-  

विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन महाकुंभ केवल एक आयोजन नहीं बल्कि आस्था, अध्यात्म और सामूहिकता की अद्भुत शक्ति का प्रतीक है। यहां संत-महंत, ऋषि-मुनि, ज्ञानी-विद्वान और आम जन सब एक हो जाते हैं। (Photo: PTI)
 -  
ऐसा समागम कहीं और देखना दुर्लभ है। महाकुंभ हो या कुंभ सबसे ज्यादा चर्चा में नागा, साधु, संत और महात्मा रहते हैं। महाकुंभ में बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर तीसरा अमृत स्नान था और इसी के बाद नागा साधु वापस जाने लगे हैं। (Photo: PTI)
 -  
हालांकि, महाकुंभ का समापन अभी नहीं हुआ है। महाकुंभ 2025 का समापन 26 फरवरी महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर होगा। इस दिन महाकुंभ का आखिरी महास्नान होगा। (Photo: Indian Express)
 -  
साधु, संत और नागाओं का महाकुंभ से वापस जाने का सिलसिला बसंत पंचमी यानी तीसरे अमृत स्नान के बाद से शुरू हो गया है। सभी नागा साधु अपने-अपने अखाड़ों के साथ वापसी यात्रा शुरू कर दी है। (Photo: Indian Express)
 -  
लेकिन क्या आपको पता है कि महाकुंभ को छोड़ने से पहले ये नागा साधु और संत कढ़ी-पकोड़ा क्यों खाकर विदा होते हैं। उनके लिए विशेष कढ़ी और पकौड़ी तैयार की जाती है। (Photo: Mahakumbh/Twitter)
 -  
कौन बनाता है?
इस कढ़ी और पकोड़े को तैयार करने की जिम्मेदारी वहां के स्थानीय मूल निवासी समुदाय की होती है। (Photo: Indian Express) कौन था पहला ‘अघोरी’? क्यों खाते हैं इंसानों की अधजली मांस -  
संस्कार
कढ़ी और पकौड़ी खाने की परंपरा हर अखाड़े में देखने को मिलती है। प्रयागराज के नाई व उनके परिवार के सदस्य साधु-संतों के लिए कढ़ी-पकोड़ा बनाते हैं। इसे संतों की विदाई का शुभ संस्कार भी माना जाता है। (Photo: PTI) -  
वर्षों पुरानी है परंपरा
महाकुंभ मेले से अपने मूल स्थान पर लौटने से पहले साधु बिना कढ़ी-पकौड़ी खाए प्रस्थान नहीं करते हैं। यह परंपरा वर्षों पुरानी है जो अब तक चली आ रही है। (Photo: PTI) -  
एकता का प्रतीक
यह रस्म अखाड़ों के संतों के आपसी भाईचारे और समरसता को दर्शाती है। इसमें अलग-अलग अखाड़ों के संत इकट्ठा होते हैं और सामूहिक रूप से कढ़ी-पकोड़ी का प्रसाद ग्रहण करते हैं। (Photo: Mahakumbh/Twitter) सुबह कितने बजे उठ जाते हैं नागा साधु, कैसा होता है दिन का रूटीन -  
सात्विक होता है
इसके साथ ही कढ़ी और पकोड़े को शुद्ध और सात्विक माना जाता है। कढ़ी-भाजी को विशेष विधि से बनाया जाता है जिसमें पूरी तरह से सात्विक और शुद्ध सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है। (Photo: PTI) -  
मान्यता
मान्यता है कि इस साधु-संतों को कढ़ी-पकौड़ी खिलाकर विदा करने से उनका आशीर्वाद मिलता है। (Photo: PTI) -  
विदाई की भी है परंपरा
विदाई होने से पहले साधु-संत इष्ट देव की स्थापना करता है। वो अपने धर्म ध्वजा के नीचे स्थापित इष्ट देव को पहले अंदर कक्ष में ले जाते हैं। इसके बाद अखाड़े के संत मिलकर पूर्णाहुति हवन करते हैं। (Photo: Mahakumbh/Twitter) -  
विदाई का प्रतीक
हवन के बाद धर्म ध्वजा की रस्सी को अखाड़े के साधु-संत ढीला कर देते हैं। ये विदाई का प्रतीक है। इसके बाद अष्ट कौशल के संत अपने भाले को लेकर पैदल अपने स्थायी कार्यालय जाते हैं। (Photo: Mahakumbh/Twitter) -  
भोज के बाद विदाई
फिर संत छावनी में आकर स्नान करते हैं और वस्त्र धारण कर कढ़ी-पकोड़ा भोज करके प्रयागराज से विदा हो जाते हैं। (Photo: PTI) सिर्फ शिव जी ही नहीं इन देवताओं की भी नागा साधु करते हैं पूजा, ऐसा होता है भोजन