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Maha Kumbh 2025: 144 साल बाद क्या संयोग बना है और क्यों खास है यह महाकुंभ?

144-year astronomical event of Maha Kumbh 2025: प्रयागराज में 13 जनवरी 2025 से महाकुंभ मेला शुरू हो चुका है, और इस बार का महाकुंभ खास तौर पर 144 साल बाद आए एक दुर्लभ खगोलीय संयोग के कारण बेहद महत्वपूर्ण है।

By: Archana Keshri
January 13, 2025 12:58 IST
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  • Mahakumbh 2025 highlights
    1/15

    प्रयागराज में महाकुंभ मेला 2025 का आयोजन ऐतिहासिक महत्व रखता है। यह महाकुंभ विशेष रूप से 144 वर्षों के बाद हो रहा है, और इस समय बन रहा दुर्लभ खगोलीय संयोग इसे और भी खास बनाता है। (Photo: REUTERS)

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    महाकुंभ केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं है, बल्कि यह पूरे समाज के लिए आध्यात्मिक उन्नति का अवसर भी है। इस लेख में हम जानेंगे कि क्यों यह महाकुंभ अन्य कुंभ मेलों से अलग और महत्वपूर्ण है। (PTI Photo)

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    कुंभ मेला और महाकुंभ का पौराणिक महत्व
    हिंदू धर्म में कुंभ मेला का आयोजन हर 12 साल में चार पवित्र स्थलों—हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और प्रयागराज (त्रिवेणी संगम)—पर किया जाता है। इन स्थानों पर सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति ग्रहों की विशेष स्थिति के कारण यह मेले आयोजित होते हैं। (PTI Photo)

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    कुंभ का मतलब होता है ‘कलश’, और ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जब बृहस्पति कुंभ राशि में प्रवेश करता है, तो कुंभ मेला आयोजित किया जाता है। इसे पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन से भी जोड़ा गया है, जिसमें अमृत की प्राप्ति की बात कही गई है। (Photo: REUTERS)

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    महाकुंभ 2025 का विशेष संयोग
    महाकुंभ 2025 इसलिए खास है क्योंकि यह 144 वर्षों के बाद हो रहा है। हर 12 साल में एक सामान्य कुंभ मेला आयोजित होता है, लेकिन 12 कुंभ मेलों के बाद (12×12=144 साल) महाकुंभ का आयोजन होता है। (Photo: REUTERS)
    (यह भी पढ़ें: महाकुंभ मेला 2025 के दौरान प्रयागराज में घूमने योग्य 10 स्थान, ये जगहें आपकी यात्रा को बना देंगी यादगार)

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    इस बार सूर्य, चंद्रमा, शनि और बृहस्पति ग्रहों का एक दुर्लभ और शुभ संयोग बन रहा है। इस समय की खगोलीय स्थिति को समुद्र मंथन के समय से जोड़ा जाता है, जो इसे और भी पवित्र बना देता है। (Photo: REUTERS)

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    महाकुंभ के दौरान ग्रहों की स्थिति में विशेष परिवर्तन होता है, जब बृहस्पति मकर राशि में और सूर्य व चंद्रमा अन्य शुभ स्थानों पर होते हैं। यह संयोग 144 वर्षों में एक बार आता है और इसे शुभ, दिव्य और अद्भुत माना जाता है। (PTI Photo)

  • 8/15

    इस योग के प्रभाव से महाकुंभ में स्नान और पूजा करने से असाधारण पुण्य की प्राप्ति होती है। (Photo: REUTERS)

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    महाकुंभ में शाही स्नान का महत्व
    महाकुंभ का सबसे खास आकर्षण शाही स्नान होता है, जो विशेष ग्रह स्थिति के दौरान आयोजित होता है। इस समय लाखों श्रद्धालु त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाते हैं और अपने पापों से मुक्ति प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते हैं। (PTI Photo)

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    शाही स्नान के दौरान ग्रहों की स्थिति और धार्मिक मंत्रों का उच्चारण श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग दिखाता है। (Photo: REUTERS)
    (यह भी पढ़ें: Maha Kumbh Mela 2025: महाकुंभ में इन फूड स्टॉल्स पर जरूर चखें इन स्वादिष्ट व्यंजन का स्वाद, आपकी यात्रा भी बन जाएगी खास)

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    इस वर्ष का महाकुंभ और भी खास है क्योंकि यह पवित्र समुद्र मंथन के संयोग से जुड़ा हुआ है। इस मंथन से पृथ्वी पर विशेष ऊर्जा का अवतरण होता है, जिससे यह मेला अधिक पवित्र और दिव्य बन जाता है। महाकुंभ में स्नान करने से न केवल पापों का नाश होता है, बल्कि व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। (Photo: REUTERS)

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    महाकुंभ का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
    महाकुंभ केवल एक आध्यात्मिक अवसर नहीं है, बल्कि यह समाज के विभिन्न वर्गों को एक साथ जोड़ने का भी कार्य करता है। यहां पर विभिन्न संत, महात्मा और साधु मिलकर ध्यान और साधना करते हैं, जिससे सामाजिक और सांस्कृतिक समरसता का आदान-प्रदान होता है। (PTI Photo)

  • 13/15

    महाकुंभ का आयोजन न केवल भारत, बल्कि विदेशों से आए श्रद्धालुओं के लिए भी एक महत्वपूर्ण अनुभव होता है। (PTI Photo)

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    आध्यात्मिक उन्नति का अवसर
    महाकुंभ का आयोजन विशेष रूप से साधु-संतों, योगियों और साधकों के लिए एक समय होता है जब वे अपनी साधना और ध्यान में लीन रहते हैं। (Photo: REUTERS)

  • 15/15

    यह समय समाज के लिए आध्यात्मिक उन्नति, आत्मज्ञान और धर्म के प्रचार का भी अवसर होता है। महाकुंभ में लाखों श्रद्धालु, संत और महात्मा सम्मिलित होते हैं, और इस दौरान विभिन्न धार्मिक व सांस्कृतिक गतिविधियां भी होती हैं। (PTI Photo)
    (यह भी पढ़ें: महाकुंभ का पहला स्नान, कड़ाके की ठंड में देश-विदेश से पहुंचे भक्त, घाटों पर दिखी जबरदस्त रौनक, देखें तस्वीरें)

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