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भारत की 15वीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू न सिर्फ देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति हैं, बल्कि वे कई मायनों में ऐतिहासिक व्यक्तित्व हैं। ओडिशा के मयूरभंज जिले के एक छोटे से गांव उपरबेड़ा में 20 जून 1958 को जन्मी द्रौपदी मुर्मू का जीवन संघर्षों, बदलावों और प्रेरणाओं से भरा हुआ है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ‘द्रौपदी’ उनका असली नाम नहीं है? (Express Photo)
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द्रौपदी मुर्मू का पहला नाम
द्रौपदी मुर्मू का जन्म संथाल जनजाति में हुआ था। उनके पिता बिरंची नारायण टुडू एक किसान थे। इसके साथ ही उनके पिता और दादा ग्राम परिषद (ग्राम पंचायत) के पारंपरिक मुखिया (नामित सरपंच) थे। जन्म के बाद उनके माता-पिता ने उनका नाम उनकी दादी के नाम पर ‘दुर्गी टुडू’ रखा था। (Express Photo) -
पुकार नाम था ‘बत्ती’, फिर बना ‘पुटी’
बचपन में द्रौपदी मुर्मू को प्यार से ‘बत्ती’ कहकर बुलाया जाता था। धीरे-धीरे यह नाम बदलकर ‘पुटी’ हो गया। उनके बचपन के ये नाम उनके पारिवारिक और सांस्कृतिक जुड़ाव को दर्शाते हैं। (PTI Photo) -
स्कूल में बदला गया नाम – ऐसे बना ‘द्रौपदी’
द्रौपदी मुर्मू ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा उपरबेड़ा के स्थानीय प्राथमिक स्कूल से शुरू की। लेकिन जब वह आगे की पढ़ाई के लिए भुवनेश्वर गईं, तब वहां एक शिक्षक ने उनका नाम बदलकर ‘द्रौपदी’ रख दिया। यह नाम महाभारत की प्रमुख पात्र द्रौपदी से प्रेरित था। (Express Photo) -
मुर्मू ने एक इंटरव्यू में बताया कि उनके शिक्षक उनके मूल नाम को पसंद नहीं करते थे, इसलिए उन्होंने यह नया नाम दे दिया। यही नाम आगे चलकर उनकी पहचान बन गया। उन्होंने बताया, “द्रौपदी मेरा असली नाम नहीं था। यह नाम मेरे शिक्षक ने रखा था।” (Express Photo)
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नामों के कई रूप
द्रौपदी मुर्मू ने बताया कि उनका नाम कई बार बदला गया और अलग-अलग दस्तावेजों में यह अलग-अलग रूपों में दर्ज हुआ – कभी ‘दुर्पदी’, कभी ‘दोरपदी’, और अन्य बदलावों के साथ। यह उस दौर के ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में शिक्षा व्यवस्था की स्थिति को भी दर्शाता है, जहां बाहरी शिक्षक आते थे और कई बार स्थानीय नामों को अपनी सुविधा से बदल देते थे। (Express Photo) -
संस्कृति और नामों का महत्व
द्रौपदी मुर्मू ने यह भी बताया कि संताल संस्कृति में नामों का गहरा महत्व होता है। संथाली संस्कृति में यह परंपरा है कि नवजात बच्चे को अपने दादा-दादी या नाना-नानी का नाम दिया जाता है, जिससे उनका नाम हमेशा जीवित रहता है। (PTI Photo) -
उन्होंने बताया था, “अगर एक लड़की का जन्म होता है, तो उसे उसकी दादी का नाम दिया जाता है, और लड़के को उसके दादा का नाम दिया जाता है।” इस प्रकार, उनके पहले नाम ‘दुर्गी टुडू’ में भी यह पारंपरिक पहलू था। (Express Photo)
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शादी के बाद मिला नया उपनाम ‘मुर्मू’
शादी से पहले उनके दस्तावेजों में उपनाम ‘टुडू’ लिखा जाता था, लेकिन 1980 में जब उनकी शादी बैंक कर्मचारी श्याम चरण मुर्मू से हुई, तब उन्होंने पति का उपनाम अपनाया और ‘द्रौपदी मुर्मू’ बन गईं। (Express Photo) -
द्रौपदी मुर्मू का जीवन और संघर्ष
बता दें, द्रौपदी मुर्मू का जीवन दुखों और संघर्षों से भरा रहा है। 2009 से 2015 के बीच उन्होंने अपने परिवार के कई करीबी सदस्यों को खो दिया। उनके पति, दो बेटे, जो क्रमशः सड़क हादसे और रहस्यमय परिस्थितियों में मरे और एक भाई की भी मौत हो गई। (Express Photo) -
बावजूद इसके, उन्होंने अपने कष्टों को पृष्ठभूमि में रखकर अपने कर्तव्यों को निभाना जारी रखा और आज वह भारत की राष्ट्रपति के रूप में देश की सेवा कर रही हैं। एक साधारण आदिवासी परिवार में जन्मी लड़की आज देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन है – और यह संभव हुआ उनके दृढ़ निश्चय, शिक्षा, और आत्मबल के कारण। (ANI Photo)
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