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सैनिटरी नैपकिन के बाजार में धीमी गति से क्रांति चल रही है। अभी हाल यह है कि बाजार पर केवल तीन-चार बड़े ब्रांड का कब्जा है। नतीजा यह है कि केवल 12 फीसदी महिलाएं ही पीरियड्स के दौरान उनका इस्तेमाल कर पा रही हैं। पर धीरे-धीरे कुछ लोकल ब्रांड्स भी बाजार में उतर रहे हैं। सैनिटरी नैपकिन का बाजार फिलहाल 4500 करोड़ रुपए का बताया जाता है। 7 से 10 साल बाद यह 21 हजार करोड़ हो जाने का अनुमान है।
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एक रिसर्च के मुताबिक एक शहरी महिला पूरी जिंदगी में करीब 17 हजार पैड इस्तेमाल करती है। इन पैड्स से सेहत व पर्यावरण से जुड़े खतरे भी हैं।
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सैनिटरी नैपकिन के कारोबार से जुड़े एक्सपर्ट बताते हैं कि दस साल पहले चीन की हालत भी भारत जैसी थी। वहां भी तीन एमएनसी ब्रांड का बाजार पर दबदबा था। पर आज की तारीख में केवल एक लोकल ब्रांड हेनजेन का 22 फीसदी बाजार पर कब्जा है।
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सैनिटरी नैपकिन के बाजार में क्रांति लाने में आकार इनोवेशंस का भी योगदान है। यह कंपनी 'आनंदी' ब्रांड नाम से देसी और बेकार रॉ मैटेरियल (जैसे पाइन पल्प) से सस्ते सैनिटरी नैपकिन बनाती है। ये नैपकिन मिट्टी को भी नुकसान नहीं पहुंचाते और सड़ कर खाद का काम करते हैं।
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भारत में पीरियड्स के दौरान 35.5 करोड़ में से करीब 80 फीसदी लड़कियां/महिलाएं अपना सामान्य रूटीन फॉलो नहीं कर पातीं। वे ज्यादातर घर में ही रहती हैं। इसका कारण यह है कि वे महंगे सैनिटरी नैपकिन नहीं खरीद सकतीं।
बाजार में बिकने वाले ब्रांडेड सैनेटरी नैपकिन में सुपर एब्जॉर्बेंट पॉलीमर्स (जेल), ब्लीच किया हुआ सेलुलोज वूड पल्प, सिलिकॉन पेपर, प्लास्टिक, डियोडेरेंट आदि का इस्तेमाल होता है। -
सैनेटरी नैपकिन में डायोक्सिन का इस्तेमाल किया जाता है। डायोक्सिन को नैपकिन को सफेद रखने के लिए काम में लिया जाता है। हालांकि इसकी मात्रा कम होती है लेकिन फिर भी नुकसान पहुंचाता है। इसके चलते ओवेरियन कैंसर, हार्मोन डिसफंक्शन, डायबिटीज और थायरॉयड की समस्या हो सकती है।
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नैपकिन में रूई के अलावा रेयॉन को भी उपयोग में लाया जाता है। इससे सोखने की अवधि बढ़ती है। रेयॉन में भी डायोक्सिन होता है। वहीं कपास की खेती के दौरान उस पर कई पेस्टीसाइड छिड़के जाते हैं। इनमें से फुरान नाम का केमिकल रूई पर रह जाता है। इससे थायरॉयड, डायबिटीज, अवसाद और निसंतानता की समस्या हो सकती है।
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नैपकिन बनाने के दौरान इन पर कृत्रिम फ्रेगरेंस और डियो छिड़का जाता है। इनसे एलर्जी और त्वचा को नुकसान होने का खतरा रहता है।
लंबे समय तक नैपकिन के इस्तेमाल से वेजाइना में स्टेफिलोकोकस ऑरेयस बैक्टीरिया बन जाते हैं। इससे डायरिया, बुखार और ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों का खतरा रहता है। हालांकि बाजार में सुरक्षित उपाय भी मौजूद हैं। आगे पढि़ए क्या हैं सुरक्षित उपाय: -
ऑर्गेनिक क्लॉथ पैड्स: ये पैड्स रूई और जूट या बांस से बनते हैं। इन्हें रखने में भी कोई दिक्कत नहीं होती। उपयोग किए गए पैड्स को धोकर फिर से इस्तेमाल किया जा सकता है। साथ ही ये पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचाते।
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मेंस्ट्रुअल कप: वर्किंग वूमन और लड़कियों के लिए मेंस्ट्रुअल कप काफी उपयोग है। यह गम रबर से बना होता है। अच्छी क्वालिटी के कप की कीमत 700 रुपये है। लेकिन एक बार खरीदने के बाद 10 साल तक की चिंता समाप्त।
