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आज के समय में घड़ी और अंगूठी फैशन और स्टेटस का प्रतीक बन चुके हैं। लोग इन्हें केवल जरूरत नहीं, बल्कि एक सजावट और पहचान के रूप में पहनते हैं। लेकिन अध्यात्मिक संत प्रेमानंद महाराज ने इन बाहरी आभूषणों को लेकर एक गंभीर और विचारणीय बात कही है। (Photo Source: PremanandJi Maharaj/Facebook)
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क्या कहा प्रेमानंद महाराज ने?
प्रेमानंद महाराज ने अपने प्रवचन के दौरान एक भक्त को कहा कि– “घड़ी और अंगूठी आज के बाद मत पहनना। घड़ी को केवल समय देखने के लिए जेब में रखो। हाथ पर धारण मत करो। किसी भी प्रकार का बाह्य श्रृंगार त्याज्य है यानी बाहरी सजावट वर्जित है, विशेषकर अगर आप आध्यात्मिक मार्ग पर चल रहे हैं।” (Photo Source: Unsplash) -
वे आगे कहते हैं कि शास्त्रों और आचार्यों के दृष्टिकोण से धातु के आभूषणों जैसे अंगूठी, सोने की जंजीर या कड़े पहनना निषेध बताया गया है। ये सब भौतिकता और विषयों की ओर आकर्षण का प्रतीक हैं, जो साधक के मार्ग में बाधा बन सकते हैं। (Photo Source: Unsplash)
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क्यों है इन चीजों का निषेध?
बाह्य श्रृंगार से बढ़ती है अहंकार की भावना
संतों और शास्त्रों का मानना है कि जब हम खुद को बाहरी रूप से सजाते हैं, तो हमारी चेतना बाह्य संसार में उलझती जाती है। इससे आत्मचिंतन और साधना का मार्ग छूटने लगता है। (Photo Source: PremanandJi Maharaj/Facebook) -
धातु के आभूषण विषयों की ओर ले जाते हैं
प्रेमानंद महाराज के अनुसार, सोने की अंगूठी, जंजीर और कड़ा जैसे आभूषण विषयी पुरुषों के लिए हैं। यानी वे लोग जो सांसारिक सुखों और भोगों की ओर आकर्षित हैं। (Photo Source: Pexels) -
किन लोगों को विशेष रूप से परहेज करना चाहिए?
जो व्यक्ति साधना, भक्ति या ब्रह्मचर्य के मार्ग पर चल रहे हैं। जो सन्यास जीवन या आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर हैं। और जो संतों, गुरुओं या आचार्यों की शिक्षाओं का पालन करना चाहते हैं। (Photo Source: PremanandJi Maharaj/Facebook)
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क्या पहन सकते हैं साधक?
प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि एक सच्चे साधक के लिए केवल तुलसी की माला ही असली आभूषण है। तुलसी को शुद्धता, भक्ति और भगवान विष्णु के प्रति प्रेम का प्रतीक माना जाता है। (Photo Source: Unsplash) -
फिर क्या करें?
प्रेमानंद जी महारज ने कहा कि समय देखने के लिए अगर घड़ी जरूरी है, तो हाथ में न पहनकर जेब में रखें। अंगूठी, कड़ा या जंजीर जैसे धातु के गहनों से दूरी बनाएं। (Photo Source: Unsplash) -
उनके अनुसार, अपने शरीर को सजाने की बजाय, अपने मन और आत्मा को सजाएं। तुलसी की माला, चंदन का तिलक, और साधु-संतों की संगति को अपनाएं। (Photo Source: PremanandJi Maharaj/Facebook)
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