Ringing Bells नाम की कंपनी 251 रुपए में स्मार्टफोन लेकर आई है। इसे भारत ही नहीं, दुनिया का सबसे सस्ता स्मार्टफोन माना जा रहा है। हालांकि, भारत में बेहद सस्ती कीमतों पर प्रॉडक्ट्स पेश करने की परंपरा रही है। चाहे डेस्कटॉप हो, टैबलेट हो, टेलिविजन हो या फिर मोटरसाकिल, हर क्षेत्र में इस तरह के प्रोडक््टस पेश किए जाते रहे हैं। इन उदाहरणों पर नजर डालें तो पता चलता है कि बेहद कम कीमत इनकी कामयाबी की गारंटी नहीं है। आगे की स्लाइड्स में जानें वक्त वक्त पर पेश किए जाते रहे ऐसे ही कुछ प्रोडक््स के बारे में: -
एक वक्त था, जब मोबाइल फोन पर यूजर्स को इनकमिंग के पैसे भी देने पड़ते थे। मोबाइल हैंडसेट बेहद महंगे थे। ऐसे दौर में साल 2003 में रिलायंस 'कर लो दुनिया मुट्ठी में' के स्लोगन के साथ 500 रुपए में सीडीएमए फोन की स्कीम लेकर आई। मकसद हर हाथ तक मोबाइल फोन पहुंचाना था। कंपनी इस दिशा में कामयाब भी हुई। हैंडसेट्स की दुनिया में तकनीकी तरक्की और अन्य कंपनियों द्वारा सस्ती कॉल रेट्स देने से इस स्कीम की चमक वक्त के साथ फीकी पड़ती गई।
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शांतनु घोष नाम के कारोबारी 2012 में भारत की सबसे सस्ती मोटरसाइकिल देने के दावे के साथ रॉक 100 लेकर आए। हालांकि, बाद में उन्होंने अपनी कंपनी ग्लोबल ऑटोमोबाइल्स शारदा ग्रुप के सुदीप्त सेन को बेच दी। खुद घोष शारदा घोटाला मामले में गिरफ्तार हुए। घोष ने अपनी कंपनी को नॉन प्रोडक्टिव बताते हुए उसे सेन को 52 करोड़ रुपए में बेच दिया। इस वित्तीय लेनदेन को लेकर ही सवाल उठे थे। (Source: http://www.team-bhp.com)
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कपिल सिब्बल
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इंटरनेट से आम लोगों को जोड़ने के मकसद से 2007 में केंद्र सरकार की ओर से आकाश या यूबीस्लेट 7+ टैबलेट लाया गया। 1500 रुपए कीमत में उपलब्ध होने वाले इस टैबलेट पर सरकार सब्सिडी देती थी। लाइनक्स बेस्ड टैबलेट की कीमत 35 डॉलर से कम होनी थी, हालांकि, जब तक यह स्टूडेंट्स के हाथों में पहुंची, यह 50 डॉलर के पारपहुंच गई। हालांकि, सब्सिडी दी गई ताकि यह कम कीमत पर उपल्बध कराया जा सके। इस टैबलेट की डिलीवरी को लेकर दिक्कतें सामने आईं। कई कस्टमर से ली गई बुकिंग की रकम उन्हें लौटाई गई। यहां तक कि परफॉर्मेंस के मामले में भी यह टैबलेट बेहद खराब रहा। (Source: AP)
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टाटा ने दुनिया की सबसे सस्ती कार देने का वादा किया। इसके तहत, एक लाख रुपए में कार बेची जानी थी। हालांकि, जब तक कार लोगों तक पहुंची, इसकी कीमत करीब करीब दोगुनी हो गई थी। बहुत सारे लोगों ने इस कार को खरीदा, लेकिन कंपनी के उम्मीद के मुताबिक यह कार नहीं बिकी। जानकारों ने माना कि सबसे सस्ती कार होने का ठप्पा लगने से भी इस कार की छवि प्रभावित हुई।
