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करवा चौथ का व्रत हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष यह पवित्र व्रत 10 अक्टूबर 2025 को रखा जाएगा। सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की कामना के लिए यह व्रत रखती हैं। दिनभर निर्जला व्रत रखने के बाद महिलाएं चांद को अर्घ्य देकर व्रत खोलती हैं। (Express Archive Photo)
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आमतौर पर करवा चौथ की पूजा महिलाएं मिलकर करती हैं, जिसमें करवा बदलने की रस्म सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। लेकिन आज के समय में कई महिलाएं नौकरी या पारिवारिक कारणों से अपने घर से दूर रहती हैं। ऐसे में सवाल उठता है — क्या करवा चौथ अकेले किया जा सकता है? अगर हां, तो करवा की अदला-बदली किसके साथ करें? आइए जानते हैं इसका धार्मिक और पारंपरिक उत्तर। (Express Archive Photo)
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अकेले करवा चौथ पूजा करना बिल्कुल संभव है
शास्त्रों में कहीं भी यह नहीं लिखा गया कि करवा चौथ की पूजा अकेले नहीं की जा सकती। यदि आपके घर में सास, ननद या अन्य सुहागिन महिलाएं नहीं हैं, तो आप घर पर अकेले भी पूरे विधि-विधान से करवा चौथ की पूजा कर सकती हैं। अकेले पूजा करते समय सबसे जरूरी है कि आप मां गौरी को अपनी सखी (सहेली) के रूप में स्वीकार करें। मां गौरी (पार्वती) को ही इस व्रत की अधिष्ठात्री देवी माना गया है। (Express Archive Photo) -
अकेले करवाचौथ की पूजा की विधि
मां गौरी की प्रतिमा बनाएं – मिट्टी या गोबर से मां गौरी की छोटी प्रतिमा बनाएं और उसका श्रृंगार करें। यह प्रतिमा आपकी सखी का प्रतीक मानी जाएगी।
दो करवा तैयार करें – एक करवा अपने नाम का और दूसरा मां गौरी के नाम का बनाएं। दोनों करवा में शुद्ध जल भरें, ढक्कन लगाएं और ऊपर मिठाई रखें। (Express Archive Photo) -
पूजन सामग्री तैयार करें – थाली में रोली, अक्षत, दीपक, सिन्दूर, कुमकुम, फूल और मिठाई रखें।
मां गौरी से प्रार्थना करें – पूजा से पहले यह प्रार्थना करें – “हे मां गौरी, आज आप ही मेरी सखी हैं और मेरे इस व्रत को सफल बनाने में मेरी सहायता करें। मैं अपने सुहाग की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए आपके श्री चरणों में यह पूजा अर्पित कर रही हूं।” (Express Archive Photo) -
करवा बदलने की विधि – अब मां गौरी को भोग लगाएं और दोनों करवे उनके सामने रखें। इसके बाद दोनों करवों को सात बार हाथों को क्रॉस करके बदलें। हर बार यह कहते हुए करवा फेरे – “ले सुहागन ले करवा, दे सुहागन दे करवा।” सात बार करवा बदलने पर आपका करवा दाहिने हाथ (राइट हैंड) में आ जाएगा। (Express Archive Photo)
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चांद निकलने पर करें ये कार्य
चंद्रमा को अर्घ्य देते समय अपने करवे का जल प्रयोग करें। इसके बाद मां गौरी को सिंदूर, बिंदी, और सुहाग का सामान अर्पित करें। पति की दीर्घायु की कामना करते हुए व्रत का पारण करें। पूजा के अगले दिन मां गौरी के नाम के करवे का जल घर के किसी पौधे में डाल दें या किसी पवित्र स्थान पर विसर्जित करें। (Express Archive Photo) -
पंजाब की परंपरा
पंजाबी समाज में करवा चौथ के अवसर पर ‘बैना’ (उपहार) के आदान-प्रदान की परंपरा है। प्रत्येक महिला थाली में पानी का एक बर्तन, आटे का एक दीपक और अपनी सास के लिए एक बैना रखती है और कथा सुनती है। (Express Archive Photo) -
करवा फेरते समय गाया जाने वाला लोकप्रिय पंजाबी करवाचौथ गीत
कथा के बाद, महिलाएं ‘वीरा कुड़िये करवाडा’ गीत गाते हुए पांच या सात बार थालियां बदलती हैं और अंत में अपनी थालियां लेकर पंडिताइन या सास का आशीर्वाद लेती हैं। थाली को दक्षिणावर्त घुमाते हुए वे लोकप्रिय पंजाबी करवाचौथ गीत गाती हैं, जिसके बोल इस प्रकार है:-
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वीरा कुड़िए करवड़ा, सर्व सुहागन करवड़ा।
ए कट्टी न अटेरीं न, खूंब चरखड़ा फेरीं ना।
ग्वांड पैर पाईं ना, सुई च धागा फेरीं ना।
रुठड़ा मनाईं ना, सुतड़ा जगाईं ना।
बहन प्यारी वीरा, चंद चढ़े ते पानी पीना।
लै वीरा कुड़िए करवड़ा, लै सर्व सुहागिन करवड़ा।। (Express Archive Photo) -
क्या है इस गीत का मतलब
यह लोकप्रिय गीत उन चीजों के इर्द-गिर्द घूमता है जिन्हें करवा चौथ के दिन करना वर्जित है। जैसे- खूंब चरखड़ा फेरीं ना का मतलब है कि इस दिन कपड़े ना बुनें और रुठड़ा मनाईं ना का मतलब है कि किसी भी रुठे इंसान को मनाने की कोशिश ना करें। सुतड़ा जगाईं ना का मतलब है कि किसी सोते इंसान को जगाना नहीं है। चंद चढ़े ते पानी पीना का मतलब है कि जब चंद्रमा निकल आए तो ही पानी पिएं। (Express Archive Photo) -
इस गीत का महत्व
“वीरा कुड़िये करवाड़ा” गीत का महत्व करवा चौथ की प्राचीन कथा से जुड़ा है। करवा चौथ की कथा वीरवती नाम की एक महिला के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसने अपने पति के प्राण बचाने के लिए कठोर व्रत रखा था। यह गीत इसी कथा का स्मरण कराता है और महिलाओं को प्रेरित करता है। इतना ही नहीं, यह गीत महिलाओं के समर्पण और त्याग को दर्शाता है। (Express Archive Photo)
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