबाद में हआ। उनके माता-पिता दोनों वॉलीबॉल के खिलाड़ी थे इसलिए एथलेटिसिज्म उनके जीन में ही था। उनका पूरा पुसरला वेकंट सिंधू है।सिंधू के पिता को वॉलीबॉल में अहम योगदान के लिए 16 साल पहले अर्जुन अवार्ड भी मिला था। गोपीचंद ने जब साल 2001 में ऑल इंग्लैंड ओपन बैडमिंटन खिताब जीता तो सिंधू का मन इस खेल की ओर गया। शुरुआत में उन्होंने महबूब अली से ट्रेनिंग ली। गोपीचंद से ट्रेनिंग लेने को सिंधू 56 किलोमीटर का सफर तय करती थी। उन्हें जानने वालों का कहना है कि सिंधू कभी अभ्यास के लिए लेट नहीं हुई। (Photo SOurce: Instagram)
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पुलेला गोपीचंद काफी सख्त ट्रेनिंग के लिए जाने जाते हैं। वे अपने शिष्यों के खेल के साथ ही उनकी फिटनेस पर भी बराबर नजर रखते हैं। इसी के चलते उन्होंने सिंधू के चॉकलेट और हैदराबादी बिरयानी खाने पर रोक लगा दी। यहां तक किसी तरह के इंफेक्शन या डोप से बचने के लिए उन्होंने दोनों को बाहर का पानी पीने से भी मना किया था। गोपी ने प्रसाद के रूप में मिलने वाली मिठाइयों पर भी यही नियम लागू किया। ओलंपिक खेलों के दौरान सिंधू को गोपीचंद के साथ खाना खाने के निेर्देश दिए गए थे। सिंधू और श्रीकांत के लिए गोपी ने अपनी नींद में कटौती भी कर ली थी। वे रात को 2 बजे ही उठ जाया करते थे। (File Photo)
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पीवी सिंधू ओलंपिक में पहली बार पहुंची है और पहले ही प्रयास में उन्होंने पदक तय कर लिया। सिंधू ने 18 साल की उम्र में अर्जुन अवार्ड जीत लिया था। साथ ही वह सबसे कम उम्र में पद्मश्री से नवाजी जाने वाली शख्सियत भी हैं। रियो में पदक के साथ ही उन्हें खेल रत्न मिलने की संभावना भी बढ़ गई है।
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सिंधू सुबह साढ़े चार बजे उठकर अपनी प्रेक्टिस शुरू करती हैं। वे इकलौती भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी हैं जिन्होंने वर्ल्ड चैंपियनशिप में पदक जीते हैं। गोपीचंद की एकेडमी से जुड़ने के बाद सिंधू ने कई खिताब अपने नाम किए। गोपी उनके बारे में कहते हैं, 'सिंधू कभी हार नहीं मानती, यही बात उसे औरों से अलग बनाती है।' (Express Archive)
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सिंधू ने अब तक 6 अंतरराष्ट्रीय खिताब जीते हैं, हालांकि उनके नाम एक भी सुपर सीरिज नहीं है। सिंधू अपने प्रदर्शन की बदौलत टॉप-10 खिलाडि़यों में भी जगह बना चुकी है। लेकिन चोटों के चले उनके कॅरियर को काफी नुकसान पहुंचा है।
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सिंधू की सफलता के लिए उनकी मां कोच गोपीचंद को श्रेय देती हैं। उन्होंने बताया कि वह और गोपी लगातार कड़ी मेहनत कर रहे थे। हम उनके लिए रोज मंदिर जाते थे।
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सिंधू के साथ ही किदाम्बी श्रीकांत भी पुलेला गोपीचंद के ही शिष्य हैं। श्रीकांत को क्वार्टरुाइनल में चीन के लिन डैन से हार झेलनी पड़ी थी। (Photo SOurce: Instagram)
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पीवी सिंधू इंस्टाग्राम पर काफी एक्टिव हैं। (Photo SOurce: Instagram)