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'पाच्र्ड', 'मांझी द माउंटेन मैन', 'शोर इन द सिटी' जैसी फिल्मों में अपने दमदार अभिनय से बॉलीवुड में जगह बनाने वाली अभिनेत्री राधिका आप्टे अपनी हालिया रिलीज फिल्म 'पैडमैन' की सफलता से खासी उत्साहित हैं। राधिक उम्मीद करती हैं कि पैडमैन से महिला सशक्तीकरण की जो क्रांति शुरू हुई है, वह आगे भी जारी रहेगी। अक्षय कुमार और राधिका अभिनीत फिल्म 'पैडमैन' महिला सुरक्षा, स्वच्छता, सशक्तीकरण, बदलाव, महिलाओं के सम्मान और उन्हें बराबरी का अधिकार देने जैसे कई मुद्दों को उठाती है। नई दिल्ली में एक कार्यक्रम के दौरान राधिका से जब पूछा गया कि पैडमैन के बाद इस विषय को लेकर एक रेवोल्यूशन आया और यह क्रांति सोशल मीडिया पर भी देखने को मिली। क्या यह जारी रहेगी या कुछ समय बाद बंद हो जाएगी? इस पर राधिका ने कहा, "बिल्कुल जारी रहेगी। मुझे लगता है कि जब आप अपने परिवार के साथ फिल्म देखने जाते हैं, तो वहां से वापस आने पर भी आप कुछ समय तक उस पर बात करते हैं।
राधिका के अनुसार, 'जहां तक सोशल मीडिया की बात है, तो यहां मैं बताना चाहूंगी कि सोशल मीडिया की पहुंच और फिल्म की पहुंच में फर्क है। फिल्मों की दर्शकों तक पहुंच काफी अलग तरह से होती है। राधिका कहती हैं, 'मैं मानती हूं कि सोशल मीडिया पर एक साथ बहुत सारे लोगों से आप संपर्क कर सकते हैं और अपना संदेश पहुंचा सकते हैं, लेकिन फिल्म को जब भी आप देंखेगे या वह जब भी टेलीविजन पर आएगी, तो चूंकि यह एक अलग मुद्दे पर बनी फिल्म है, लोगों के दिमाग में इसका विषय स्ट्राइक करेगा।' महाराष्ट्र के पुणे की रहने वाली राधिका के पिता डॉ.चारुदत्त आप्टे पुणे के मशहूर न्यूरो सर्जन हैं। राधिका कहती हैं कि उनके परिवार में ज्यादातर लोग पेशे से डॉक्टर हैं और घर में ऐसा माहौल नहीं था कि लोग इस मुद्दे पर बात करने से बचते हों। यह दुख की बात है कि पुरुषों के साथ महिलाएं भी इस पर बात करने से बचती हैं। पेशेवर महिलाओं को कभी-कभी यह स्थिति असहज कर देती है और खासकर तब, जब आसपास पुरुष मौजूद हों। यह पूछने पर कि आप ऐसी स्थिति से कैसे निपटती हैं, उन्होंने कहा कि आप महिला हैं तो आपको कभी न कभी इस स्थिति का सामना करना ही पड़ता है। भले आप किसी ऑफिस में बैठकर काम करती हों या फिर घर में रहती हों, घर में रहने वाली महिलाएं भी बाहर निकलती हैं, तो उनके साथ भी ऐसा हो सकता है, इसलिए सबसे पहले तो खुद यह समझें कि माहवारी कोई शर्मिंदगी की बात नहीं है। जैसे आप किसी बस या ट्रेन में बैठें हो और आपको सिर दर्द होता है तो आप अपने साथ किसी शख्स को पानी लाने या दवा लाने के लिए कह सकते हैं, वैसे ही आप इसके लिए भी बोल सकते हैं। राधिका अपने अनुभव साझा करते हुए कहती हैं, "मैं जब शूटिंग करती हूं और उस दौरान मुझे माहवारी हो रही होती है, तो मैं अपने क्रू या निर्देशक को बोलती हूं कि आप मुझसे इस समय अधिक कूदने, दौड़ने या तैराकी वाले दृश्य न कराएं। मैं अभी इसे करने में सक्षम नहीं हूं।" -
राधिका महिलाओं को संदेश देते हुए कहती हैं, "अगर आप खुद इस पर शर्मिंदगी नहीं जताएंगी और खुलकर बोलेंगी तो दूसरों के दिमाग से भी यह चीज निकलेगी और धीरे-धीरे लोग माहवारी को शर्म से जुड़ी चीज समझना छोड़ देंगे।"
