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जैन धर्म में आहार से जुड़े कई सख्त नियम होते हैं, जिनका पालन अनुयायी अहिंसा और आध्यात्मिक शुद्धता के सिद्धांतों के तहत करते हैं। जैन समुदाय में शाकाहार का एक विशिष्ट रूप प्रचलित है, जिसमें केवल लैक्टो-शाकाहारी (दूध और उससे बने पदार्थों सहित) भोजन को स्वीकार किया जाता है, लेकिन जड़ और भूमिगत उगने वाली सब्जियों को पूरी तरह से त्याग दिया जाता है। (Photo Source: Pexels)
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जैन धर्म में जड़ वाली सब्जियां वर्जित क्यों हैं?
जैन धर्म में अहिंसा (Non-Violence) का विशेष महत्व है। इस सिद्धांत के आधार पर जड़ वाली सब्जियों को भोजन के रूप में ग्रहण करने से बचा जाता है। इसके मुख्य कारण हैं:
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पौधे को नुकसान – जड़ वाली सब्जियों को उखाड़ने से पूरा पौधा नष्ट हो जाता है, जिससे उसका जीवन समाप्त हो जाता है। जैन धर्म में जीवों के साथ-साथ वनस्पतियों के संरक्षण का भी ध्यान रखा जाता है। (Photo Source: Pexels)
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मृदा जीवों का विनाश – भूमिगत सब्जियों को निकालते समय मिट्टी में रहने वाले छोटे जीवों (कीटाणु, सूक्ष्म जीव) की हत्या हो सकती है, जो जैन धर्म की अहिंसा भावना के विरुद्ध है। (Photo Source: Pexels)
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आध्यात्मिक शुद्धता – ऐसा माना जाता है कि जड़ वाली सब्जियां कुछ प्रकार की अशुद्धियों को जन्म देती हैं और शरीर में आलस्य तथा तामसिकता को बढ़ावा देती हैं। (Photo Source: Pexels)
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पर्यावरण संतुलन – जैन धर्म में यह भी माना जाता है कि पत्तों और फलों को खाने से पौधे जीवित रहते हैं और पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में मदद मिलती है। (Photo Source: Pexels)
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क्या है जैन पोटैटो?
आमतौर पर आलू भूमिगत उगने वाली सब्जी है, जिसे जैन समुदाय नहीं खाता। लेकिन ‘जैन पोटैटो’ जिसे ‘एयर पोटैटो’ (Air Potato) एक विशेष प्रकार का आलू है, जो जमीन के ऊपर बेल पर उगता है। यह एक प्रकार की यम (Yam) प्रजाति का हिस्सा है, जिसे Dioscorea bulbifera कहा जाता है। (Photo Source: Pinterest) -
जैन पोटैटो के नामकरण का कारण
इस विशेष प्रकार के आलू का नाम “जैन पोटैटो” इसलिए रखा गया है क्योंकि यह जैन आहार के नियमों के अनुसार उपयुक्त माना जाता है। यह जमीन के अंदर नहीं उगता, बल्कि बेल पर फल की तरह विकसित होता है, जिससे इसे जड़ वाली सब्जी नहीं माना जाता और जैन समुदाय इसे अपने आहार में शामिल कर सकता है। (Photo Source: Pinterest) -
कैसा दिखता है जैन पोटैटो (एयर पोटैटो)?
यह एक गोल या अंडाकार आकार की कंदमूल फसल होती है, जो बेल पर उगती है। इसके छिलके का रंग हल्का भूरा और ऊपरी सतह पर छोटे-छोटे दाने (warts) होते हैं। अंदर का गूदा हल्का पीला होता है और इसका स्वाद हल्का कड़वा होता है। पकाने पर यह अपनी चिपचिपी बनावट को खोकर नरम और स्वादिष्ट हो जाता है। (Photo Source: Pinterest) -
एयर पोटैटो की विशेषताएं और फायदे
अच्छा पोषण स्रोत – इसमें प्रोटीन, फाइबर, पोटैशियम, कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस और जिंक जैसे पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। (Photo Source: Pinterest) -
एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण – इसमें फ्लेवोनोइड्स और पॉलीफेनॉल्स होते हैं, जो शरीर में सूजन को कम करने और ऑक्सीडेटिव तनाव से बचाने में मदद करते हैं। (Photo Source: Pexels)
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पाचन स्वास्थ्य में सुधार – इसके फाइबर कंटेंट के कारण यह पाचन को बेहतर बनाता है और ब्लड शुगर को नियंत्रित करता है। (Photo Source: Pexels)
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हृदय और मांसपेशियों के लिए फायदेमंद – इसमें मौजूद पोटैशियम हृदय की धड़कन को नियंत्रित रखने, रक्तचाप को संतुलित करने और मांसपेशियों को मजबूत बनाने में सहायक होता है। (Photo Source: Pexels)
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एयर पोटैटो का उपयोग और खेती
एयर पोटैटो मुख्य रूप से भारत के पश्चिमी घाट, कोरापुट, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, और ओडिशा में उगाया जाता है। इसकी खेती मुख्य रूप से गर्म और उष्णकटिबंधीय जलवायु में होती है। यह फसल बेल पर तेजी से बढ़ती है और इसे उगाने के लिए ज्यादा देखभाल की जरूरत नहीं होती। यह सब्जी भारत और एशिया के अन्य हिस्सों में पारंपरिक चिकित्सा में भी उपयोग की जाती है। (Photo Source: Pinterest)
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