20,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित सियाचिन ग्लेशियर में -45 डिग्री तापमान में बर्फ के 35 फुट नीचे कई दिनों तक दबे रहने के बाद जीवित बचे जवान हनमनप्पा की जिंदगी आखिर बच गई? पांच दिनों की तलाश के बाद आखिर हनमनथप्पा के बारे में बचावकर्मियों को कैसे जानकारी मिली? ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जिनके अभी तक नहीं मिले हैं। (फोटो-PTI ) आगे की स्लाइड में जानें हनमनथप्पा के बारे में आखिर जवानों को कैसे मिली जानकारी और बाकी जवानों का क्या हुआ? सोमवार रात को बचाव दल जवानों की खोज में जुटा था। अचानक उनकी नजर उस स्थान पर गई, जहां हनमनथप्पा बर्फ के नीचे दबा था। उस जगह को खोदा गया तो किसी जिंदा शख्स के मिलने के संकेत मिलते गए। -
बचाव दल को जब इस जगह पर जिंदगी के संकेत मिले तो उन्होंने खोजी कुत्तों की मदद ली।
-
जवानों की खोज के लिए लेह से बर्फ काटने वाले भारी उपकरण हेलीकॉप्टर से सियाचिन भिजवाए गए थे। इन उपकरणों के कारण भी बचाव अभियान चलाने में काफी मदद मिली।
-
इस जगह से लांस नायक हनमनथप्पा को बाहर निकाला गया।
-
सियाचिन में बचाव दल ने कई खोजी कुत्तों के साथ काफी बड़े इलाके में खोजी अभियान चलाया।
जानकारों की मानें अक्सर जब हिमस्खलन आता है तो उसमें बड़ी दरारें पैदा हो जाती हैं। यह संभव है कि कुछ जवान इन दरारों में फंस गए हों और उनका बाहर आना बेहद मुश्किल हो। से दरारें 300 फुट गहरी हो सकती हैं। दरारों के भीतर का तापमान शून्य से 200 डिग्री नीचे तक चला जाता है। सियाचिन में तैनात फौजियों की सुरक्षा के लिए सेना ने कई निगरानी केंद्र भी बना रखे हैं। बेस कैंप में मौजूद ऐसे केंद्र मौसम में होने वाले हर बदलाव पर नजर रखते हैं और हिमस्खल की भविष्यवाणियां भी करते हैं। -
विशेषज्ञों के मुताबिक स्नोफॉल के दौरान के बीच जब बर्फ गिरती तो उसके बीच कुछ जगह रह जाती है। जहां से हवा आने-जाने का थोड़ा बहुत रास्ता बाकी रह जाता है। शायद यही वजह रही हनमनथप्पा को सांस लेने में दिक्कत नहीं हुई।
यह भी संभव है कि दूसरे जवानों की तुलना में उसके पास आक्सीजन लेवल अच्छा था, इसलिए उसके भीतर एनर्जी दूसरे जवानों की तुलना में अधिक रही होगी।