
Cornelia Sorabji: गूगल डूडल पर आज कॉर्नेलिया सोराबजी की तस्वीर है। कॉर्नेलिया सोराबजी के 151वें जन्मदिन पर उन्हें गूगल ने श्रद्धांजलि दी है। कॉर्नेलिया पहली भारतीय महिला थी जिन्होनें ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से वकालत की पढ़ाई की और बॉम्बे विश्विविद्यालय से स्नातक किया। उनके संघर्ष को आज गूगल ने डूडल के जरिए सलामी दी है। उनके संघर्ष से जुड़ी कई महत्वपूर्ण बातें हैं जिन्हें जानना जरूरी है। तो चलिए आज हम भी जानते हैं उनकी कहानी से जुड़े कुछ फैक्ट्स। कॉर्नेलिया कई सामाजिक सुधार आंदोलनों से जुड़ी रहीं थी और साथ ही उन्होंने महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। Cornelia Sorabji ऑक्सफोर्ड में वकालत की पढ़ाई करना उनके लिए किसी बड़ें संघर्ष से कम नहीं था। उन्होंने जब ऑक्सफोर्ड में दाखिला लिया था तब महिलाओं को सिर्फ क्लास लेने और परीक्षा देने की इजाजत हुआ करती थी लेकिन डिग्री लेना पर रोक लगी हुई थी। 1892 में उन्होनें ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से वकालत पूरी की थी लेकिन 1919 तक किसी भी कोर्ट में उन्हें एक वकील के रूप में काम करने देने की अनुनति नहीं मिली थी। कॉर्नेलिया के 1923 में इंग्लैंड लौटने के बाद ही उन्हें भी वकील के तौर पर काम करने दिया गया। Cornelia Sorabji: उनके लिए शिक्षा हासिल करना भी चुनौतियों से कम नहीं था। उनकी शिक्षा के दौरान भी उन्हें कई प्रकार के दबाव झेलने पड़े। उन पर ईसाई धर्म अपना लेने का भी दबाव बनाया गया। यह स्थिति उनके ईसाई होने पर थी। जब वह कहती थीं कि वह ईसाई धर्म की हैं तो कोई उनका विश्वास नहीं करता था। वहीं एक वह सिविल लॉ में ग्रेजुएशन के लिए परीक्षा दे रही थीं। लेकिन लंदन के परीक्षक ने एक महिला की परीक्षा लेने से इंकार कर दिया था। इसके बाद हॉस्टल की वॉर्डन के सामने उन्हें परीक्षा देनी पड़ी थी। Cornelia Sorabji: कॉर्नेलिया के परिवार में भी महिला सशक्तिकरण की भावना बनी हुई थी। उनकी माता ने पुणे में महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कई स्कूलों की स्थापना की थी। कॉर्नेलिया के कदमों पर चलकर कई महिलाओं ने वकालत करी। कॉर्नेलिया ने इंडियन ऑफिस में भी महिलाओं को कानूनी सलाहकार के तौर पर रखे जाने के लिए याचिका दायर की थी। इसके बाद 1904 में बंगाल के वॉर्डस कोर्ट में लेडी असिस्टेंट के तौर पर उन्हें रखा गया। उन्होनें बंगाल, बिहार, ओड़िसा और असम के लिए काम करना शुरु कर दिया। अपने 20 साल के करियर में उन्होनें 600 महिलाओं और बच्चों के लिए काम किया। इसके लिए उन्होनें किसी से भी अपनी सर्विस के लिए फीस नहीं ली। Cornelia Sorabji: 1924 में उन्हें काम के लिए पहली बार फीस मिली और उसके बाद महिलाओं के लिए वकालत एक प्रोफेशन की तरह सबके सामने आया। कॉर्नेलिया ने कलकत्ता से अपनी वकालत की शुरु की थी। वकालत से हटकर उन्होनें कई किताबें लिखी थी। इसी में उनकी आत्मकथा- बिटवीन द ट्विलाइट्स भी शामिल है। पिछले साल कॉर्नेलिया की 150 वीं सालगिरह पर ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने कॉर्नेलिया सोराबजी के नाम से स्कॉलरशिप की शुरुआत की थी। कॉर्नेलिया सोराबजी लॉ प्रोग्राम ऑक्सफोर्ड के भारतीय सेंटर जिसमें पोस्टडॉक्टरेट और पोस्टडॉक्टरल प्रोग्राम चलाया जाता है।