-
क्या हमें अपने मृत परिजनों की पूजा करनी चाहिए? क्या उनकी मूर्ति बनवाकर घर में स्थापित करना और विशेष पूजा करना धार्मिक रूप से उचित है? यह सवाल अक्सर कई लोगों के मन में उठता है, खासकर उन परिवारों में जहां पितृ पूजा को इष्ट पूजन से अधिक महत्व दिया जाता है। (Photo Source: Pexels)
-
अक्सर दूर-दूर से लोग अपनी समस्याएं लेकर प्रसिद्ध संत प्रेमानंद जी महाराज के पास आते हैं, जिनका महाराज जी उचित समाधान बताते हैं। इसी विषय पर हाल ही में एक व्यक्ति ने प्रेमानंद जी महाराज से प्रश्न पूछा, जिसका उत्तर उन्होंने स्पष्ट और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से दिया। और जो पितरों की पूजा करता है वो पितरों को प्राप्त होता है। (Photo Source: PremanandJi Maharaj/Facebook)
-
व्यक्ति ने प्रेमांनद जी महाराज से सवाल किया कि उनके क्षेत्र में लोग ईष्ट पूजा से ज्यादा पितृ पूजन पर जोर देते हैं और मृत व्यक्ति की आत्मा का आह्वान कर उसकी मूर्ति भी स्थापित कर देते हैं। फिर उनकी विशेष पूजा की जाती है। (Photo Source: Pexels)
-
व्यक्ति ने यह भी कहा कि ब परिवार पर कोई विपदा आती है, तो उसे पितरों का रुष्ट होना मानते हैं। तो ऐसा करना सही है या नहीं? इसपर प्रेमानंद महाराज ने कहा, “ऐसा कुछ नहीं है, ये सब बेकार की बाते हैं।” (Photo Source: Pexels)
-
उन्होंने कहा कि मृत्यु होते ही एक मिनट के अंदर उस व्यक्ति की आत्मा को स्वर्ग या नरक की यात्रा के लिए ले जाया जाता है। साथ ही, उस मृतक के कर्म के अनुसार अन्य योनियों में भेज दिया जाता है। (Photo Source: Pexels)
(यह भी पढ़ें: प्रेमानंद जी महाराज से सीखें जीवन जीने के 8 अनमोल सबक, मिलेगी आंतरिक शांति और दिखेगा प्रेम का मार्ग) -
प्रेमानंद महाराज ने आगे कहा, “मरने के बाद आत्मा खाली थोड़ी रहती है कि हमें जब चाहो तब बुला लो। मरने के बाद व्यक्ति की आत्मा तुरंत बंद कर ली जाती है। मृत्यु के बाद तुरंत ही यह निर्णय हो जाता है कि वह अगले जन्म में कुत्ता बनेगा या फिर बिल्ली। (Photo Source: Pexels)
-
महाराज जी ने आगे कहा, “अगर इसके बाद नरक भुगवाना है तो नरक भेजा जाता है, वरना स्वर्ग भेज दिया जाता है। इस प्रकार मरने के बाद आत्मा स्वतंत्र नहीं रहती है। इस आत्मा को या तो स्वर्ग-नरक भेजा जाता है या तो अलग योनि में।” (Photo Source: Pexels)
-
पितरों को लेकर प्रेमानंद जी महाराज ने कहा, “हां, लेकिन पितर जन होते हैं जो पितृ लोक में विराजमान हैं। पितरों के लिए पिंडदान आदि किया जाता है, पितृ ऋण से मुक्त होने के लिए। ऐसा नहीं कि कोई विपत्ति आ गई तो पितर नाराज हो गए जीवन में जो भी घटित होता है, वह कर्म का परिणाम होता है, पितर की नाराजगी नहीं।” (Photo Source: Pexels)
-
उन्होंने कहा, “विपत्ति हमारे कर्मों का फल होती है।” प्रेमानंद जी महाराज ने गीता का उदाहरण देते हुए कहा जो देवताओं की पूजा करता है वो देवताओं को प्राप्त होता है और जो पितरों की पूजा करता है वो पितरों को प्राप्त होता है। (Photo Source: PremanandJi Maharaj/Facebook)
(यह भी पढ़ें: मंत्र लिखे वस्त्र पहनना शुभ होता है या अशुभ? जानिए क्या कहते हैं प्रेमानंद महाराज)
