-
नवरात्रि का त्यौहार हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक है। इस दौरान नौ दिनों तक देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। 22 सितंबर से शुरू हुआ यह उत्सव दशमी को दुर्गा विसर्जन के साथ समाप्त होता है। (Express Photo)
-
यह त्यौहार पूरे देश में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है और लोग नवदुर्गा-दशहरा का त्यौहार अलग-अलग तरीकों से मनाते हैं, लेकिन बंगाल में इसका एक अलग ही आकर्षण होता है। (Express Photo)
-
यहां नवरात्रि का त्यौहार दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है, जो षष्ठी यानि नवरात्रि के छठे दिन से शुरू होता है और विजयादशमी के साथ इस त्यौहार का समापन होता है। (Express Photo)
-
यहां दशहरा को विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है और इस दौरान सिन्दूर खेला का आयोजन किया जाता है। (Express Photo)
-
यह बंगाल और उसकी संस्कृति से जुड़ी एक महत्वपूर्ण परंपरा है, जो अपने आप में बेहद खास है। हालांकि इस परंपरा को देशभर में रह रहे बंगाली समुदाय सभी के साथ मिलकर उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाता हैं। (Express Photo)
-
इस बार यह पर्व चंडीगढ़ के सेक्टर 35 स्थित बंगा भवन और नवी मुंबई के वाशी इलाके में वाशी कल्चरल एसोसिएशन द्वारा आयोजित पूजा में बड़े उत्साह के साथ संपन्न हुआ। (Express Photo)
-
चंडीगढ़ के बंगा भवन में आयोजित कार्यक्रम में महिलाएं पारंपरिक साड़ियों और आभूषणों में सज-धज कर शामिल हुईं। (Express Photo)
-
ढाक और ढोल की थाप, भक्ति गीत और रंग-बिरंगे नृत्यों के बीच महिलाएं एक-दूसरे के माथे और गालों पर सिंदूर लगाती रहीं। (Express Photo)
-
यह रस्म न केवल देवी दुर्गा की शक्ति और सामर्थ्य का प्रतीक है, बल्कि महिलाओं के अखंड सौभाग्य और वैवाहिक खुशियों की कामना का भी संदेश देती है। (Express Photo)
-
भक्तों ने पूजा में मिठाई और प्रसाद अर्पित किया और देवी दुर्गा को भावपूर्ण विदाई दी। समारोह का समापन प्रतीकात्मक विसर्जन के साथ हुआ। (Express Photo)
-
नवी मुंबई के वाशी इलाके में वाशी कल्चरल एसोसिएशन द्वारा आयोजित पूजा में भी महिलाओं ने रंगीन साड़ियों और पारंपरिक आभूषणों में सजकर उत्सव में भाग लिया। (Express Photo)
-
उन्होंने ढोल-ढाक की थाप और पारंपरिक नृत्यों के साथ सिंदूर खेला का रस्म पूरा किया। इस दौरान महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर अपने पतियों की लंबी उम्र और परिवार की खुशहाली की कामना करती हैं। (Express Photo)
-
सिंदूर खेला की परंपरा में यह मान्यता भी जुड़ी है कि मां पार्वती ने सबसे पहले अपनी मांग में सिंदूर लगाया था, जब उन्होंने भगवान शिव से विवाह किया। (Express Photo)
-
यह सिंदूर उनके सौभाग्य, समर्पण और शिव के प्रति प्रेम का प्रतीक बना। लाल रंग का सिंदूर मां पार्वती की शक्ति और ऊर्जा को दर्शाता है। (Express Photo)
-
यही कारण है कि सिंदूर खेला की रस्म करने से महिलाओं को मां दुर्गा और मां पार्वती से अखंड सौभाग्य और लंबी आयु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। (Express Photo)
-
आपको बता दें, विजयादशमी यानी दशहरा के दिन दुर्गा पूजा पंडालों में देवी मां की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है। (Express Photo)
-
वहीं विजयादशमी के दिन ही सिंदूर खेला की रस्म मूर्तियों के विसर्जन से पहले की जाती है। (Express Photo)
-
पंडालों में मौजूद महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर दुर्गा पूजा की शुभकामनाएं देती हैं और धूमधाम से पर्व का समापन करती हैं। (Express Photo)
-
यह परंपरा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि बंगाली संस्कृति, महिला सशक्तिकरण और सामूहिक उत्सव का प्रतीक भी है। (Express Photo)
-
इस प्रकार, चंडीगढ़ और नवी मुंबई सहित देश के कई हिस्सों में विजयादशमी के दिन सिंदूर खेला ने श्रद्धा, उत्साह और सांस्कृतिक विरासत को खूबसूरती से प्रदर्शित किया। इस आयोजन ने समुदाय के सदस्यों को एक साथ लाकर सांस्कृतिक और सामाजिक जुड़ाव को भी मजबूत किया। (Express Photo)
(यह भी पढ़ें: नवरात्रि के बाद बचे नारियल के छिलके का क्या करें? यहां जानिए उपयोग करने के 7 आसान टिप्स)
