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Dhananjay Singh: उत्तर प्रदेश की राजनीति में मायावती (Mayawati) और मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) जैसे कई ऐसे नाम हैं जो बेहद साधारण परिवार से आकर राज्य की सबसे बड़ी कुर्सी पर बैठे। वहीं अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) जैसे कुछ बड़े नेता ऐसे हैं जिन्हें राजनीति विरासत में मिली। इससे इतर तमाम चर्चित नाम ऐसे भी हैं जिन्होंने बाहुबल के दम पर राजनीति में कदम रखा और माननीय बन गए । ऐसे ही नेताओं में एक नाम है धनंजय सिंह का।
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धनंजय सिंह ने जौनपुर के टीडी कॉलेज और फिर लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र नेता रहे। छात्र राजनीति में शामिल होने वाले धनंजय ने मंडल कमीशन का विरोध करने से अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत की थी।
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लखनऊ विश्वविद्यालय में धनंजय सिंह की मुलाकात बाहुबली छात्र नेता अभय सिंह से हुई। दोनों के बीच पहले गहरी दोस्ती और फिर कट्टर दुश्मनी हो गई।
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1998 तक धनंजय सिंह पचास हज़ार के इनामी बन चुके थे जिन पर हत्या और डकैती जैसे मुक़दमे दर्ज थे। अपराधों की संख्या के साथ दबंगों संग उनके संपर्क भी बढ़ते गए।
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सक्रिय राजनीति की शुरुआत धनंजय सिंह ने अपने गृह जनपद जौनपुर से ही की।जौनपुर में विनोद नाटे नाम के एक दबंग बाहुबली नेता थे। साल 2000 के करीब धनंजय विनोद नाटे संपर्क में आया।
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स्थानीय लोगों की मानें तो विनोद नाटे को दुर्दांत अपराधी मुन्ना बजरंगी का भी गुरु कहा जाता था। विनोद नाटे जौनपुर से ही चुनाव लड़ना चाहते थे और उन्होंने यहां की रारी विधानसभा क्षेत्र से जीतने के लिए काफी मेहनत भी की थी। (तस्वीर में मुन्ना बजरंगी)
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इसे विनोद नाटे की बदकिस्मती कहें या फिर धनंजय सिंह की खुशकिस्मती कि चुनावों से ठीक पहले एक रोड एक्सीडेंट में अचानक विनोद नाटे की मृत्यु हो गई।
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धनंजय सिंह ने विनोद नाटे की मौत को जमकर भुनाया। वह नाटे की तस्वीर को सीने से लगाकर क्षेत्र में घूमे। चुनाव लड़ा और जीत भी गए।
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इस तरह से पहली बार धनंजय सिंह 2002 में विधानसभा पहुंचे। फिर 2007 में भी वह विधायक चुने गए। 2009 में मायावती ने धनंजय को बसपा से चुनाव लड़वाया। वो चुनाव भी धनंजय जीत गए।
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2011 में मायावती ने उन्हें ‘पार्टी के खिलाफ काम करने’ की वजह से बसपा से निष्कासित कर दिया। बीएसपी से निकाले जाने के बाद वह कभी वापसी नहीं कर पाए।
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2012 धनंजय सिंह ने अपनी दूसरी पत्नी जागृति सिंह को चुनाव लड़वाया वो हार गईं। 2014 और 2017 में धनंजय सिंह अपना चुनाव भी हार गए।
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2019 के लोकसभा चुनाव में धनंजय ने कई पार्टियों से टिकट के लिए सेटिंग की लेकिन बात नहीं बन पाई। धनंजय ने ये चुनाव ही नहीं लड़ा।
